उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा और यमुना नदियों की सफाई और रखरखाव के लिए केंद्र सरकार और उत्तराखंड समेत चार राज्यों को नोटिस जारी किए हैं. अदालत ने जवाब देने के लिए कहा कि अभी तक राज्य व केंद्र सरकार ने दोनों नदियों की सफाई और रखरखाव के लिए क्या कदम उठाए हैं. केंद्र और उत्तराखंड सरकार के अलावा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा सरकारों, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस भेजे गए है.
अदालत ने सुनवाई के अगले दिन 10 अक्टूबर को तय कर दिया है. न्यायमूर्ति वीके बिष्ट और लोकपाल सिंह की डिवीजन खंडपीठ ने दिल्ली स्थित सामाजिक कार्यकर्ता अजय गौतम की पीआईएल सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया. आदेश 12 सितंबर को जारी किया गया था, लेकिन इसकी प्रतिलिपि 25 सितंबर को उपलब्ध कराई गई थी.
याचिकाकर्ता ने कहा कि गंगा और यमुना के पानी धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए भी उपयुक्त नहीं थे. उन्होंने विभिन्न अध्ययनों का हवाला दिया है कि डब्ल्यूएचओ द्वारा दिए आकड़ों के अनुसार आधे भाग से अधिक हिस्से का पानी किसी भी स्तर से उपयोग में नही लाया जा सकता है. हरिद्वार के पास गंगा पानी में कोलिफ़ॉर्म बैक्टीरिया 100 गुना अधिक है. विशेषज्ञों के मुताबिक 2,525 किलोमीटर लंबी गंगा 140 मछली प्रजातियों, 90 उभयचर प्रजातियों और लुप्तप्राय गंगा नदी में डॉल्फ़िन का घर है.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा गया “हम यह नहीं भूल सकते कि सरस्वती नदी पहले से ही अपने अस्तित्व को खो चुकी है. इस प्रकार, यदि हम सभी एक साथ नहीं आएंगे और ईमानदार प्रयास करेंगे, तो आने वाली पीढ़ी केवल चित्रों और फिल्मों में इन नदियों के बारे में जान सकेंगे और लाखों लोगों को इस अपरिवर्तनीय हानि को भुगतना होगा.”
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बार-बार गंगा में प्रदूषण पर अपनी चिंता व्यक्त की है. भारतीय इतिहास में बड़ा फैसला लेते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गंगा नदी को ‘लिविंग इन्टिटि’ यानि ज़िंदा ईकाई का दर्जा दिया है. उत्तराखंड के उच्च न्यायालय ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सरकार को कड़ी चेतावनी दी है. लेकिन आज तक इस दिशा में कोई सुधारात्मक कार्य नजर नही आ रहा है.
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