अभी लोकसभा चुनाव की खुमारी उतरी भी नहीं है कि उत्तराखण्ड में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के प्रचार की धार तेज होने लगी है. चमोली जिले की बद्रीनाथ विधानसभा सीट और हरिद्वार जिले की मंगलौर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है. इन दोनों सीटों पर आगामी 10 जुलाई 2024 को मतदान होगा. चुनाव आयोग ने गत 10 जून को उत्तराखण्ड की दो विधानसभा सीटों सहित 7 राज्यों के 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा की.
(Uttarakhand By-election 2024)
उत्तराखण्ड के चमोली जिले की बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के राजेन्द्र भण्डारी विजयी रहे थे. उन्होंने भाजपा के महेन्द्र प्रसाद भट्ट को हराया था. भण्डारी को 32,661 और महेन्द्र भट्ट को 30,595 वोट मिले. भण्डारी ने भट्ट को 2,066 वोटों से हराया. पिछले दिनों सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के समय राजेन्द्र भण्डारी रातों-रात पाला बदल कर भाजपा में शामिल हो गए थे और उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था.
भाजपा में शामिल होने के पहले दिन 16 मार्च 2024 को भण्डारी कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी गणेश गोदियाल के समर्थन में चुनाव प्रचार कर रहे थे, साथ ही उन चर्चाओं को झूठा बता रहे थे कि वे कांग्रेस छोड़ने वाले हैं. भण्डारी ने यह तक कहा कि वे किसी भी कीमत पर कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे. वे भाजपा से डरने वाले नहीं है. पर इसके अगले ही दिन 17 मार्च को सूर्योदय होने के साथ ही भण्डारी देहरादून पहुँचे और वहॉ से भाजपा के कुछ बड़े नेताओं के साथ दिल्ली के लिए उड़ चले. दिल्ली में उन्होंने मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा के मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी की मौजूदगी में भाजपा की सदस्यता ली. भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय में कमल निशान वाला भगवा पट्टा गले में डाल, प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा के गीत गाए.
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भाजपा का भगवा पट्टा गले में डालने के बाद राजेंद्र भंडारी ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मन्त्री अमित शाह से भी मुलाकात की. राजेंद्र भंडारी ने कहा कि प्रधानमन्त्री मोदी के कुशल नेतृत्व में देश आगे जा रहा है. हम उनके पदचिह्नों पर चलकर काम करेंगे. साथ ही घोषणा की कि वे बिना शर्त भाजपा में शामिल हुए हैं और नरेन्द्र मोदी के ऐतिहासिक कामों से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल होने का कदम उठाया है. वहीं, धामी ने कहा कि वह हमारे द्वारा किए गए विकास कार्यों से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल हुए हैं.
भण्डारी के भाजपा में शामिल होते ही कितनी त्वरित गति से काम किया गया, यह भी देखने वाली बात है. भाजपा में शामिल होने के तुरन्त बाद ही भण्डारी ने विधानसभा की सदस्यता से कांग्रेस विधायक होने के कारण दलबदल के तहत त्यागपत्र दिया. उनका त्यागपत्र विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने उसी दिन स्वीकार भी कर लिया. साथ ही 17 मार्च को ही विधासभा सचिवालय ने बद्रीनाथ विधानसभा सीट को रिक्त घोषित करते हुए उसकी सूचना चुनाव आयोग को भी भेज दी.
भण्डारी ने भाजपा में शामिल होने का भले ही जो भी कारण बताया हो, पर यह सभी जानते हैं कि वह चमोली जिला पंचायत की अध्यक्ष अपनी पत्नी रजनी भण्डारी की कुर्सी बचाने के लिए ही भाजपा में शामिल हुए. उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार रजनी भण्डारी पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए दो बार बर्खास्त कर चुकी थी और दोनों ही बार रजनी भण्डारी को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय से राहत मिली. इसके बाद एक बार फिर से रजनी भण्डारी को बर्खास्त करने के कानूनी पहलू देखे जाने लगे थे. ऐसी चर्चाएं चमोली जिले के राजनीतिक हलकों में होती रही हैं.
शह-मात के इस खेल से परेशान राजेंद्र भण्डारी ने अंन्तत: अपनी पत्नी के जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी को सलामत रखने के लिए रातों-रात भाजपा में शामिल होना ही मुनासिब समझा. भण्डारी को भाजपा में शामिल होने के साथ ही यह भी आश्वासन दिया गया था कि बद्रीनाथ सीट पर जब भी उपचुनाव होगा तो भाजपा उन्हें ही पार्टी प्रत्याशी घोषित करेगी. अब अगर सिर्फ दल बदलने से ही पत्नी के जिला पंचायत की कुर्सी और खुद के फिर से विधायक बनने की गारंटी मिल रही हो, तो आज की राजनीति के दौर में कौन रातों-रात अपनी राजनीतिक दलीय निष्ठा नहीं बदलेगा?
चमोली की राजनीति में यह भी चर्चाएं होती रही हैं कि रजनी भण्डारी के खिलाफ बार-बार की जा रही कारवाइयॉ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के दबाव में की जाती रही हैं. महेंद्र भट्ट और राजेंद्र भण्डारी क्योंकि राजनीतिक तौर पर बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर एक-दूसरे के प्रबल विरोधी थे तो महेंद्र भट्ट भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से यह बिल्कुल स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की पत्नी चमोली जिला पंचायत की अध्यक्ष बनी रहें.
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कहा जाता है कि इसी कारण काफी पुराने मामले में कथित तौर पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाकर उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद भी बार-बार बर्खास्त किया जाता रहा. इस बीच भाजपा के अन्दर भी तेजी से बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच भाजपा नेतृत्व ने महेंद्र भट्ट को राज्यसभा भेज दिया. इसके बाद चमोली में बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर एक तरह से राजेंद्र भण्डारी और महेंद्र भट्ट की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता खत्म सी हो गई. ऐसे में भण्डारी को भाजपा में शामिल होने पर भविष्य में बद्रीनाथ सीट से टिकट न मिलने का खतरा भी जाता रहा. वैसे भी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट खुले तौर पर कांग्रेस विधायकों को पार्टी छोड़कर भाजपा में होने का निमन्त्रण देते रहे हैं. और यह कहते रहे हैं कि अगर वे कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल होते हैं तो पार्टी उन्हें कमल के चुनाव निशान पर जीता कर फिर से विधानसभा में भेजेगी.
भाजपा ने राजेंद्र भण्डारी से किए गए वायदे को निभाया और उपचुनाव में भण्डारी को उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया. अब भण्डारी भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में है. उनका सीधा मुकाबला कांग्रेस के लखपत बुटोला के साथ है. जो कभी कांग्रेस में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी हुआ करते थे. भाजपा के अन्दर से थोड़ा बहुत विरोध भण्डारी को टिकट देने का हुआ. पर वह बहुत ज्यादा असर नहीं दिखा सका. भण्डारी के ही चचेरे भाई वीरेंद्र भण्डारी ने इसका विरोध किया और निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की.
उनका कहना था कि जिस व्यक्ति के खिलाफ वह पिछले दो दशकों से नारे लगा रहे थे और अब उनके समर्थन में जनता से कैसे वोट मांगेंगे? यह कैसी नैतिकता और राजनीति है? वीरेंद्र भाजपा में चमोली के पोखरी ग्रामीण मण्डल के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय जनता युवा मोर्चा और भाजपा में कई अहम पदों पर रह चुके हैं. वीरेंद्र के इस विरोध पर राजेंद्र भण्डारी ने कहा कि वह मेरा छोटा भाई है. उनसे मेरे पारिवारिक रिश्ते हैं. वह जो भी करेंगे, अच्छा ही करेंगे. वीरेंद्र का विरोध बहुत दिनों तक नहीं चला. मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भट्ट द्वारा उनसे की गई बातचीत के बाद उन्होंने अपना नामांकन निर्दलीय के तौर पर नहीं किया और कहा कि वे पार्टी के निर्देशों के अनुसार काम करेंगे.
भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों सहित इस सीट पर कुल पॉच उम्मीदवार चुनाव मैदान में है. जिनमें भाजपा के राजेंद्र भण्डारी, कांग्रेस के लखपत बुटोला, उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के बच्ची राम, सैनिक समाज पार्टी के हिम्मत सिंह नेगी और निर्दलीय नवल किशोर खाली शामिल हैं. उपचुनाव में भी भाजपा, कांग्रेस के बीच ही सीधी टक्कर होनी तय है. अगर हम गति लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के ऑकड़ों पर नजर डालें तो भाजपा मजबूत स्थिति में दिखाई देती है.
गत विधानसभा चुनाव में राजेंद्र भण्डारी ने केवल 2,066 वोटों के अन्तर से ही कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर यह सीट जीती थी और अभी संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को यहॉ से भारी बहुमत मिला है. बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर भाजपा के अनिल बलूनी को 31,845 वोट मिले तो कांग्रेस के गणेश गोदियाल को 23,600 वोट प्राप्त हुए. भाजपा लोकसभा चुनाव में 8,245 वोटो के बड़े अन्तर से आगे रही है. जो लोकसभा चुनाव के लगभग ढाई महीने बाद हो रहे विधानसभा उपचुनाव के लिहाज से भाजपा के लिए सुखद स्थिति है.
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गत विधानसभा चुनाव और अभी सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के वोटों के हिसाब से विश्लेषण करें तो भाजपा को राजेंद्र भण्डारी का लाभ मिलता हुआ दिखाई देता है. जो अब भाजपा प्रत्याशी के तौर पर राजेंद्र भण्डारी के लिए भी बेहतर स्थिति कही जा सकती है. पर इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस प्रत्याशी लखपत बुटोला को भी कमजोर नहीं कहा जा सकता है. वह राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं और राजेंद्र भण्डारी के हर दॉव पेंच को बहुत अच्छी तरीके से जानते-समझते हैं. ऐसी स्थिति में अगर कांग्रेस के संगठन ने इंडिया गठबंधन के घटक दलों के साथ पूरी मेहनत के साथ उपचुनाव लड़ा तो बद्रीनाथ सीट पर कांग्रेस एक बार फिर से कब्जा कर सकती है.
राज्य की जिस दूसरी विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है, वह है हरिद्वार जिले की मंगलौर विधानसभा सीट. जहॉ से बहुजन समाज पार्टी के हाजी सरवत करीम अंसारी गत विधानसभा चुनाव में विधायक निर्वाचित हुए थे. उन्होंने कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन को हराया था. अंसारी को 32,660 को काजी को 32,062 वोट मिले थे. बसपा के अंसारी केवल 598 वोट से जीतने में सफल रहे थे. बसपा विधायक अंसारी की गत 30 अक्टूबर 2023 को लम्बी बीमारी के बाद मौत हो गई थी. लगभग 66 वर्षीय अंसारी को स्वास्थ्य खराब होने पर मंगलौर के एक निजी अस्पताल में गत 27 अक्टूबर को भर्ती किया गया था.
स्वास्थ्य में सुधार न होने पर उन्हें रात को ही नोएडा के एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया. जहॉ 30 अक्टूबर 2023 को सवेरे उनका निधन हो गया. अंसारी दूसरी बार मंगलौर विधानसभा सीट से बसपा के विधायक रहे. वह इससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में मंगलौर से ही बहुजन समाज पार्टी के विधायक चुने गए थे. पर, 2017 के विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन से पराजित हो गए, लेकिन 2022 के गत विधानसभा चुनाव में वह एक बार फिर से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और काजी निजामुद्दीन को हराकर विजयी रहे थे.
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अंसारी के निधन के बाद विधानसभा सचिवालय की ओर से मंगलौर सीट को रिक्त घोषित कर दिया गया . जिसकी सूचना तत्काल भारत निर्वाचन आयोग को भेज दी गई थी. संवैधानिक प्रावधानों के तहत इस सीट पर रिक्त घोषित होने से छह माह के भीतर अप्रैल 2024 खतम होने से पहले चुनाव हो जाना चाहिए था. पर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे काजी ने अंसारी की जीत के चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय नैनीताल में याचिका दायर की हुई थी और उस पर सुनवाई चल रही थी. जब मार्च 2024 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो उसके बाद ही काजी ने अंसारी की मौत का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय से अपनी याचिका वापस ली. इसी तकनीकी कारण से लोकसभा चुनाव के साथ या उससे पहले मंगलौर विधानसभा सीट पर उपचुनाव नहीं हो पाया.
मंगलौर विधानसभा सीट राज्य बनने के बाद से कभी भी भाजपा के पक्ष में नहीं रही. यहॉ कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के बीच ही टक्कर होती रही है और उसके ही विधायक निर्वाचित होते रहे हैं. अंसारी के निधन के बाद से ही भाजपा की नजर इस सीट पर लगी हुई है. भाजपा उपचुनाव में इस सीट को अपने कब्जे में कर यहॉ से हार के मिथक को तोड़ना चाहती है. शायद इसी वजह से भाजपा ने हरियाणा निवासी करतार सिंह भड़ाना को अपना प्रत्याशी बनाया है जो लोकसभा चुनाव के दौरान ही भाजपा में शामिल हुए थे.
मंगलौर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन, भारतीय जनता पार्टी के करतार सिंह भड़ाना और बहुजन समाज पार्टी के उबैदुर रहमान समेत कुल 7 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. गत 2022 के विधानसभा चुनाव और अभी सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के ऑकड़ों के आधार पर देखें तो कांग्रेस की स्थिति मजबूत दिखाई देती है. गत विधानसभा चुनाव में बसपा केवल 598 वोटों के बेहद कम अन्तर से ही कांग्रेस को हराने में कामयाब रही थी. अभी संपन्न लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मंगलोर सीट पर 44,000 वोट मिले, जबकि भाजपा को इससे आधे केवल 21,000 वोट ही प्राप्त हो सके.
लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी रहे जमील अहमद कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन इस सीट पर नहीं कर पाए. बसपा ने अपने दिवंगत विधायक सरवत करीम अंसारी के बेटे को टिकट देकर सहानुभूति का कार्ड खेलने की कोशिश की है. पर लोकसभा चुनाव में जिस तरह मतदाताओं ने कांग्रेस को भारी समर्थन दिया, उससे लगता नहीं है कि यहॉ पर बसपा का सहानुभूति कार्ड बहुत काम करेगा. भाजपा को हरियाणा के व्यक्ति को चुनाव लड़ाने का खामियाजा उठाना पड़ सकता है.
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जगमोहन रौतेला
जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं.
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