हैडलाइन्स

क्या भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच बचा जा रहा है

पिछले के महीने से उत्तराखंड में ऐसा कोई दिन नहीं बीता जिस दिन अख़बार में भर्ती घोटाले से लेकर कुछ न कुछ न छपा हो. विधानसभा से सड़क तक भर्ती घोटाले की बात हुई. महीने भर बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक कड़ा फैसला लेते हुये यह घोषणा कि- जिन परीक्षाओं में गड़बड़ी के साक्ष्य मिले हैं उन्हें निरस्त कर नए सिरे से चयन प्रक्रिया शुरु की जाएगी. मुख्यमंत्री की इस घोषणा के बाद भी कुछ सवाल अनुतरित हैं.
(Uttarakhand Bharti Scam Latest Update)

क्या इस पूरी प्रक्रिया में केवल जुबानी लीपा-पोती हो रही है क्योंकि अब तक एक भी बड़े अधिकारी पर एसटीएफ ने हाथ नहीं डाला है. एसटीएफ की जांच में बार-बार राज्य पुलिस विभाग से जुड़े लोगों के नाम भी सुनने को आ रहे हैं. अब तक कि जांच में सामने आये मुख्य आरोपी हाकम सिंह की राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के साथ अलग-अलग मौकों पर तस्वीर नज़र आ रही है. उत्तराखंड के बड़े-बड़े अधिकारी मुख्य आरोपी के रिजार्ट में नजर आ रहे हैं. ऐसे में एसटीएफ की जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लाजमी हैं. जब एक सीट के 10 लाख में बिकने का आरोप लग रहा है ऐसे में क्या पूरे भर्ती घोटाले मामले की जांच सीबीआई से नहीं कराई जानी चाहिये?

महीने भर बीतने के बाद भी परीक्षा का आयोजन करने वाली संस्थान से किसी ने भी घोटाले की नैतिक जिम्मेदारी नहीं ली है. यह कितनी निराशा की बात है कि संस्थान के अध्यक्ष और सचिव ने कड़े दबाव के बाद अपने-अपने पदों से इस्तीफ़ा दिया. क्या घोटाला होने पर परीक्षा कराने वाले संस्थान की कोई जवाबदेही नहीं?   
(Uttarakhand Bharti Scam Latest Update)

इस पूरे प्रकरण में बेरोजगार अभ्यर्थियों की बात लगभग गायब हो गयी है. पहले से ही कहा जाता था कि एक अभ्यर्थी का उत्तराखंड में किसी सरकारी नौकरी की तैयारी में जुटना मतलब पंचवर्षीय योजना में अपना रजिस्ट्रेशन कराने जैसा है. इस पूरे समय में जिस मानसिक प्रताड़ना से वह गुजरते हैं उसपर भी कहीं कोई बात नहीं है. एक अभ्यर्थी जो अपनी मेहनत के बल पर एक परीक्षा पास करता है और परिणाम आने के छः महीने बाद भर्ती ही निरस्त कर दी जाती. उत्तराखंड में सरकारी नौकरी प्राप्त करने की प्रक्रिया को सांप-सीढ़ी का खेल बना दिया गया है 99 पर भी सांप काट सकता है.    
(Uttarakhand Bharti Scam Latest Update)

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