गांधी जी के असहयोग आन्दोलन वापस लेने के बाद सी.आर. दास और पंडित मोतीलाल नेहरू ने स्वराज पार्टी का गठन किया और दिसम्बर 1923 में घोषित चुनाव में भाग लिया. कुमाऊं में चुनाव के लिए उपयुक्त नेताओं के चयन हेतु जुलाई 1923 में मोतीलाल नेहरू नैनीताल आये. 15-16 जुलाई को गोविन्द वल्लभ पन्त, हरगोविंद पंत आदि ने मोतीलाल नेहरु से मुलाक़ात की. जिसके बाद 20 जुलाई को नैनीताल में स्वराज पार्टी के कार्यकर्ताओं का एक सम्मलेन आयोजित करना तय हुआ. उसके निमित्त हकीम अजमल खां, मौलाना मुहम्मद अली, बाबू शंभूनाथ आदि को आमंत्रित किया गया और सम्मलेन सफलतापूर्वक संपन्न हो गया.
चुनाव टिकट आने पर स्वराज दल तथा विरोधी पक्ष की ओर से जोरदार प्रचार कार्य आरंभ किया गया. इस संबंध में नैनीताल में 23 अक्टूबर और 30 अक्टूबर, 1923 को स्वराज्य दल की दो सभाएं हुई.
मोतीलाल नेहरू ने कुमाउनियों के समक्ष अपील की कि ‘ आपके कुमाऊं से श्री रंग अय्यर केन्द्रीय विधान सभा के लिए, पंडित गोविन्द वल्लभ पन्त नैनीताल सीट से प्रांतीय कौंसिल के लिए, पंडित हरगोविंद पंत अल्मोड़ा सीट से प्रांतीय कौंसिल के लिए, बाबू मुकुन्दी लाल गढ़वाल सीट से प्रांतीय कौंसिल के लिए स्वराज पार्टी की ओर से खड़े हुए हैं. आपका कर्तव्य है कि आप इनको हर तरह मदद दें… इनकी विजय देश की विजय होगी. मेरी ओर से कुमाऊँ वालों को अपने अखबार द्वारा सूचित कर दें कि लोग इन्हीं को वोट देंगे. आप गांवों में जाकर लोगों को मेरा सन्देश सुना देवें. मुझे पूर्ण आशा है आप स्वराज्य दल को हर प्रकार से मदद पहुंचाएंगे.’
प्रांतीय कौंसिल की तीनों सीटें स्वराज्य दल के खाते में गयी. बैरिस्टर मुकुन्दी लाल, गोविन्द वल्लभ पन्त और पंडित हरगोविंद पंत अपनी-अपनी सीटों पर भरी मतों से विजयी हुए. ब्रिटिश सरकार अब तक उक्त जिलों को अपना गढ़ समझती थी लेकिन चुनाव परिणाम ने यह भ्रम सदैव के लिए तोड़ दिया.
चुनाव परिणाम के बाद 24 जनवरी 1924 हल्द्वानी के रामलीला मैदान में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन हुआ, जिसमें नवनिर्वाचित प्रतिनिधियों ने भाषण दिये. अपने भाषण के दौरान पं. गोविन्द वल्लभ पन्त ने कहा कि ‘ हम स्वराज के सिपाही हैं तथा हमारा उदेश्य यथाशक्ति जनता की सेवा करना होगा.’
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