Featured

बड़ी पवित्र और गुणकारी है पहाड़ी हल्दी

बड़ी ही जरुरी, पवित्र और उपयोगी मानी गई हल्दी. बोल भी फूटे:
कसो लै यो हलैदियो बोटि जामियो…
काचो  हलदी  को रंग, ध्वे बेर नै जान…
हल्दी के घर जावो तो हलद मोलाइए

(Uses of Turmeric)

दाल सब्जी में पड़ने वाले मसालों में हल्दी तो अनिवार्य हुई ही, बस बिरादरी में किसी के गुजर जाने पे बिना हल्द खाना होता.यानि बहुत ही सादे  खाने में ज्यादा छौंक भूट भी नहीं होती और हल्द भी नहीं पड़ता. 

पीलिया -कमलबाई होने पे भी हल्द नहीं खाने देते. पहाड़ी हल्दी में तेल ज्यादा होता. कम  मात्रा में ही यह खूब रंग देती. खेत से खोदी हल्दी को धो-धा के बड़े बर्तन में उबाल लेते. फिर इन्हें सुखा लेते. आसानी से पिस जाये इसलिए चाकू से काट के भी ख्वैड़ बना लेते. जब जरुरत पड़े तो सिल लोड़े में पीसी जाती. इसका रंग हाथों में भी खूब चढ़ता.

कुछ कच्ची हल्दी कोरी ही रख ली जाती. पूजा पाठ में काम आती. कलश स्थापन में काम आती. जनेऊ या यज्ञोपवीत संस्कार में बटुक के लगायी जाती. शादी से पहिले दूल्हा -दुल्हन दोनों का सर्वांग स्नान हल्दी से ही होता. नववधू के आँचल में राई -सुपारी के संग बाँधी जाती. इसी से कंकण बनाये जाते. (Uses of Turmeric)

घर में नान्तिनो के जनम्बार में लाल या सफ़ेद वस्त्र में सिक्के के साथ साबुत कोरी कच्ची हल्दी गाँठ मार मंत्र -तंत्र के साथ हथेली में बाँधी जाती. बृहस्पति भगवान को साधे रखने के लिए भी इसे भुजा में बीपे  के दिन पहनाने का  जतन पंडित जी बताते. फिर हर रोग आदि-व्याधि में गरम दूध के साथ मिश्री मिला के पिलाना तो हुआ ही.

जतकालियों के लिए बनी पजीरी में हल्द अनिवार्य हुआ जिसे सोंठ, अजवाइन, काली  मर्च, मेथी, साबुत धनिया, जायफल और गौंद के साथ पीसपास  घी में भून गीला या सूखा तैयार किया जाता और गरमागरम पिलाया जाता. गौंद भी कई फलदार पेड़ों और जंगलों से इकट्ठा की जाती. कई जगह  कमरकस भी थोड़ी बहुत मिलती यह भी मिलाई जाती. आटे शक्कर के साथ भूट के पज़ीरी के लड्डू भी बनते. इनमें शतावरी की जड़ भी पीस-पास के मिलाई जाती, तो पीपल भी. इसके सेवन से जतकाली को आंग भी भरापूरा  रहता और बच्चे के लिए दूध भी खूब उतरता.

हल्द के भुड़ या हल्दाक भुड़, मतलब बीज रूपी गांठे जो बोने के बाद खेत में जस की तस रहती से बना पिठ्या सबसे अच्छा माना जाता.  इन भूड़ों  को ताम्बे के बर्तन में निम्बू के रस में औटाया जाता . फिर नापतोल के इसमें सुहागा डाला जाता. ज्यादा सुहागा पड़ जाने पे पिठ्या काला पड़ जाता. रंग सही आने पर इन भूड़ों को सुखा  लेते. चन्थरैंणी में घिस कर कपाल में लगाते. टुकड़ों को पीस कर सुरक्षित ठया या मंदिर में रख देते. (Uses of Turmeric)

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago