कॉलम

घर से नहीं निकलने वाला वोटर

यह पक्का है कि वह घर में ही रहता है. पन्ना प्रमुख की सूचना कभी ग़लत ना होती. यह भी वेरीफाइड है कि अपने अन्य कामों के लिए वह मुश्तैदी से निकलता है. दफ़्तर जाना, सब्ज़ी, दूध लाना उसके रोज़मर्रा के काम हैं जिनकी आपूर्ति को वह बिना उकसावे या जागरूकता अभियान द्वारा ठेली गई प्रेरणा के निकल पड़ता है…
(Umesh Tewari Vishwas Satires)

तो प्रश्न उठता है वोट देने को निकलने में उसकी नानी क्यों मरती है? उसके पास वोटर आई डी समेत ऐसा सब कुछ है जिसकी मदद से वह पोलिंग बूथ जाकर मतदान कर सकता है. यहां तक कि उसकी धार्मिक प्रवृत्ति के मद्देनज़र वोट डालने को दान की श्रेणी में रखा गया है और इसकी  बार-बार ताकीद की गई है… कहीं ऐसा तो नहीं वोटिंग मशीन के बटन दाबने से उसे डालने के बजाय ‘दबाने’ का भाव घेर लेता हो? हम तो कब से कै रे, ई वी एम के बजाय बैलेट पेपर से करवाओ, डब्बे में डलवाओ भाई.

हाल ही किसी अखबार में रिपोर्ट देख रहा था कि भारत के लगभग 50% लोग आलसी हैं. मुझे यह एक वैलिड वजह लगती है कि आलसी होने के कारण वोटर घर से बाहर नहीं निकल रहा है. पर सवाल पैदा होता है यदि हमारे मेहनती मीडिया का यह सर्वेक्षण सही है तो देशभर का औसत वोटिंग प्रतिशत 50 से अधिक क्यों है ? हां, ये ज़रूर हो सकता है कि वोटिंग तो 50% ही हो री पर गिनी ज़्यादा जा री हो, ऑयं.

आलस्य की थ्योरी पर ही रहते ज़रा मतदान के बाद की कुछ स्तिथियों पर ग़ौर फ़रमायें; लग रा आलस्य और लोकतंत्र का साथ तो चोली-दामन वाला है. इधर वोटर्स का आलस्य बढ़ा, उधर नेता बे-लगाम. भ्रष्टाचार के हाईवे पर सरपट. उधर नेता आलस्य ग्रसित होवे तो सालों-साल निर्वाचन क्षेत्र में पैर न धरे. चाहे वोटर जिये या मरे. योजनाओं की फाइलें भी आलस के सचिवालय पड़ी रवें. उदाहरण?

हल्द्वानी जमरानी बांध परियोजना शुरू 1975 में, सरकारी आलस्य में ऐसी लटकी कि गौला नदी आधी सूख गई पर फ़ाइल न जागी. पानी नल से निकले न निकले वोटर पूरे निकलें घर से बाहर, चुनाव दर चुनाव. 2024 चुनाव में बांध बनने का रास्ता साफ़ वाली ख़बर के साथ ही साफ़ हो गया कि ‘पहले मतदान बाद में जलपान’!
(Umesh Tewari Vishwas Satires)

यूँ तो पिछली बार भी उसने ब्रेकफ़ास्ट से पहले वोट डाल दिया था पर उसे घर से नहीं निकलने वाला वोटर कहा गया. साफ़ है ये ब्लेम उसके माथे पर तब तक रहेगा जब तक पूरे सौ प्रतिशत वोट रिकॉर्ड नहीं हो जाते. पर यहां एक बड़ा पेच है; कल्पना करें कि किसी बहकावे में आकर सारे वोटर वोट देने निकल पड़ें. वोट तो किसी तरह पड़ जायेगा पर मतगणना का आधा काम भी पहले ही समाप्त हो जाएगा. तब उन वोटों का क्या होगा जिनको 7 बजे बाद वोटिंग मशीनों के अंदर ही अंदर 10-15 % बढ़ने की आदत पड़ी हुई है?

अतः हमारा प्रयास रहना चाहिए कि वोटर बाहर तो निकले पर इतना भी ना निकले कि मतगणना में चुनाव आयोग की भूमिका ही समाप्त हो जाये. इत्ती गुंजाइश रहे कि कमज़ोर पड़ रहे उम्मीदवारों को एन टी ए की तर्ज़ पर ग्रेस मार्क दिए जा सकें.
(Umesh Tewari Vishwas Satires)

उमेश तिवारी ‘विश्वास

हल्द्वानी में रहने वाले उमेश तिवारी ‘विश्वास‘ स्वतन्त्र पत्रकार एवं लेखक हैं. नैनीताल की रंगमंच परम्परा का अभिन्न हिस्सा रहे उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की महत्वपूर्ण पुस्तक ‘थियेटर इन नैनीताल’ हाल ही में प्रकाशित हुई है.

इसे भी पढ़ें: पीन सुंदरी: उत्तराखण्ड की नायिका कथा

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