सुबह करीब 6 बजे मैंने तुंगनाथ के लिये पैदल चलना शुरू किया. चोपता का छोटे पर महंगे बाजार को पार करके में पैदल रास्ते में आ गयी. ये रास्ता पत्थरों से बना है ताकि इसमें खच्चरों भी उन लोगों को ले जा सकें जो पैदल नहीं चल सकते हैं और साथ ही रास्ते को खूब गंदा भी कर देते हैं क्योंकि सफाई की कोई न तो व्यवस्था ही की गयी और न ही कोई कानून बने हैं. रास्ते में कुछ दुकानें भी हैं पर इनमें सामान की कीमत एकदम मनमानी ही है. जिसका जो मन होता है वो कीमत वसूलता है.
अभी तो फिलहाल धूप खिली हुई है इसलिये बुग्याल अच्छे लग रहे हैं पर कुछ देर बाद बादल घिर आये और आसमान एकदम काला हो गया. मैं तुंगनाथ के मंदिर तक पहुँच गयी. बाहर से आये पर्यटकों के कारण मंदिर में थोड़ी भीड़ है. मैं मंदिर के अंदर गयी जो कि अंधेरी गुफा जैसा है इसमें शिवलिंग है और एक पुजारी पूजा कर रहा है. अंदर धूप के धुंए से कमरा भरा है और तेल के दीयों से आने वाली रोशनी से मंदिर में उजाला हो रहा है. कुछ देर अंदर रह के मैं बाहर आ गयी. यहाँ पुजारियों के भी दाम तय हैं और अगर बिन पूजा कराये बाहर आओ तो पुजारी ऐसे देखते हैं जैसे कोई घोर अपराध हुआ हो.
तुंगनाथ 3460 मीटर की ऊँचाई में स्थित विश्व का सबसे ऊँचा शिव मंदिर है और पंचकेदारों में से एक है. माना जाता है कि यह मंदिर 1000 वर्ष पुराना है जिसका निर्माण पांडवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये किया गया था.
तुंगनाथ से मैं चन्द्रशिला की ओर निकल गयी. चन्द्रशिला की ऊँचाई 3700 मीटर है. चन्द्रशिला को जाते हुए मौसम एकदम खराब हो गया और धुंध ने पूरी घाटी को अपनी गिरफ्त में ले लिया. चन्द्रशिला में भी शिव का मंदिर है. यहाँ से लौटते हुए भयानक बारिश होने लगी और पूरा रास्ता वर्षा में ही तय किया और फिर वहीं से देवरियाताल के लिये निकल गयी. देवरियाताल की ऊँचाई 2438 मीटर है और यह झील 3 किमी. लम्बी है.
देवरियाताल जाते समय बारिश रुक गयी. शाम के समय जब यहाँ पहुंची तो आसमान खुल गया हालांकि शाम भी होने लगी. देवरियाताल में चैखंबा पर्वत का परछाई दिख रही है. ये नजारा बेहद खूबसूरत है. एक रात यहाँ बिता के अगली सुबह मैं वापस लौट गयी. सभी फोटो विनीता यशस्वी ने ली हैं.
विनीता यशस्वी
विनीता यशस्वी नैनीताल में रहती हैं. यात्रा और फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी पिछले एक दशक से नैनीताल समाचार से जुड़ी हैं.
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