हिमालय अपने ऊँचे शिखरों और अद्भुत दृश्यों के साथ हमेशा से आध्यात्मिकता और साहस की खोज करने वालों के लिए एक विशेष आकर्षण रखता है. हाल ही में, मैंने रुद्रनाथ मंदिर की ओर अपनी यात्रा की शुरुआत की, जो उत्तराखंड में 13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक शिव मंदिर है. रुद्रनाथ पंचकेदारों में से एक है, इसे चौथा केदार माना जाता है. रुद्रनाथ में शिव के एकानन रूप यानि मुख की पूजा-अर्चना की जाती है. (Trip Rudranath Temple Himalayas)
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यह आध्यात्मिक यात्रा मेरे लिए अत्यंत प्रेरणास्पद रही, मैंने 45 किलोमीटर की ट्रेकिंग की, सरस्वती कुंड के पास ध्यान किया और धार्मिकता के दरबार में भक्तों के दिलों में अद्वितीय स्थान रखने वाले देवी अनुसूया मंदिर की खोज की. मेरे साथ इस अद्भुत यात्रा पर आने के लिए जुड़ें और महसूस करें कि हिमालय कितनी शांति और प्रज्ञान प्रदान करता है.
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मेरा रुद्रनाथ मंदिर की ओर सफर 22 किलोमीटर की ट्रेकिंग के साथ शुरू हुआ. यह मार्ग हरे-भरे जंगल, चट्टानों वाले रास्ते और दिलकश दृश्यों का एक खास मिश्रण था. इसके हर कदम पर प्राकृतिक सौंदर्य से अद्वितीय साक्षात्कार था और इस कठिन ट्रेक की मेहनत से हमें बर्फ से ढके हुए शिखरों के अद्भुत दृश्य मिले. जब मैं रुद्रनाथ मंदिर पहुंची, तो अहसास अल्फाजों से परे था. ऊँचे हिमालय शिखरों के बीच बसा हुआ यह मंदिर याद दिलाता है कि इन पहाड़ों के दिल में दिव्य शक्ति उपस्थित है. “आरती” और “दर्शन” समागम बहुत विनम्र अनुभव थे, जिसने मेरे दिल को शांति और श्रद्धा की भावना से भर दिया गया.
यात्रा के दौरान मैंने सरस्वती कुंड का भी दर्शन किया, जिसका महत्व अत्यधिक है. यहां हजारों ऋषियों ने तपस्या की है. स्थानीय लोगों के अनुसार, अगर कोई बच्चा बोलने में असमर्थ है तो वे उस बच्चे को इस कुंड का पानी पिलाते हैं और फिर बच्चा बोलने लगता है.
मैं समझती हूँ कि जब हम इस तरह के वाले स्थलों पर यात्रा करते हैं, तो हमें एक सतर्क यात्री बनने की आवश्यकता है. हमें इस स्थल और इन कुंडों की रक्षा करनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि हम स्थल को ऐसे ही साफ़-सुथरा बने रहने दें जैसा हमने इसे पाया. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम वातावरण को प्रदूषित न करें और एक जिम्मेदार यात्री के रूप में सदैव स्वच्छता बनाए रखें.
रुद्रनाथ मंदिर से लौटते समय, मेरे सफर में एक दिल को छूने वाली और अप्रत्याशित घटना ने जादू सा किया. एक हरियाली भरे बुग्याल से गुजरते समय, मैंने प्राकृतिक हिमालय में बसे एक चरवाहे के तम्बू को देखा. मेरे पहुंचने के कुछ ही पलों बाद, वह भेड़ चरवाहा दो नए पैदा हुए छौनों को लिए था. उसने बताया कि ये नन्हे जीवन बस कुछ पल पहले ही इस दुनिया में आए थे, यही कोई दस मिनट पहले. मैं इन निर्मल छौनों के मोहपाश में तुरंत बंध गयी. इन नए पैदा हुए बछड़ों के साथ खेलना हिमालय के शांत माहौल में एक दिल को छूने वाला और अविस्मरणीय अनुभव था. हम चरवाहे की कुटिया पर चाय और कुछ छोटी चीजों के लिए रुके. हमने यहाँ की ताजगी और पहाड़ों के जादू दोनों की गर्मी का आनंद लिया. इस अप्रत्याशित मुलाकात ने प्रकृति के दिल में पाई जाने वाली असाधारण खुशियों और पवित्रता और सादगी की एक सौहार्दपूर्ण याद बन जाने का काम किया. इसने मेरी रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा को और भी असाधारण बना दिया.
रुद्रनाथ मंदिर से लौटते समय मेरे पास एक और पावन स्थल के दर्शन का अवसर था— देवी अनुसूया मंदिर का. यह मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल ही नहीं है, बल्कि एक प्राचीन पौराणिक इतिहास का भी भंडार है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और शिव भगवान, त्रिमूर्ति बच्चों के रूप में इस पवित्र स्थल पर आए और भक्त अनुसूया को दिव्य दर्शन प्रदान किए.
इस मंदिर से प्राप्त होने वाला आध्यात्मिक अनुभव अद्वितीय है. यह मंदिर एक महत्वपूर्ण हिंदू पौराणिक मिथक होने के साथ-साथ भारत भर से आने वाले यात्री और भक्तों के बीच श्रद्धा का केंद्र भी है. कई अन्य पूजा स्थलों की तरह, यह मंदिर व्यावसायिकता से भी मुक्त है. इस पवित्र स्थल तक पहुंचने के लिए ट्रेकिंग का रास्ता हिमालय के अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य से गुजरता है. व्यावसायिकता के अभाव से मंदिर का पवित्र वातावरण संरक्षित रहता है और वास्तविक आध्यात्मिक जुड़ाव की खोज करने वालों को अद्भुत अनुभूति देता है. इस मंदिर से केवल दो किलोमीटर की दूरी पर वह स्थल है जहां अत्रि मुनि ध्यान करते थे. यह जगह एक झरने के पास है.
मेरा हिमालय के रुद्रनाथ मंदिर का सफर आध्यात्मिक जागरूकता और प्राकृतिक सौंदर्य के अद्भुत संगम का गवाह रहा. कठिन ट्रेक, सरस्वती कुंड में ध्यान और देवी अनुसूया मंदिर के आध्यात्मिक अनुभव ने मेरे जीवन को एक नया दृष्टिकोण दिया. प्रकृति और आत्मा के बीच शाश्वत सम्बन्ध को लिए हिमालय के पहाड़ अपनी बुलंद ऊंचाइयों और आध्यात्मिक गहराईयों के साथ आज भी मुझे बुलाते हैं. ये हर उस शख्स को आमंत्रित करते हैं जो खुद को बदलने और जागरूक करने के सफर में है.
संस्कृति के गढ़ जयपुर, राजस्थान में रहने वाली साची सोनी खोजने की अपनी आग्रहभरी इच्छा के साथ पर्वतारोहण की शौकीन हैं. वे पहाड़ों और वन्यजीवन के प्रति अत्यधिक जिज्ञासु हैं और अपने अनुभवों को फोटोग्राफी में कैद करती हैं साथ ही अपने यात्रा प्रेम को किस्सों, कहानियों में ढालकर दुनिया के साथ अपनी यात्राओं को साझा भी करती हैं.
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