Featured

तब काठगोदाम से नैनीताल जाने के लिए रेलवे बुक करता था तांगे और इक्के

1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120 बरस पहले के कुमाऊं-गढ़वाल के बारे में बहुत दिलचस्प विवरण पढ़ने को मिलते हैं. Tonga Service in Old Kathgodam Railway)

काठगोदाम से नैनीताल तक की यात्रा तांगे, खच्चर या डांडी से की जाती है. सामान को कुली लेकर जाते हैं. अगर आपने इस यात्रा को तांगे से करने का फैसला किया है तो आपको इसके लिए कुछ दिन पहले से अपने लिए तांगा या उसमें एक सीट बुक करनी होती है. यह सावधानी व्यस्त सीजन में यानी गर्मियों में ज्यादा बरतनी पड़ती है क्योंकि उन दिनों तांगे की मांग बहुत बढ़ जाती है. अगर आपने तांगा या उसमे एक सीट बुक नहीं कराई है तो आपको काठगोदाम स्टेशन पर पहुँचने के बाद निराश होना पड़ सकता है. बुकिंग के लिए आपको काठगोदाम के तांगा-सुपरिंटेंडेंट को एक अर्जी लिखनी होगी. इसके लिए किराया काठगोदाम पहुँचने पर ही चुकाया जाना होता है. हर तांगे में तीन सवारियों की जगह होती है और हर सवारी अपने साथ बीस सेर तक का हल्का सामान ले जा सकती है. यह भार सीमा लाइसेंस धारी तांगों के लिए स्टेज कैरिज एक्ट के अंतर्गत निर्धारित है और आप इससे अधिक सामान नहीं ले जा सकते. इन तांगों का संचालन रूहेलखंड और कुमाऊं रेलवे द्वारा किया जाता है, जो इक्कों की सप्लाई भी करती है.

कालाढूंगी : नैनीताल का एक छोटा सा कस्बा

“खच्चरों, डांडियों और कुलियों के लिए भी पहले से नोटिस दिया जाना आवश्यक है. ये वहां बड़ी संख्या में मिलते हैं और इनके रेट किताब की आखिर में दिए गए हैं. यात्रियों के सामान को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए काठगोदाम में एक कुली जमादार नियुक्त है. यात्रियों की जानकारी के लिए उसके पास एक छपा हुआ सूचना पत्र रहता है जिसे पढ़ लिया जाना चाहिए. सुपुर्द किये गए सामान के बदले में जमादार को रसीद देने का आदेश दिया गया है. यह रसीद बताती है कि सामान में कितने भार के कितने नग हैं और यह भी कि कुली को कितना भाड़ा दिया गया है. काठगोदाम में दिए गए पैसे के अलावा कुली को और कोई भी पैसा नहीं दिया जाना होता. और यात्रियों को यह बात याद रखनी चाहिए क्योंकि ये कुली गंतव्य तक पहुँच जाने के बाद अलग से पैसे की मांग करते हैं जिसे उनके द्वारा ‘बख्शीश’ या ‘डबल मजूरी’ कहा जाता है. कुमाऊँ के कुलियों के मुंह से ‘बख्शीश’ शब्द कभी जाता ही नहीं.” Tonga Service in Old Kathgodam Railway)

“डांडी से जाने वालों को कुली की जरूरत पड़ेगी. इन दोनों को जमादार द्वारा उपलब्ध करा दिया जाएगा जिसके बदले में उससे रसीद मांग ली जानी चाहिए. हर डांडी के लिए छः कुली किराए पर लिए जाते हैं और अगर यात्री ‘हैवीवेट’ हुआ तो आठ से दस की आवश्यकता पड़ सकती है. काठगोदाम में मैसर्स स्मिथ. रॉडवेल एंड कम्पनी की एक एजेंसी है और वे सामान को भेजने का काम करते हैं. उनके रेट सामान्य रेट हैं अलबत्ता एक्सप्रेस सेवा से भेजने के रेट दूने होते हैं. वे भी जमादार की ही तरह आपको रसीद मुहैया कराते हैं.”

पुराना नैनीताल

तांगे से की जाने वाली यात्रा गाड़ियों वाले रास्ते से होती है जबकि खच्चर या डांडी से जाने वालों को छोटे रास्ते से यानी पैदल मार्ग से जाना होता है. काठगोदाम से दो मील की छोटी सी यात्रा के बाद यात्री रानीबाग पहुंचता है. पैदल रास्ता इसी जगह से शुरू होता है. यह रास्ता रानीबाग के प्रवेश पर गाड़ी वाले रास्ते के कट कर बाजार से होकर गुजरता है. आज के समय में रानीबाग कोई बहुत ख़ास महत्वपूर्ण जगह नहीं है. इसका महत्व सिर्फ इस बात में हैं कि यहाँ मिलिट्री का कैम्पिंग ग्राउंड है. काठगोदाम पहुँचने के बाद पहाड़ की कैंटोनमेंटों में जाते समय सैनिक अपना पहला पड़ाव यहीं करते हैं. रानीबाग हिन्दुओं का पवित्र स्थान है और इससे जुड़ी हुई अनेक मान्यताएं हैं. जनवरी के मध्य में यहाँ एक बड़ा नहान-मेला लगता है जिसमें हजारों लोग हिस्सा लेते हैं. नैनीताल और भीमताल की झीलों से आने वाले पानी के संगम पर मौजूद एक चट्टान के नाम पर रानीबाग को चित्रशिला भी कहते हैं. 1898 के भूस्खलन में यह चट्टान मलबे से दब गयी थी पर अब यह फिर से दिखाई देने लगी है. रानीबाग में एक डाक बँगला है जो उसी उद्देश्य की पूर्ति करता है जो देश के तमाम डाक बंगले करते हैं.गाड़ी वाले रास्ते की बगल में मौजूद यह एक बड़ा बँगला है. इसका एक हिस्सा जनता के लिए उपलब्ध रहता है जबकि बाकी एक रेस्ट हाउस का काम करता है.

“तांगों के ठहरने के लिए रानीबाग कोई पड़ाव नहीं है. यानी खच्चरों की बदली के लिए तांगे यहाँ नहीं ठहरते. काठगोदाम और तांगा टर्मिनस के बीच ऊपर जा कर कुल तीन ऐसे पड़ाव हैं.”

राहुल सांकृत्यायन की नजरों से नैनीताल

“ब्रेवरी से थोड़ा नीचे वर्गोंमोंट होटल और रोमल कैथोलिक अनाथालय से हो कर आप गुजरते हैं. (यहाँ सी. डब्लू. मरफ़ी ज्योलीकोट का ज़िक्र कर रहे हैं). इस होटल में नाश्ता मिलता है और तांगे को गाड़ी वाली सड़क पर उसके गेट के सामने रोका जा सकता है. डांडी या खच्चर से आने वाले लोग दूसरे गेट से घुस सकते हैं जो कि कच्चे रास्ते पर मौजूद है. इस बिंदु पर सड़क बहुत संकरी है और वर्गोंमोंट होटल और डगलस डेल एस्टेट के बीच एक छोटी सी गली जैसी है. डगलस डेल एस्टेट इन दिनों एक नेपाली महिला के पास है और यहाँ भी उसी तरह रुका जा सकता है जैसा पहले होता था जब इसका स्वामित्व लोकप्रिय मिस्त्र मार्टिन के पास था जो इसे ‘रेस्ट बाई द वे’ कहा करते थे. यह मस्तमौला तबीयत से सज्जन अपनी पत्नी के साथ हमेशा आपके स्वागत के लिए तैयार रहते थे और आपकी हर सुविधा का ख़याल रखा करते थे. यह जोड़ा कुछ वर्ष पूर्व चल बसा और यह संपत्ति उसके बाद इसके वर्तमान स्वामियों के पास आ गयी.”

वर्गोंमोंट को स्वर्गीय कैप्टेन मेन्सफील्ड ने करीब दस साल पहले खरीदा था. उन्होंने यहाँ फलों का बगीचा और एक डेरी स्थापित किये और होटल भी शुरू किया. उनकी मृत्यु के बाद उनकी विधवा मिसेज मेन्सफील्ड ने व्यवसाय को चलाना जारी रखा है. यहाँ मेहमानों के लिए कमरे उपलब्ध हैं और यह एक लोकप्रिय पिकनिक रिसोर्ट बन चुका है.

“इलाहाबाद की डायोसेस द्वारा संचालित रोमन कैथोलिक अनाथालय स्थानीय अनाथ बच्चों के लिए है. आज यहाँ अनेक सरकारी अनाथ बच्चे रहते हैं – मेरा मतलब है उन के बच्चे जिन्हें 1896-97 के अकाल के दौरान वहां भेजा गया था. यह संस्था एक स्थानीय पादरी की देखरेख में चलती है और कुछ नन्स उनकी सहायता करती हैं.

तांगा टर्मिनस यानी ब्रेवरी से नैनीताल जाने वाले यात्री को डांडी या खच्चर से ही जाना होता है. ये दोनों यहाँ उपलब्ध रहते हैं. इस जगह से नैनीताल की दूरी करीब दो मील है और सड़क बहुत तीखी चढ़ाई वाली है जिस वजह से यात्रा बहुत धीमी रफ़्तार से करनी होती है.”

सी. डब्लू. मरफ़ी की इस किताब के कई दिलचस्प हिस्सों का अनुवाद हम आपको काफल ट्री पर समय समय पर पढ़ाते रहेंगे.

नैनीताल की मिसेज बनर्जी

वाट्सएप में पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

1 day ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

1 day ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

2 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

3 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

3 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago