फोटो: सुधीर कुमार
उत्तराखण्ड में पाई जाने वाली ढेरों वनस्पतियों में से ज्यादातर औषधीय गुणों से युक्त हैं. बीते समय में इनमें से कई का इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के लिए या उनसे बचने के लिए भी होता था. गाँव-देहात में रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल की जाने वाली इन वनस्पतियों के इस्तेमाल के बारे में लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी के अपने ज्ञान से जानते थे.
इन्हीं में एक है तिमूर. जब टूथपेस्ट नहीं हुआ करता था या वह गाँवों के लिए सुलभ नहीं था तब तिमूर को दातून के तौर पर खूब इस्तेमाल किया जाना आम था. जिस तरह मैदानी इलाकों के लोग नीम की दातून इस्तेमाल किया करते थे उसी तरह उत्तराखण्ड के पहाड़ों में तिमूर या अखरोट के पेड़ की छाल. तिमूर गुणों की खान है.
उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में बहुतायत से पाया जाने वाला तिमूर रूटेसी (Rutaceae) परिवार से है, इसका वैज्ञानिक नाम जेंथेजाइलम अरमेटम (Zanthoxylum Armatum) है. कुमाऊँ में इसे तिमुर, गढ़वाल में टिमरू, संस्कृत में तुम्वरु, तेजोवटी, जापानी में किनोमे, नेपाली में टिमूर यूनानी में कबाब-ए-खंडा, हिंदी में तेजबल, नेपाली धनिया आदि नामों से जाना जाता है. दरअसल 8-10 मीटर ऊंचाई के तिमूर के पेड़ का हर हिस्सा औषधीय गुणों से युक्त है. तना, लकड़ी, छाल, फूल, पत्ती से लेकर बीज तक दिव्य गुणों से भरपूर है.
तिमूर पायरिया को भागता है और इसकी दातून से दन्त रोगों का खतरा ताला जा सकता है. इसकी पट्टियों को बारीक पीसकर उससे भी दांत साफ़ किये जा सकते हैं. इसके बीज मुंह को तरोताजा रखने के अलावा पेट की बीमारियों के लिए भी फायदेमंद हैं. इसकी लकड़ी हाई ब्लड प्रेशर में बहुत कारगर है, इसकी कांटेदार लकड़ी को साफ़ करके हथेली में रखकर दबाया जाए तो ब्लड प्रेशर कम हो जाता है.
तिमूर के बीज अपने बेहतरीन स्वाद और खुशबू की वजह से मसाले के तौर पर भी इस्तेमाल किये जाते हैं. उत्तराखण्ड में भले ही तिमूर से सिर्फ चटनी बनायी जाती हो लेकिन यह चाइनीज, थाई और कोरियन व्यंजन में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला मसाला है.
शेजवान पेप्पर (Sichuan pepper,) चाइनीज पेप्पर के नाम से जाना जाने वाला यह मसाला चीन के शेजवान प्रान्त की विश्वविख्यात शेजवान डिशेज का जरूरी मसाला है. मिर्च की लाल-काली प्रजातियों से अलग इसका स्वाद अलग ही स्वाद और गंध लिए होता है. इसका ख़ास तरह का खट्टा-मिंट फ्लेवर जुबान को हलकी झनझनाहट के साथ अलग ही जायका देता है.
चीन के अलावा, थाईलेंड, नेपाल, भूटान और तिब्बत में भी तिमूर का इस्तेमाल मसाले और दवा के रूप में किया जाता है. इन देशों में कई व्यंजनों को शेजवान सॉस के साथ परोसा भी जाता है.
उत्तराखण्ड में तिमूर की लकड़ी को अध्यात्मिक कामों में भी बहुत महत्त्व दिया जाता है, तिमूर की लकड़ी को शुभ माना जाता है. जनेऊ के बाद बटुक जब भिक्षा मांगने जाता है तो उसके हाथ में तिमूर का डंडा दिया जाता है. तिमूर की लकड़ी को मंदिरों, देव थानों और धामों में प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है.
-सुधीर कुमार
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
हरि दत्त कापड़ी का जन्म पिथौरागढ़ के मुवानी कस्बे के पास चिड़ियाखान (भंडारी गांव) में…
तेरा इश्क मैं कैसे छोड़ दूँ? मेरे उम्र भर की तलाश है... ठाकुर देव सिंह…
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्म स्थली कौसानी,आजादी आंदोलन का गवाह रहा कौसानी,…
मशहूर पर्यावरणविद और इतिहासकार प्रोफ़ेसर शेखर पाठक की यह टिप्पणी डाउन टू अर्थ पत्रिका के…
इन दिनों उत्तराखंड के मिनी स्विट्जरलैंड कौसानी की शांत वादियां शराब की सरकारी दुकान खोलने…
कहानी शुरू होती है बहुत पुराने जमाने से, जब रुद्र राउत मल्ली खिमसारी का थोकदार…