Featured

गढ़वाल के जौनपुर क्षेत्र की इष्ट देवी तिलका का मंदिर

गढ़वाल मंडल के जौनपुर क्षेत्र की सिल्वाड़ पट्टी के बाड़ासारी गाँव में भदरीगाड़ के ऊपर तिरस की सुरम्य घाटी में स्थानीय तिलकादेवी का मंदिर स्थापित है. इसी के ऊपर नागटिब्बा नामक स्थान पर नागदेवता का मंदिर भी है. यहाँ पर वैशाख के महीने में मेले का भी आयोजन किया जाता है. इस मेले में स्थानीय लोग काफी संख्या में भागीदारी करते हैं. इस मौके पर इष्ट देवी की आराधना की जाती है.

इस सम्बन्ध में तिरस घाटी के लोगों के बीच एक जनश्रुति प्रचलन में है, इसमें कहा जाता है कि किसी एक कोली गाँव में भीगू नाम का एक व्यक्ति था जो बहुत ही सज्जन और परोपकारी किस्म का था. समय-कुसमय में रुपये-पैसे से भी लोगों की भी दिल खोलकर मदद किया करता था. इसी वजह से आसपास के गाँवों के के निवासी उसे भिग्गू सेठ भी कहा करते थे. भीगू के 6 पुत्र थे मगर कोई पुत्री नहीं थी. भीगू ने पुत्री की चाहत में नाग देवता की आराधना, तपस्या की. उसने संकल्प लिया कि अगर उसके घर कन्या का जन्म हुआ तो वह देवता को जात देगा. देवता के आशीर्वाद से उसके घर में कन्या का जन्म हुआ, इस कन्या का नाम तिलका रखा गया. भीगू इस मौके पर देवता को जात देना भूल गया.

तिलका एक सुन्दर और सुशील कन्या थी. जवान होने तक वह और रूपवती हो गयी. भीगू ने चिन्यालीसौड़ में उसके लिए वर ढूँढा और विवाह की तैयारी में लग गया. उसके सभी लड़के शादी का सामान लेने के लिए पास ही के एक कस्बे पन्तवाड़ी चले गए. जब वे शादी का सामन लेकर लौट रहे थे तभी रास्ते में पड़ने वाली असलगाड़ नदी में बाढ़ आ गयी. उनके साथ एक दलित भी था. नदी पार करते हुए सभी बाढ़ में बह गए किन्तु वह दलित युवक किसी प्रकार बचने में सफल रहा. उस दलित युवक ने भीगू के घर पहुंचकर इस दुर्घटना की सूचना दी तो उसके घर घर में हाहाकार मच गया. घरवालों के साथ-साथ ही सारा गाँव भी शोक में डूब गया.

कुछ ही समय बाद विवाह की तिथि भी नजदीक आ गयी. अब पुत्री की शादी तो करनी ही थी. किसी तरह भारी मन के साथ कन्या को ससुराल के लिए विदा कर दिया गया. विदाई के बाद कन्या को कहार डोली में बिठाकर ले चले. जब कहार डोली लेकर काड़ी गाँव के पास कौलीसौड़ नामक स्थान पर पहुंचे तो उन्हें पालकी भारी लगने लगी. उन्होंने इसका कारण जानने के लिए उन्होंने डोली को उतारकर उसके भीतर देखा. अन्दर झाँकने पर वे हैरान रह गए. वहां दुल्हन के स्थान पर एक नाग बैठा था. उस समय वह ज्यों ही बाहर निकला तो कोलियों (कहारों) ने उसे मार दिया. मान्यता है कि नाग को मारने के अभिशाप से ही तिलकादेवी के निकठस्थ सात गाँवों से कोलियों का वंशनाश हो गया.

इस खबर को सुनने के बाद भीगू को याद आया कि उसने पुत्री की प्राप्ति होने पर नाग देवता की जात का संकल्प लिया था जिसे वह भूल गया. यह याद आने पर उसने नागटीला के नागदेवता के मंदिर के पास ही पुत्री तिलका के नाम से इस मंदिर का निर्माण करवाया.

उत्तराखण्ड ज्ञानकोष (डी. डी. शर्मा के आधार पर)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

14 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

7 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago