सिताबनी रिज़र्व फ़ॉरेस्ट अपनी बेजोड़ जैव विविधता के लिए जाना जाता है चाहे वनराज हो, नागराज हो या गजराज हो हर तरह के पशु-पक्षियों और जीवों का यहाँ बसेरा है. यह एलिफेंट कोरिडोर के लिए भी जाना जाता है और आसानी से उनके दर्शन हो भी जाते है परंतु यहाँ के बाघों को देखना और उसे अपने कैमरे में उतरना हमेशा से ही टेढ़ी खीर रहा है.
(Tigress of Sitabani)
यहाँ के बाघ बाहरी जगत के लिए हमेशा अनजान ही रहे पर इस मिथक को एक बाघिन ने तोड़ा जो आज सिताबनी का पर्याय बन चुकी है. सन 2018 तक यहाँ के बाघों का तस्वीरों के रूप में कोई संकलन नहीं था तो इसे मैंने एक चुनौती के रूप में लिया और 15 महीने लगातार अथक प्रयास के बाद आख़िरकार अप्रैल 2018 में, मैं यहाँ अपना पहला बाघ कैमरे में उतारने में कामयाब रहा और जिसे मैंने कैमरे में उतारा था वह यहीं बाघिन थी जो दिखने में काफ़ी तगड़ी और तंदुरुस्त थी.
यह मेरी पहली मुलाक़ात थी इस बाघिन के साथ और जब मैंने इस बाघिन की तस्वीरें सोशल मीडिया पर डाली तो इसने काफ़ी सुर्ख़ियाँ बटोरी और लोगों का ध्यान सिताबनी की ओर खींचा. मुझे नहीं पता था कि यह मुलाक़ात एक दिन मुझे इसके इतने नज़दीक ले जाएगी जहाँ मुझे इसके ऊपर पूरी एक कहानी लिखने का मौक़ा मिलेगा.
(Tigress of Sitabani)
उसी साल जून के आख़िरी महीने में मेरे दोस्त को एक बाघ घायल अवस्था में सड़क पार करता हुआ दिखा जिसकी कुछ तस्वीरें उसने अपने मोबाइल फ़ोन में उतार ली और फ़ॉरेस्ट चौकी को भी इस बारे में अवगत करा दिया. ली हुई तस्वीरें उसने अपने फ़ेसबुक पेज पर साझा कर दी जो एकदम से वायरल हो गई. जब मैंने इन तस्वीरों को देखा तो मैं हतप्रभ सा रह गया, क्यूँकि यह वही बाघिन थी जिसे मैंने दो माह पहले ही देखा था. दोनों की धारियाँ (हर बाघ कि अलग अलग धारियाँ होती है) समान थी.
यह एक परेशान करनी वाली ख़बर थी और यह बात मैंने तत्कालीन कैमरा ट्रेप प्रभारी के साथ साझा करी और उन्होंने ये बात उस समय की रामनगर प्रभाग की डी एफ़ ओ से साझा करी. इन तस्वीरों को नज़दीक से देखने पर पता चल रहा था कि ये बाघिन माँ बन चुकी थी और शावकों के साथ थी. मुँह पर लगी चोटें काफ़ी गंभीर नज़र आ रही थी ऐसा लग रहा था कि दूसरे बाघ के साथ हुए आपसी संघर्ष या नर बाघ से अपने शावकों को बचाने में हुए संघर्ष में वह बुरी तरह घायल हो गई थी.
एक कान कटा हुआ साफ़ नज़र आ रहा था और पूरी नाक फटी हुई. ख़ासकर नाक जो पूरे नोसल सिस्टम को बेकार कर सकती थी और इस बाघिन की जान खतरे में पड़ सकती थी. मामले की गम्भीरता को देखते हुए आनन-फ़ानन में एक गश्ती दल नियुक्त कर दिया गया और बिज़रानी जोन से दो हाथी मँगवा लिए गए ताकि घायल बाघिन को रेस्क्यू कर उपचार दिया जा सके. इसके लिए पशु चिकित्सक को भी बुलवा लिया गया और अगले ही दिन से घायल बाघिन की तलाश शुरू हो गई. जगह-जगह कैमरा ट्रेप लगा दिए ताकि उसकी गतिविधि का पता चल सके.
(Tigress of Sitabani)
अगले ही दिन बाघिन कैमरा ट्रेप में नज़र आयी पर गश्ती दल को नहीं मिल पायी. उसके अगले दिन भी बाघिन कैमरा ट्रेप में नज़र आयी पर फिर भी वह गश्ती दल को नही मिल पायी. उसके बाद बाघिन का कोई सुराग नहीं मिल सका और मानसून के चलते रेस्क्यू अभियान बंद कर दिया गया. हालाँकि कैमरा ट्रेप से निगरानी जारी थी पर कोई संतोषजनक ख़बर नहीं मिल पायी.
कोई नहीं जानता था कि वो अब ज़िन्दा भी है या नहीं. तक़रीबन एक माह बाद एक ख़ुशख़बरी आयी कि कोटा रेंज में लगाये गये कैमरा ट्रेप में ये बाघिन नज़र आयी है जो अपने आप में हैरान करने वाली ख़बर थी क्यूँकि इतने गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद भी वह अपने आप को बचाने में कामयाब रही थी.
डारविन की कहावत सर्वाइवल ओफ़ द फ़िटिस्ट मतलब जंगल में जो योग्य है जो बलशाली है उसे ही जीने का अधिकार है, इस बाघिन पर चरितार्थ हो रही थीं. उसके बाद वह कई मौक़ों पर कैमरा ट्रेप व सड़क पार करते हुए राहगीरों को दिखायी दी पर हमेशा अकेले इसका मतलब दूसरे बाघ से हुए संघर्ष में वह अपने शावकों को नहीं बचा पायी थी.
मेरे लिए वो एक तरह से ग़ायब ही रही क्यूँकि काफ़ी प्रयासों के बाद भी में उसे अपने कैमरे में नहीं उतार पाया. समय बीतता गया और नवम्बर 2019 में किसी पर्यटक को एक बाघिन 3 शावकों के साथ टेड़ा ग्रासलैंड नाले में दिखायी दी और उन्होंने ने उसे अपने कैमरे में उतार लिया.
(Tigress of Sitabani)
जब मैंने फोटो देखी तो ख़ुशी का ठिकाना न रहा क्यूँकि यह तो वही बाघिन थी जिसकी नाक फटी हुई थी, जो वास्तव में इसकी पहचान बन चुकी थी. इसका मतलब वह पूरी तरह से ठीक हो गई थी और अब तीन शावकों की माँ थी जो अपने आप में काफ़ी सुकून भरा अहसास था और भावुक कर देने वाले लम्हे भी.
मेरे काफ़ी प्रयास करने के बाद भी में उसको शावकों समेत नहीं खींच पाया हालाँकि इस बीच मुझे इसका एक शावक दो मौक़ों पर दिखायी दिया पर इसे में अपने कैमरे में नहीं उतार पाया. समय बीतता गया और अप्रैल 20 को मुझे वह सड़क किनारे झाड़ियों के बीच आराम करती हुई दिखी पर अकेली जहाँ इसका एक कान साफ़ कटा हुआ नज़र आ रहा था और फटी हुई नाक भी, मानो कभी न भरने वाले घाव.
इसी साल जून के महीने में इसने कोसी नदी के किनारे दो मवेशियों का शिकार कर दिया. ख़ुशक़िस्मती से में समय पर पहुँच गया और जब ये उनमें से एक मवेशी को एक सीधी ढलान से खींचकर ऊपर जंगल की ओर लेकर जा रही थी तब मुझे इसको अपने कैमरे में उतारने का मौक़ा मिल गया. जिस तरह से सीधी चढ़ाई में वह मवेशी को खींचकर ले जा रही थी वह देखने लायक़ लम्हा था उस दिन मुझे इसकी ताक़त का आभास हुआ.
मुझे पता था कि इसके साथ शावक भी हैं और वह पानी पीने के लिये उन्हें बाहर ज़रूर ले के लाएगी पर इतना तो तय था उनकी सुरक्षा हेतु वह इतने खुले में लेकर नहीं आएगी और एक ऐसा पानी का स्रोत मुझे पता था जो जंगल से सटा हुआ था और वहाँ वह अपने शावकों के साथ आसानी से पानी पीने आ सकती है.
मेरा सोचना सही साबित हुआ और अगले दिन घंटों इंतज़ार के बाद आखिरकार मेरे अनुमान के मुताबिक़ वह बाहर निकली और उस पानी के स्रोत के पास आयी और पानी में बैठ गई फिर उसने एक आवाज़ निकाली जो एक संकेत था कि आ जाओ कोई ख़तरा नहीं है. फिर धीरे-धीरे तीनों शावकों ने एक-एक करके आना शुरू किया और माँ के साथ पानी में बैठ गये. ख़ुशकिस्मती से मैं पूरे परिवार को एक साथ अपने कैमरे में उतारने में कामयाब रहा. यह देखना काफ़ी सुखद था कि इतने घायल होने की बाद भी उसने अपना परिवार बनाया और अब सही ढंग से उन सभी शावकों की परवरिश कर रही थी.
(Tigress of Sitabani)
पूरे परिवार की तस्वीरें सोशल मीडिया में साझा करने के बाद तो मानो भूचाल ही आ गया. लॉकडाउन के दौरान ली गई शावकों के साथ इसकी ये तस्वीर रातों रात हर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और हर कोई इसे देखने के लिए प्रयास करने लगा सुबह हो या शाम रामनगर-सीताबनी मार्ग पर गाड़ियों का ताँता लगने लगा.
उसके बाद इससे मेरी मुलाक़ात टेड़ा गाँव के नज़दीक ही मुख्य मार्ग पर हुई जहाँ वह अपने शावकों को सड़क पार करके कोसी नदी को ले जा रही थी. पिछले साल अगस्त माह में इसने रामनगर-सिताबनी मार्ग के किनारे नाले में दिन दहाड़े एक मवेशी को मार दिया जिसकी पूरी शृंखला को में खिचने में कामयाब रहा जो अगले दिन सभी प्रमुख समाचार पत्रों की हेडलाइन थी और सोशल मीडिया में भी काफ़ी वायरल हो रही थी.
इसी शृंखला की तस्वीरें देखते वक्त एक तस्वीर ने मेरे होश उड़ा दिए ज़ूम करके देखने पर पता चला की यह बाघिन अपनी एक आँख भी खो चुकी थी शायद किसी हिरन का शिकार करते हुए उसके सींग से इसकी आँख निकल गई थी. जो भी हुआ था पर यह एक बुरी ख़बर थी क्यूँकि शावक अभी छोटे थे और स्वयं शिकार करने लायक नहीं थे और भोजन के लिए पूरी तरह से माँ पर निर्भर थे.
और एक आँख के चले जाने पर किसी भी शिकारी जानवर के लिए शिकार कर पाना मुश्किल होता है ऐसे में इन शावकों के भविष्य के ऊपर एक सवालिया निशान पैदा हो गया था कि माँ द्वारा शिकार न कर पाने की स्थिति में वो ज़िंदा बच भी पाएँगे या नहीं. लेकिन कहते हैं न जो असली योद्धा होते है वह किसी भी विषम परिस्थितियों से निकल कर आ जाते है और उनका डट कर सामना करते हैं. ये सारी बातें इस बाघिन पर चरितार्थ होती हैं. इसने भी एक योद्धा की तरह हर परिस्थिति का डटकर सामना किया और शिकार करने की अपनी असाधारण क्षमता के बदौलत अपने शावकों को पाल-पोसकर बड़ा कर दिया और मुझे बार-बार ग़लत साबित किया.
(Tigress of Sitabani)
अभी हाल में ही यह मुझे अपने नर शावक के साथ सड़क पार करती हुई दिखायी दी. जिसे देखना काफ़ी सुकून भरा अहसास था क्यूँकि इसे मैं 2018 से देख रहा हूँ. इसने शावकों की परवरिश में कोई लापरवाही नहीं बरती इतने घायल होने के बाद भी वह लगातार शिकार करती रही और उनका पेट भरती रही. आज शावक लगभग पूरे ढाई साल के हो चुके हैं और अपना नया इलाक़ा बनाने की ओर अग्रसर है. आज भी यह अपने शावकों के साथ दिखायी दे जाती है. आज यह सिताबनी की पहचान बन चुकी है और लाखों लोगों की चहेती भी.
इसकी एक झलक पाने के लिए रामनगर-सिताबनी मार्ग पर सैलानियों का ताँता लगा रहता है और जो ख़ुशक़िस्मत होते हैं वह इसकी एक झलक पाकर ही अपने को ख़ुशक़िस्मत समझते हैं. भारी भरकम गठीला डील-डोल जगह-जगह चोटों के निशान इसे एक योद्धा का रूप देते हैं और ये सच में एक योद्धा ही है और इसे सिताबनी की शान.
आमतौर पर बाघ शर्मीले स्वभाव के होते हैं और कम ही दिखायी देते हैं पार इस बाघिन ने इन मान्यताओं को दरकिनार कर अपने निडर व्यवहार के चलते अपनी इन्हीं असाधारण क्षमताओं के बदौलत सिताबनी को आज विश्व पटल पर लाकर खड़ा कर दिया है.
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर सभी प्रकृति प्रेमियों को समर्पित…
(Tigress of Sitabani)
रामनगर में रहने वाले दीप रजवार चर्चित वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और बेहतरीन म्यूजीशियन हैं. एक साथ कई साज बजाने में महारथ रखने वाले दीप ने हाल के सालों में अंतर्राष्ट्रीय वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर के तौर पर ख्याति अर्जित की है. यह तय करना मुश्किल है कि वे किस भूमिका में इक्कीस हैं.
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ये बाघ ही हैं जो उत्तरांचल की शान हैं।