मुझ जैसा आदमी… जिसके पास करने को कुछ नहीं है… जो बिलकुल अकेला हो और उससे बढ़ कर बूढ़ा हो… वह क्या करे? अकेला बैठा बैठा. क्या याद करे अपनी जिंदगी के बीते पल को? कैदी बन गया हूँ अपनी बनाई इस जेल में, मियाँ ग़ालिब की तरह…
यह पीठ का दर्द भी कहीं जाने नहीं देता..
दर्द से राहत कहाँ है?
पीठ से ज्यादा दर्द तो दिल में है, दिमाग में है
इससे उबरने की जितनी कोशिश करता हूँ उतना ही यह उभर जाता है.
अब ये कहाँ चली गई? मेरी छड़ी. कमाल की है ये, आँखें नहीं होतीं, पर रास्ता दिखाती है. इसे रोटी-कपड़ा-मकान-दुकान-जायदाद-आदर-सत्कार कुछ नहीं चाहिये… यह तो बस सहारा देती है-एक बेटे की तरह…
यह सब… मेरे बेटे का ही दिया हुआ है… ये टीवी, रेडियो, फोन. पर उसे नहीं मालूम मुझे वास्तव में क्या चाहिये. मेरी असली जरुरत क्या है?
मुझे चाहिये.. प्यार… अपनापन… हंसी खुशी… हँसते खेलते… चहचहाते नन्हे – मुन्ने बच्चे… नाचते कूदते पोते पोतियाँ… जिनके साथ मैं सारा दिन धमाचौकड़ी मचाऊँ, अपने बचपन के किस्से सुनाऊँ, चित्र बनाऊँ, उनका होमवर्क करूँ.
एकलाप जारी है.
‘शो मस्ट गो ऑन’ का नायक एक बुजुर्ग अभिनेता है जो अपनी आसन्न मृत्यु से पहले विलाप करते हुए जीवन भर किये अपने नाटकों के संवाद बोलता है. और इस क्रम मैं उन्हें अपनी जिंदगी से जोड़ता चला जाता है.
इसमें शेक्सपियर के ‘किंग लियर’, गिरीश करनाड के ‘तुगलक ‘, चेखव के ‘ऑन द हार्मफुल इफेक्ट्स ऑफ़ टोबैको’, विजय तेंदुलकर के ‘सखाराम बाइंडर’, चिं. त्रयं. खानोलकर के ‘एक शून्य बाजीराव’, मोहन राकेश के ‘ लहरों के राजहंस’ और बर्तॉल्ट ब्रेख्त के’ मदर करेज एंड हर चिल्ड्रन’ से मोनोलॉग लिए गये हैं. ये सात मोनोलोग हैं इंद्रधनुष के सात रंगो की तरह. सावधानी से चुने गये मोनोलॉग बुजुर्ग की आसन्न मौत के साथ मिल कर जहाँ आत्म निरीक्षण की भावना पैदा करते हैं, वहीं जीवन के अर्थ, नश्वरता और कला की स्थायी भावना पर विचार करने के लिए भी आमंत्रित करते है.
किंग लियर : जितना बूढ़ा उतना ही दुखियारा भी हूँ मैं. कैसी दुर्दशा बना डाली है मेरी, मेरे बच्चों ने?
बूढ़ा : ए भईया , क्यों आता है यहाँ नाटक करने कोई? क्या यह कोई पेशा है.
मुझे तो भईया, दूसरों का चरित्र निभाने में बड़ा मजा आता है.
तुगलक : उमंगों भरी उम्र है… पूरे आलम को फ़तह करने के ख़्वाब देखने की उम्र है
बूढ़ा : मिलने वालों की अथाह भीड़ मंच पर उमड़ आयी थी. उस भीड़ में वह भी थी. पहली बार किसी लड़की ने मुझसे प्यार जताया था.
सुलेखा : मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ.
बूढ़ा : प्यार-प्यार प्यार और फिर शादी. यही होता है. प्यार न भी हो शादी तो होती ही जाती है.
वह मुझसे ज्यादा पढ़ी लिखी थी.. बड़े बड़े सपने देखती थी… हां प्यार करती थी लेकिन मेरे व्यक्तित्व से… मेरे अंदर के अभिनेता से… मेरी एक्टिंग पर फ़िदा थी.
न्यूखिन : मेरी बीबी अच्छे दिनों… नहीं,नहीं बहुत बुरे दिनों के बारे में शिकायत करती रहती है…
बूढ़ा : स्टेज पर जैसा दिखता था वैसा मैं घर पर कैसे हो सकता हूँ…
सुलेखा : तुम इतने लीचड़, लिजिलिजे आदमी निकलोगे… ऐसा मालूम होता तो तुमसे शादी हरगिज़ -हरगिज़ नहीं करती… जिंदगी बर्बाद कर दी है तुमने मेरी…
सखाराम : कोई बंधन नहीं है. एक दूसरे के साथ रहने की कोई जबरदस्ती नहीं है. तेरे लिए तेरा रास्ता खुला है. मेरे लिए मेरा.
बूढ़ा : फिर वह चली गई मुझे छोड़ कर.. हमेशा के लिए. उस वक्त वो प्रैग्नेंट थी… बहुत मनाया माफ़ी मांगी… बहुत कहा वापस चलने को… मगर वह नहीं आई… मैंने बच्चे के सर पर हाथ फेरा उसे चूमा और लौट आया.
बाजीराव : बेटा वो खिड़की है न? उसके पीछे मैं खड़ा हूँ. वहां भी खड़ा रहने के लिए जगह नहीं है…
बूढ़ा : पत्नी ने साथ नहीं दिया… बच्चे के साथ नहीं रह पाया… किसने किसको छोड़ा क्या मालूम
नन्द : यहाँ हो या वहां सब जगह मैं अपने को एक सा अधूरा अनुभव करता हूँ
आनंद : किसकी मौत.. कौन… मेरी बीबी?… ओह नहीं… नहीं शो तो होगा… शो कैंसिल नहीं कर सकते.. शो मस्ट गो ऑन.
बूढ़ा : मुझे बताना है सबको… दिखाना है… मैं अब भी अभिनय कर सकता हूँ… मैं एक अभिनेता हूँ. अभिनेता… मरते दम तक अभिनय कर सकता हूँ… एक सिपाही की तरह… मरते दम तक… मरते दम तक.
वह वहां बैठी है ठीक उसी रो की उसी सीट पर… देखो अभी ताली बजाएगी… चुप! शs शs चुप हो जाओ… यह मेरी जिंदगी का बेस्ट शो है… बेस्ट एंड लास्ट
शो मस्ट गो ऑन…
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रोफेसर (डॉ) अभिलाष पिल्लई हिमांशु जोशी के लिखे व निर्देशित किये नाट्यालेख ‘शो मस्ट गो ऑन ‘ के लिए लिखते हैं कि यह लम्बे समय तक अभिनेताओं, निर्देशकों और दर्शकों को समान रूप से प्रेरित करेगा और बातचीत के लिए उकसाता रहेगा.
पिथौरागढ़ में जन्मे और पले-बढे हिमांशु पिछले तीन दशकों से रंगकर्म को साध रहे हैं जिसमें करीब पच्चीस साल राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली में रहते उन्होंने नाटक लिखे ,कई महत्वपूर्ण नाटकों का अनुवाद किया रंगसज्जा की व निर्देशन में कुशलता हासिल की. कुछ नया सा कर गुजरने की ललक रही तो मौलिक प्रयोग कर डाले जो काफी सराहे गए. इनमें सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का नाटक ‘हवालात’ और विपिन कुमार अग्रवाल का ‘तीन अपाहिज’ नाटक का फ्यूज़न उन्होंने ‘चने’ के रूप में निर्देशित किया. इसी तरह ‘छतरियां’ नाटक मोहन राकेश के पार्श्व नाटक ‘छतरियां’ और चंद्र शेखर पाटिल के नाटक ‘कोडगालू’ पर आधारित था. शिववर्मा द्वारा लिखे ‘शहीद भगत सिंह’ के संस्मरण व ख्वाजा अहमद अब्बास की रचना ‘बम्बई के फुटपाथ पर एक हजार रातें ‘ को आधार बना ‘हमजोली’ नाटक तैयार हुआ. सिखों के छटवें गुरु श्री हरिकिशन साहिब जी के जीवन और उनकी शिक्षाओं पैर रकीब गंज गुरुद्वारा में ध्वनि और प्रकाश का शो ‘ऐसा गुरु बड़ भागी पाया’ के नाम से किया. इनके साथ ही विश्व प्रसिद्ध रचनाओं जैसे जी. शंकर पिल्लई की ‘खोज’, शेक्सपीयर की ‘रोमियो एंड जूलियट’, भीष्म साहनी की ‘तमस’ और निराला की लम्बी कविता ‘राम की शक्ति पूजा’ पर नाटक लिखे. इनके साथ ही सोलो प्ले ‘शो मस्ट गो ऑन’ बहुचर्चित रहा.
अरुणाचल में हुए 1839 के ताई खामटी विद्रोह पर नाटक ‘चौफा -प्लांग -लू ‘लिखा जिसका निर्देशन रिकेन नोमले ने किया.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिए हिमांशु ने सलमान रश्दी की ‘मिडनाइट चिल्ड्रन’ व शमा फतेहल्ली की किताब ‘ताजमहल’का हिंदुस्तानी में अनुवाद किया. इन पर आधारित नाटकों का निर्देशन अभिलाष पिल्लई ने किया और ये दोनों ही प्रस्तुतियां बहुत सराही गयीं .राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की रेपेट्री के लिए असम की युवा शक्ति की असमंजस भरी स्थितियों को ले कर हिमांशु ने ‘मेमसाहब पृथ्वी’ नाटक लिखा जिसका निर्देशन रबिजिता गोगोई ने किया.
बच्चों की थिएटर कार्यशालाओं के आयोजन में हिमांशु बहुत तन्मयता से डूब जाते और इसी का नतीजा था विज्ञान आधारित नाटक ‘इक्कीसवीं सदी की दादी’ और ‘मंगल गृह का रहस्य’ व ‘चरखा’ जो सबके द्वारा खूब सराहा गया. अभिलाष पिल्लई के निर्देशन में केरल में संपन्न एक कार्यशाला में ग्रैंड सर्कस की सहभागिता से राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों को ले कर उन्होंने ‘क्लाउन्स एंड क्लाउड्स’ नाटक का सहलेखन किया. हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठित कवि भवानी प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व व कृतित्व पर उन्होंने ‘हाँ में गीत बेचता हूँ ‘ नाटक लिखा जिसका निर्देश नदीम खान ने किया व हिंदी अकादमी ने इस नाटक की प्रस्तुति की.
निर्देशक जयंत मितेई के दिग्दर्शन में एक्स थिएटर एशिया, ताइवान में उनकी नाट्य रचना ‘कर्ण ‘ का मंचन किया गया. विदेशी नाटकों में हिमांशु ने लोरेन हंसबेर्री के नाटक ‘ए रेजिन इन द सन’ का हिंदी नाट्य रूपांतरण किया जिसे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों के लिए अनिरुद्ध खुतवाड़ ने निर्देशित किया. डगलस कार्टर बीन की कृति ‘एज बीज इन द हनी ड्रोन’का हिंदी रूपांतरण भी महत्व पूर्ण रहा जिसे रानावि के छात्रों को ले यूरेग्वे के मारियाना वेंस्टीन ने निर्देशित किया. राट्रीय नाट्य विद्यालय के नाट्य जर्नल रङ्गप्रसङ्ग में उनके द्वारा अनुवादित ‘ए वीमेन अलोन’ नाटक प्रकाशित हुआ जो डरियो फ़ो की मूल कृति थी.
हिमांशु जोशी के द्वारा किये गये अनुवादों और नाट्य रूपान्तरणों में सलमान रश्दी की चर्चित रचना ‘मिडनाइट चिल्ड्रन’ चर्चा में रही.शमा फुतेहल्ली लिखित ‘ताजमहल’ पर उनकी नाट्य रचना का शिल्प सराहा गया जिसका निर्देशन अभिलाष पिल्लई ने किया. इसी प्रकार लारेन हैंसबरी की रचना ‘अ रेजिन इन द सन’ का निर्देशन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में अनिरुद्ध खुटवड ने किया. डगलस कार्टर बेन की कृति ‘एज बीज इन हनी ड्रोन पर आधारित नाटक का निर्देशन मारियाना वेनस्टीन ने किया. उनकी रचनाओं पर देश विदेश के चर्चित नाट्य निर्देशकों द्वारा सफल व चर्चित प्रस्तुतियाँ समय-समय पर होती रहीं. दारियो फो की रचना ‘अ वुमन एलोन’ पर आधारित नाटक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका रंग प्रसंग में प्रकाशित हुआ. आलोचना, कथन, साक्षात्कार, जनसत्ता में उनकी रचनाएं व नटरंग व रंग प्रसंग में रंगकर्म पर लेख छपते रहे हैं.
निर्देशक के रूप में हिमांशु ने जो सफल प्रस्तुतियाँ कीं उसमें जी शंकर पिल्लई का नाटक ‘खोज’, भीष्म साहनी का ‘हानूश’, ख़्वाजा अहमद अब्बास का ‘बम्बई के फुटपाथ पर एक हज़ार रातें’ मुख्य रहे.
रंगमंच की दीक्षा प्राप्त करते हिमांशु को अनेक जूनियर व सीनियर फेलोशिप प्राप्त हुईं. अपनी योग्यता व रंगकर्म के समर्पण से उन्होंने इस विधा में दक्षता हासिल की और रंगमंच प्रशिक्षक व अध्यापक भी रहे. रंगमंच के हर पक्ष पर उनकी रूचि रही. वह एक कुशल शिल्पी के रूप में सभागार निर्माण परामर्शदाता भी रहे. देश के कई आयोजनों के साथ जापान, लंदन, बेलफास्ट, मारीशस, ताइवान व दुबई के आयोजनों में प्रतिभाग किया.
लेखन-निर्देशन के साथ ही हिमांशु नाटकों की प्रकाश व्यवस्था के लिए भी प्रयोगधर्मी रहे. क्षितिज थिएटर ग्रुप के लिए उन्होंने कीर्ति जैन के निर्देशन में प्रस्तुत नाटक सुवर्णलता की प्रकाश व्यवस्था की, देश के प्रसिद्ध प्रकाश परिकल्पकों में शुमार हुए. अभी तक डेढ़ सौ से अधिक नाट्य व नृत्य प्रस्तुतियों के साथ प्रदर्शिनियों की प्रकाश परिकल्पना कर चुके है. हिमांशु कई उल्लेखनीय नाट्य महोत्सवों के समन्वयक व परिकल्पना सृजक रहे. उन्हें पोस्टर-ब्रोशर व विवरणिका डिज़ाइन का गहरा अनुभव है.अभी वह प्रतिष्ठित रंगमंच पत्रिका ‘नटरंग’ के अतिथि संपादक हैं.
उनके एकल नाटक ‘शो मस्ट गो ऑन ‘ का प्रकाशन समय साक्ष्य ने किया है.
जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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