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माधो सिंह भण्डारी : उत्तराखण्ड के इतिहास का पराक्रमी योद्धा

माधो सिंह भण्डारी उत्तराखण्ड के मध्यकालीन इतिहास के वीर योद्धा हैं. माधो सिंह भण्डारी के शौर्य व पराक्रम के किस्से आज भी कहे-सुने जाते हैं. माधो सिंह भण्डारी का जन्म सत्रहवीं शताब्दी के अंत या अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में माना जाता है, इनकी जन्मतिथि के बारे में एक राय नहीं है. (Warrior Madho Singh Bhandari)

गढ़वाल मंडल के कीर्तिनगर के पास मलैथा गांव में जन्मे भण्डारी राजा महिपतशाही का एक बहादुर सैनिक हुआ करता था. अपनी बहादुरी की वजह से वे जल्द ही उपसेनानायक व बाद में सेनानायक बने.

जब गढ़वाल की उत्तरी सीमा पर तिब्बती सेनाएं लगातार हमले व लूटपाट कर रही थीं तो राजा ने उनसे निपटने के लिए अपनी सेना भेजी. महिपतिशाह की इस सेना का नेतृत्व सेनापति रिखौला लोधी के हाथ में था और उसके सहायक थे माधो सिंह भण्डारी.

गढ़वाल की इस सेना ने जल्द ही दापा मंडी के किले और बौद्ध मठ पर कब्ज़ा कर लिया. इसके कुछ समय बाद दापा में मौजूद सेना की सहायता के लिए लहासा से विशाल तिब्बती सेना पहुंच गयी. सन 1635 में दापा के मैदान में हुई इस लड़ाई में रिखौला लोधी मारा गया. इसके बाद माधो सिंह भण्डारी को सेनानायक बनाया गया.

माधो सिंह भण्डारी ने अपनी बहादुरी और व्यूहरचना से तिब्बती सेना पर जल्द ही आतंक कायम कर लिया. तिब्बती सैनिक माधो सिंह भण्डारी का नाम सुनकर भागने लगे. इस युद्ध में माधो सिंह भण्डारी गंभीर रूप घायल हो गए. अपने बहादुर सेनापति के घायल होने से गढ़वाली सेना में हताशा फैलने लगी और तिब्बती खुश होने लगे. तिब्बती सेना के शिविर में ख़ुशी के मौहौल ने भण्डारी के माथे पर बल ला दिए. वह अपनी सेना की सुरक्षा के लिए परेशान हो गया.

खुद के जिंदा रहने की कोई उम्मीद न देखकर माधो सिंह भण्डारी ने अपने सैनिकों को सलाह दी कि उसे गोली मार दी जाये और उसके शव को सेनापति की वेशभूषा में सजाकर घोड़े पर बिठाकर युद्ध क्षेत्र में घुमाए. जिससे दुश्मन को लगे की भण्डारी अभी भी जीवित है. माधो सिंह भण्डारी के दृढ संकल्प को देखकर गढ़वाली सैनिक ऐसा करने में विवश हो गए. ऐसा करने से तिब्बती सैनिकों का उत्साह धीमा पड़ गया, उनके खेमे में निराशा फैल गयी. इस स्थिति का फायदा उठाकर गढ़वाली सेना सकुशल अपने खेमे में वापस लौट सकी. इस तरह माधो सिंह भण्डारी ने अपने जीवन का बलिदान देकर सैनिकों का कत्लेआम होने से बचा लिया.

माधो सिंह भण्डारी की वीरगाथा के पंवाड़े आज भी कहे जाते हैं—

एक सिंह रण, एक सिंह बण, एक सींग गाय का.
एक सिंह माधो सिंह और सिंह काहे का.

सन्दर्भ : उत्तराखण्ड ज्ञानकोष – प्रो. डी. डी. शर्मा   (Warrior Madho Singh Bhandari) 
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Sudhir Kumar

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