पिथौरागढ़ में पहली गाड़ी के विषय में कई किस्से कहानियां लोकप्रिय हैं. अधिकांश लोगों का मानना है कि यहां आने वाली पहली बस के.एम.ओ.यू. की बस थी, कुछ लोगों का कहना है कि बस नहीं पहली बार पिथौरागढ़ आने वाला एक ट्रक था. पहली बार बस आने के दिन बस स्टैंड पर उत्सव का माहौल था, उस दिन कस्बे के सभी स्कूलों का बंद होना, पहली बस के इंजन का लाल रंग का होना, पहली बार रोड रोलर लाने वाले ड्राईवर का भव्य स्वागत जैसे अनेक किस्से इससे जुड़े हैं. पिथौरागढ़ में सड़क परिवहन से जुड़ा भवानीदत्त खर्कवाल के लेख का एक महत्वपूर्ण अंश हम साझा कर रहे हैं : संपादक.
टनकपुर-पिथौरागढ़ मार्ग 1950-51 में बनकर पूरा हुआ. पिथौरागढ़ से टनकपुर मार्ग की पैदल दूरी 67 मील थी. साधारण लोग इसे तीन दिन में पार करते थे पर अच्छा चलने वाले दो दिन में. (The first bus to Pithoragarh came in 1952)
मैदान से सामान खच्चरों और घोड़ों में आता था. जुलाई में घाट और चल्थी के कच्चे पुल तोड़ दिये जाते थे. ट्रांसशिपमैंट होता था. झूला पुलों से पैदल जाना पड़ता था. बरसात के कारण कच्चा रास्ता बंद भी हो जाता था. तब खच्चरों में स्टील ट्रंक और होल्डोल लादकर हमारा दल पैदल चल पड़ता था. (The first bus to Pithoragarh came in 1952)
पिथौरागढ़ से टनकपुर जाने में पूरा दिन लगता था. धूल से सने हुए व कुछ यात्रियों की उल्टी की बदबू सहन कर अधमरी अवस्था में गंतव्य स्थान पर पहुँचते थे. हां के.एम.ओ.यू. की फ्रन्ट सीट में बैठने की होड़ रहती थी.
इस रोड के खुलने के बाद पिथौरागढ़ में सबसे पहले वी.आई.पी. सेना प्रमुख जनरल के.एम. करियप्पा का आगमन एक बड़ी घटना थी. बस स्टैंड पर एकत्रित अपार जन समूह का उत्साह देखने लायक था.
अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मोटर मार्ग बहुत बाद में बना. तब पिथौरागढ़ से अल्मोड़ा की दूरी 54 मील थी. टनकपुर-पिथौरागढ़ मार्ग में एक कठिन चढ़ाई नौ ड्योढ़ी की मानी जाती थी.
पिथौरागढ़-अल्मोड़ा मार्ग के लिये कहावत थी –
रौल गौं की सोल धार
कां हाट कां बाजार.
हाट-गंगोली हाट, बजार- पिथौरागढ़
भवानीदत्त खर्कवाल का यह लेख पहाड़ पत्रिका में ‘मेरा सोर : कुछ यादें’ नाम से छपा है. काफल ट्री द्वारा भवानीदत्त खर्कवाल के लेख का यह अंश पहाड़ पत्रिका से साभार लिया गया है.
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