Categories: Featuredसमाज

थल: सांस्कृतिक व व्यापारिक महत्व का पहाड़ी क़स्बा

उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल का सीमान्त क़स्बा है थल. यह रामगंगा के दोनों तटों पर आमने-सामने बसा है. यह पिथौरागढ़ जिले के प्राचीन कस्बों में से एक है. 1962 तक थल अल्मोड़ा जिले का विकासखण्ड हुआ करता था. 2014 में बेरीनाग तथा डीडीहाट तहसील के सौ से अधिक गाँवों को मिलाकर इसे एक तहसील के रूप में गठित किया गया, हालाँकि तहसील ने काम करना सितम्बर 2015 से शुरू किया. तट के दक्षिणी छोर पर बसे थल को पुराना थल और बाएं तट छोर की बसावट को नया थल भी कहा जाता है. थल के लोग दो विकासखण्डों में बंटे होने के कारण 2 विधानसभा क्षेत्रों के विधायक चुनते हैं. किसी समय इस क्षेत्र में यहाँ पर रामगंगा पर कोई पुल न होने के कारण चारों दिशाओं से आने वाले रस्ते यहीं पर मिला करते थे. 1962 में थल में रामगंगा नदी पर लम्बा पुल बना दिया गया.

पुराने समय में जोहार क्षेत्र का परिवहन इसी रास्ते हुआ करता था. थल इस पूरे क्षेत्र का व्यापारिक केंद्र भी हुआ करता था. इसी वजह से यहाँ पर मकर संक्रांति, विषुवत संक्रांति और शिवरात्रि के मौके पर धार्मिक मेलों का आयोजन हुआ करता था, इन मेलों में बड़े पैमाने पर व्यापार भी हुआ करता था. अपने व्यावसायिक महत्त्व की वजह से ही उन दिनों ये मेले हफ्ता-दस दिन तक भी चला करते थे. इसमें शौक व्यापारी और मैदानी क्षेत्रों के व्यापारी माल की खरीद-फरोख्त किया करते थे. उससमय शौक व्यापारी तिब्बत से लाया गया ऊनी माल भी यहाँ पर बेचा करते थे. बाद में भारत-तिब्बत व्यापार के ख़त्म हो जाने व अन्य कई वजहों से इन मेलों का व्यापारिक स्वरूप समाप्त हो गया. अब ये मेले सिर्फ धार्मिक महत्त्व के ही रह गए हैं. बाद में स्थानीय किसानों को लाभ पहुँचाने की गरज से थल में मंडी परिषद की योजना के तहत 2 करोड़ रुपए की लगत से मंडी का निर्माण किया गया.

थल को एक तीर्थस्थल के ही रूप में जाना जाता है. इसकी वजह यहाँ पर किया जाने वाला गंगास्नान व बालेश्वर मंदिर भी है. बालेश्वर मंदिर के माहात्म्य जिक्र स्कंद्पुरण (मानसखण्ड) में भी किया गया है.

थल का बालेश्वर मंदिर भी चम्पावत के बालेश्वर मंदिर की ही तरह काफी पौराणिक है. आधी शताब्दी बाद जीर्ण-शीर्ण हो चुके इस मंदिर का जीर्णोद्धार चन्द शासक उद्योतचन्द द्वारा 1686 में करवाया गया. मल्ल राजाओं द्वारा इस मंदिर में पूजा अर्चना के काम के लिए कई गांवों को तय किया गया था.

एक पावन तीर्थ के साथ ही कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर होने के कारण यहाँ श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धर्मशालाएँ भी हुआ करती थीं. किसी वक़्त कैलास मानसरोवर जाने वाले यात्री पूर्वी रामगंगा पार करके हथुवा (एक हथिया देवल) होते हुए थल आते थे. यहाँ पर स्नान, विश्राम करने के बाद डीडीहाट, अस्कोट के लिए निकलते थे. एक हथिया देवल थल से 2 किमी की दूरी पर अल्मियां गाँव में पत्थर की चट्टान को काटकर बनाया गया है.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago