इन दिनों पहाड़ में ककड़िया लग चुकी हैं लेकिन अब ककड़ी चोर नहीं हैं. ककड़ी चोर सुनते ही दिमाग में न जाने कितनी यादें एक साथ आ जाती हैं. पहाड़ में जिसने स्कूल पड़ा हो और ककड़ी न चुराई हो तो उसकी स्कूल की पढ़ाई ही अधूरी है.
लम्बे समय बाद जब दो पहाड़ी दोस्त मिलते हैं तो ककड़ी चोरी का किस्सा उनकी बातों का एक अनिवार्य हिस्सा होता है. हम सबके पास अपने-अपने ककड़ी चोरी के अनुभव होते हैं. ये अनुभव ऐसे होते हैं कि हम ककड़ी चोरने के लिये एक गाइडेंस बुक बना सकते हैं.
जैसे कि ककड़ी चोरी के समय घर के बड़े बुजुर्ग की कमीज या कुर्ता पहन कर जायें. इसके अपने कुछ फायदे हैं, पहला फैले और बड़े होने की वजह से इनके भीतर ककड़ी आसानी से छुप जाती है और सिन्ना लगने से भी यह बचाव करता है, दूसरा गांव के अधिकांश बुजुर्गों के कपड़े एक ही रंग के होते हैं तो किसी के देख लेने के बाद भी फसने का डर कम रहता है.
इसी तरह ककड़ी तोड़ने के लिये तेजधार वाली ब्लेड या छोटी चाकू ले जायें, घुमाकर ककड़ी तोड़ने में समय लगता है. ककड़ी तोड़ने से पहले उस पर हाथ फेरकर उसके दानेदार होने का एहसास जरुरी है क्योंकि इस मौसम में लौकी भी बहुत होती है. बरसात में जौंक भी खूब होती है इसलिये अपना बचाव घर करके जाना चाहिये.
पहाड़ों में ककड़ी चोरी एक सिक्रेट मिशन स्तर पर की जाती है. इस मिशन को स्कूल से आते-जाते प्लान किया जाता है. मिशन का सबसे उपयुक्त समय रात का है लेकिन सिद्धहस्त ककड़ी चोर दिन में 12 से 3 के बीच भी मिशन पूरा कर लेते हैं.
रात के समय चोरी की गयी ककड़ियों को स्कूल के रास्तों में छुपा दिया जाता है और अगले दिन स्कूल में मध्यान्ह के समय ककड़ी दोस्तों में बंटती है. जिन स्कूलों में लड़का-लड़की दोनों पड़ते हैं वहां सिलपट्टे में पिसा हरा नमक लाने की जिम्मेदारी लड़कियों की रहती है नहीं तो यह जिम्मेदारी ककड़ी चोरी के समय पहरा देने वाले की रहती है.
ककड़ी चोरी के मिशन में डबल क्रास का खतरा हमेशा बना रहता है. लेकिन हमारे बुजुर्ग इसका भी इलाज बता गये हैं. ककड़ी के उपरी हिस्से को काटकर उसे ककड़ी में रगड़कर उसका कड़वापन दूर किया जाता है उसके बाद कटे हुये हिस्से को पेट में चिपकाया जाता है जिसके पेट में ककड़ी का कटा हुआ उपरी हिस्सा चिपक जाता है वही ककड़ी चोर है.
ककड़ी चोरी के विषय में सबसे जरूरी बात यह है कि ककड़ी चोरी करने वाले को किसी भी प्रकार की गालियां नहीं लगती हैं.
ककड़ी चोरी का यह मिशन पूरी तरह से पहाड़ के युवाओं के कन्धों पर था अब पहाड़ों में युवा ही नहीं रहे तो ककड़ी चोरी कहां होगी. अब तो पहाड़ में रह गये हैं तो ककड़ी का नाश करने वाले बंदर.
अगर आपके पास भी अपने ककड़ी चोरी के कोई किस्से-कहानियां है तो कमेन्ट बाक्स में जरुर बतायें.
-काफल ट्री डेस्क
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अद्भुत संस्मरण...दिल खुश हो गया पढ़कर। बधाई आपको!
Bahut acchha lekh aate hai. Aajkal bahut Kam log aise likhate hai. Kafaltree group ko hamari shubkamna.
Whaaaa. Bahut accha ... great article.. love u Kafal tree.. God bless u..