बुरा मान गए हमारे पितर

चौमास बीता. श्राद्ध भी बीत गए. आस पास के बृत्ति ब्राह्मणों के साथ घर के बड़े बूढ़े, कच्चे बच्चे सब श्राद्धों का खाना खा के तृप्त थे. खेतों सग्वाडो में कद्दू पक के पीले पड़ गए. ककड़ियां पीली लाल हो गयी. माँ चाचियाँ दिन भर उड़द की दाल को सिलवटे में पीस कर ककड़ी, भूज और लौकी की बढ़िया बनाकर सूखने के लिए पूरा गुठ्यार भर देती. मक्की के दानों से भरे झुण्ड उसके छिलकों से बाँध के कर दादी ने छज्जा के ऊपर रस्सी बांध के सूखने के लिए टांग दी.

सुबहें और रातें सर्दीली हो गयी. पहाड़ियों पर ऊगा हरा घास पिंगलाने लगा. रातें साफ़ जगर मगर तारों से भरे नीले आसमान से पाला गिराती. स्लेट की छतें सुबह पाले की बिना बूँद के बारिश से भीगी टप टप टपकती. ये दिन त्योहारों की खुनक से भरे बच्चों को बौराये रखते. सब बच्चे रो अँगुलियों में बग्वाली आने के दिन गिनते.

दूर पहाड़ों से डार की डार मल्यो आते और जिन खेतों में गेहूं की बुआई हो जाती उनमे डाले बीज को मिनटों में चुग जाते. लोग जोर जोर से ह्वा ह्वा करते उन्हें उड़ाने की कोशिश करते तो पूरी मल्यो की डार दूसरे खेत में बैठ जाती.

दादी कहती हे राम बाबा शिवजी के कैलाश में पाला जम गया मल्यो की डार घाम तापने भाबर को जा रही है. हम बच्चे रुमुक पड़ते ही ठण्ड के मारे बिस्तरों में दुबक जाते. दादी कहती जो तुम चुपचाप रहोगे रौला नहीं करोगे तो आज मैं पितरों की कहानी सुनाऊँगी. तब क्या हम सब गर्र से दादी को घेर कर बैठ गए.

त सुनो बाबा जमानों की बात है ये, बल पुराने ज़माने में ऐसा होता था कि जब कोई भी मर जाता था वो जलाने के बाद भी लौट कर अपने घर आता जाता रहता था. एक बार क्या हुआ वो सामने अमेली के डाण्डे के पार किसी गांव में चन्दना नाम की लड़की की माँ मर गयी. चंदना दिन रात अपनी माँ को याद करके रोती रहती. अपने शोक में उसने खेतों में काम करना भी छोड़ दिया. गाँव के सब लोगों के खेतों में धान की गुड़ाई हो गयी अर इधर चंदना के खेतों में अलबाड़ झलबाड़ जमा हुआ था.

एक दिन सुबह उठ कर चंदना क्या देखती है कि सारे खेत में गुड़ाई हो गयी. उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि रातों रात उसके खेतों में गुड़ाई किसने की. उस दिन के बाद से चंदना के खेतों का हर काम गुड़ाई, निराई, कटाई, मण्डाई गांव में सबसे जल्दी होने लगी. जो भी ये काम करता वो रात को ही करता इस लिए चंदना काम करने वाले व्यक्ति को छह कर भी देख नहीं पाई. लोग कहते हे ब्वै चंदना तो अपनी माँ के मरने के बाद बहुत किसाण हो गयी.

एक दिन चंदना ने सोचा जो भी मेरा काम करता है उसे पकड़ कर उसको कुछ खिलाना चाहिये. उसने हलवा बनाया और खेत के किनारे एक घने बुज्या (झाडी) में छिप कर बैठ गयी. बाबा देखती क्या है कि उसकी माँ अँधेरे से निकल कर खेत में आ कर काम निबटाने लगी.

चंदना माँ – माँ करती बुज्या से निकल आई. दोनों माँ बेटी एक दूसरे को देख कर बहुत खुश हुई. दोनों ने मिल कर हलवा खाया और काम करने लगी. होते करते दिन बीतने लगे. एक दिन फूल फटक की जुन्याली रात में माँ चंदना से बोली हे बाबा भौत दिनों से मेरे सिर में खुजली हो रही है जरा ठुनगे (दोनों अंगूठों से कटांग) मार दे.

जैसे ही चंदना ने माँ के बालों में हाथ लगाये वो वाक् करके उबकाने लगी बोली हट माँ तुझसे जलांध आ रही है. माँ को बहुत रोना आया बोली मैंने तुझे पैदा किया अपना दूध पिलाया,पाला पोषा, सारी जिंदगी तेरे सुख दुःख में शामिल हुई और आज तुझे मेरे शरीर से गंध लग रही है. आज से मै कभी लौट कर नहीं आउंगी.

द बाबा उस दिन से कोई मरा हुआ व्यक्ति दुबारा लौट कर नहीं आया. जिन लोगों को हम इतना प्यार करते हैं, इतना मान करते है मरने के बाद उन्हें जब जला देते हैं तो उनसे चिरान्ध तो आएगी ही न. बुरा मान गए हमारे पितृ बाबा. जो गए सो गए. जै पितृ देवताओं की, जै भूमि के भुमिया की, जै खोली के गणेशा. रक्ष्या करो महराज रक्षा करो.

 

-गीता गैरोला

देहरादून में रहनेवाली गीता गैरोला नामचीन्ह लेखिका और सामाजिक कार्यकर्त्री हैं. उनकी पुस्तक ‘मल्यों की डार’ बहुत चर्चित रही है. महिलाओं के अधिकारों और उनसे सम्बंधित अन्य मुद्दों पर उनकी कलम बेबाकी से चलती रही है. काफल ट्री की नियमित लेखिका.

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