कहानी तब तक जिन्दा रहेगी जब तक पहाड़ में स्त्री होगी

वर्षों बीते पर बात जिन्दा है. मैं ठहरी जन्मजात आवारा. इसी आवारगी में एक अम्मा के साथ मिलना हुआ अल्मोड़े के किसी सुदूर गांव में, गुड़ के कटके वाली खूब दूधी चाय की गरमागरम घूंट मारती जुबान चुप कहां रहती. सो नजरों से घर के ओने-कोने को खोजती परम्पराओं का निबाह करते अम्मा से बोली, “बच्चे कितने हैं अम्मा जी.” “चार बच्चे हैं इजू.”

घोर खड़ी चढ़ाई से लस्त-पस्त जिस्म के साथ मन को भी लसपसी चाय ने पैना कर दिया. खोजी निगाहें तीर बन गयी. दिखते नहीं कहीं – मैंने टोह लगाई. अभी तो खाना भी बाकी था. घर में कोई हो तो बात बने. आशा भरी आँखों खाली गिलास बगल में धरा.

“तो फिर घर के बाकी लोगों से भी तो मिलवाओ अम्मा.” “चल इजू चल.”

और हम पीछे वाले खेत में खड़े हो गये. “वो देख मेरे चारों बच्चे” – सामने खड़े आम के सघन पेड़ों की तरफ उंगली का इशारा करती अम्मा बोली. “कहाँ? वहां तो कोई भी नहीं है!”

मुझे बुढ़िया के सनकीपन पर खीझ हो आई. “इजू जहाँ तुझे कोई नहीं दीखता, वहीं मेरा पूरा परिवार खड़ा है .बस ये नजरों का फेर है … मेरे ये लाड़ले तुझे नहीं दिखेंगे, जिन चार आदमजातों को मैंने नौ महीने इस पेट में अपना खून पिला के पाला वो तो पंख पनपते ही फुर्र हो गये. मैंने उनके लौटने के रास्ते में पत्थर फरका दिया. इन्हें भी मैंने खाद पानी डाल के पोसा. अब ये मुझे पाल रहे हैं. हर साल खूब फलते हैं. इनके फलों को बेच के मेरा सारे साल भर का खर्चा निकल जाता है. मैं जितना इन्हें खाद पानी देखभाल देती हूँ उतने ही लाड़ में आकर ये झूम-झूम के अपनी शाखों से मुझे दुलराते हैं.”

हां, यह कहानी तो तब तक जिन्दा रहेगी जब तक पंखों का अहंकार जिन्दा रहेगा.

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

-गीता गैरोला

देहरादून में रहनेवाली गीता गैरोला नामचीन्ह लेखिका और सामाजिक कार्यकर्त्री हैं. उनकी पुस्तक ‘मल्यों की डार’ बहुत चर्चित रही है. महिलाओं के अधिकारों और उनसे सम्बंधित अन्य मुद्दों पर उनकी कलम बेबाकी से चलती रही है. वे काफल ट्री के लिए नियमित लिखेंगी.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

Recent Posts

पहाड़ से निकलकर बास्केटबॉल में देश का नाम रोशन करने कैप्टन हरि दत्त कापड़ी का निधन

हरि दत्त कापड़ी का जन्म पिथौरागढ़ के मुवानी कस्बे के पास चिड़ियाखान (भंडारी गांव) में…

2 weeks ago

डी एस बी के अतीत में ‘मैं’

तेरा इश्क मैं  कैसे छोड़ दूँ? मेरे उम्र भर की तलाश है... ठाकुर देव सिंह…

2 weeks ago

शराब की बहस ने कौसानी को दो ध्रुवों में तब्दील किया

प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्म स्थली कौसानी,आजादी आंदोलन का गवाह रहा कौसानी,…

3 weeks ago

अब मानव निर्मित आपदाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं : प्रोफ़ेसर शेखर पाठक

मशहूर पर्यावरणविद और इतिहासकार प्रोफ़ेसर शेखर पाठक की यह टिप्पणी डाउन टू अर्थ पत्रिका के…

3 weeks ago

शराब से मोहब्बत, शराबी से घृणा?

इन दिनों उत्तराखंड के मिनी स्विट्जरलैंड कौसानी की शांत वादियां शराब की सरकारी दुकान खोलने…

3 weeks ago

वीर गढ़ू सुम्याल और सती सरू कुमैण की गाथा

कहानी शुरू होती है बहुत पुराने जमाने से, जब रुद्र राउत मल्ली खिमसारी का थोकदार…

3 weeks ago