Shiv Prasad Joshi

प्रकट सुंदरता के भीतर कितने जलजले – आलोक धन्वा की कविता – 2प्रकट सुंदरता के भीतर कितने जलजले – आलोक धन्वा की कविता – 2

प्रकट सुंदरता के भीतर कितने जलजले – आलोक धन्वा की कविता – 2

(पिछली कड़ी से आगे) अपने भीतर घिरते जाने की कविताः आलोक धन्वा के बारे में -शिवप्रसाद जोशी आलोक धन्वा क्या…

6 years ago
प्रकट सुंदरता के भीतर कितने जलजले – आलोक धन्वा की कविता – 1प्रकट सुंदरता के भीतर कितने जलजले – आलोक धन्वा की कविता – 1

प्रकट सुंदरता के भीतर कितने जलजले – आलोक धन्वा की कविता – 1

अपने भीतर घिरते जाने की कविताः आलोक धन्वा के बारे में -शिवप्रसाद जोशी अगर हिंदी कविता में इधर सबसे बेचैन…

6 years ago
एक डग भीतर जाने के लिए सौ डग बाहर आना पड़ता हैएक डग भीतर जाने के लिए सौ डग बाहर आना पड़ता है

एक डग भीतर जाने के लिए सौ डग बाहर आना पड़ता है

अपनी नई कविताओं की रोशनी में कवि लीलाधर जगूड़़ी  -शिवप्रसाद जोशी लीलाधर जगूड़ी अपनी ही कविता में एक नवागंतुक की…

6 years ago

लालटेन की तरह जलना

मंगलेश डबराल की कविता और जीवन पर कृष्ण कल्पित - शिवप्रसाद जोशी महत्त्वपूर्ण रचनाकार पर लिखने का आखिर क्या तरीक़ा…

6 years ago
खूंखार मंडरा रहे हैं और इन सबके बीच एक स्त्री अपनी स्वतंत्रतता में आ जा रही हैखूंखार मंडरा रहे हैं और इन सबके बीच एक स्त्री अपनी स्वतंत्रतता में आ जा रही है

खूंखार मंडरा रहे हैं और इन सबके बीच एक स्त्री अपनी स्वतंत्रतता में आ जा रही है

समंदर के पास रहने वाली एक लड़की की स्मृति में - शिवप्रसाद जोशी कुछ वर्ष पुरानी एक रेल की धड़धड़ाहट,…

7 years ago
अच्छे लेखक को कुछ भी बरबाद नहीं कर सकता हैअच्छे लेखक को कुछ भी बरबाद नहीं कर सकता है

अच्छे लेखक को कुछ भी बरबाद नहीं कर सकता है

विलियम फॉक्नर का साक्षात्कार (अनुवाद : शिवप्रसाद जोशी) नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी उपन्यासकार विलियम फॉक्नर (1897-1962) के एक प्रसिद्ध…

7 years ago