Life in Uttarakhand

लछिमा कैंजा भूत बनकर अपने ससुराल वालों के घर गई

कैंजा दूसरे नंबर की थी. उसकी परवरिश कुछ उपेक्षा के साथ हुई थी. नाम था लछिमा. इजा कहती थी, वह…

5 years ago

बाघ, बारिश और रोटी – पहाड़ियों के संघर्ष की एक कहानी ऐसी भी

भले ही देश आर्थिक उदारीकरण के लिए सरदार मनमोहन सिहं और नब्बे के दशक को याद रखता हो लेकिन मेरे…

5 years ago

भारती कैंजा और पेड़ के साथ उनकी शादी

भारती कैंजा अपने भाई-बहिनों में सबसे छोटी है, लेकिन जीवट में सबसे बड़ी. वह कभी किसी से फालतू नहीं बोलती.…

5 years ago

ओ ईजा! ओ मां! – पहाड़ की एक भीगी याद

बचपन से आज तक ईजा (मां) को कभी नहीं भूला. वह 1956 में विदा हो गई थी, जब मैं छठी…

6 years ago

उत्तराखंड को लेकर क्या थी कौशिक समिति के सबसे बड़ी सिफारिश

अपने बचपन के गाँव को ठीक-ठीक आज न स्मरण कर पाने का एक बड़ा कारण शहर आने के बाद उत्तराखंड…

6 years ago

मेरा और खड़कुवा का बचपन

खड़कुवा और मेरी मांओं ने हमें ऐसे ही मिट्टी लिपे फर्शों पर जन्म दिया था और हमें गाँव किनारे के…

6 years ago