Hindi poetry

तब मेरी जेब में एक नहीं दो बाघ होते हैं : विद्रोही की कविता

दो बाघों की कथा -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं तुम्हें बताऊंगा नहीं बताऊंगा तो तुम डर जाओगे कि मेरी सामने वाली…

6 years ago

यथार्थ के दलदल में डूब जाएगा उनका गृहविज्ञान

गृहविज्ञान -सुन्दर चंद ठाकुर वे कौन सी तब्दीलियां थीं परंपराओं में कैसी थीं वे जरूरतें सभ्यता के पास कोई पुख्ता…

6 years ago

आसमान में धान बो रहा हूँ: विद्रोही की कविता

नई खेती -रमाशंकर यादव 'विद्रोही' मैं किसान हूँ आसमान में धान बो रहा हूँ कुछ लोग कह रहे हैं कि…

6 years ago

सैलून में हर दीवार पर आईने लगे थे : विष्णु खरे की कविता

ग्राहक विष्णु खरे दो बार चक्कर लगा चुकने के बाद तीसरी बार वह अंदर घुसा. दूकान ख़ाली थी सिर्फ़ एक…

6 years ago

कविता : दिल्ली में अपना फ़्लैट बनवा लेने के बाद एक आदमी सोचता है

(विष्णु खरे - 1940 से 2018) दिल्ली में अपना फ़्लैट बनवा लेने के बाद एक आदमी सोचता है (कविता सुनें)…

6 years ago

लड़कियों के बाप

विष्णु खरे समकालीन सृजन परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण नाम रहे. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु…

6 years ago

सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे

बाबा नागार्जुन की एक पुरानी कविता (Poem of Baba Nagarjun) सच न बोलना मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने…

6 years ago

भूख सोचता रहा, भूख खाता रहा, दिल्ली आके रुका

पड़ताल - इब्बार रब्बी सर्वहारा को ढूँढ़ने गया मैं लक्ष्मीनगर और शकरपुर नहीं मिला तो भीलों को ढूँढ़ा किया कोटड़ा…

6 years ago