Hindi poetry

कितनी-कितनी लड़कियां भागती हैं मन ही मन

भागी हुई लड़कियां  -आलोक धन्वा एक घर की जंजीरें कितना ज्यादा दिखाई पड़ती हैं जब घर से कोई लड़की भागती…

6 years ago

शायद वहाँ एक आंसू था : मंगलेश डबराल की कविता

जीवन के लिए -मंगलेश डबराल शायद वहाँ थोड़ी सी नमी थी या हल्का सा कोई रंग शायद सिरहन या उम्मीद…

6 years ago

मेरे घर का भी सवाल है : लीलाधर जगूड़ी की कविता

ईश्वर और आदमी की बातचीत -लीलाधर जगूड़ी जानते हो यह मूर्ति मेरी है और कुछ लोग इसे पूजने आ रहे…

6 years ago

आपकी आँखों का अब कोई इलाज नहीं है : मंगलेश डबराल की कविता

पिता का चश्मा -मंगलेश डबराल बुढ़ापे के समय पिता के चश्मे एक-एक कर बेकार होते गए आँख के कई डॉक्टरों…

6 years ago

कलियों और फूलों की ख़ुशबुएँ : लीलाधर जगूड़ी की कविता

प्राचीन संस्कृति को अंतिम बुके पारंपरिक भारतीय कलियों और फूलों की ख़ुशबुएँ पांडवों की तरह स्वर्गारोहण की सदिच्छा से हिमालय…

6 years ago

प्यारे बच्चो जीवन एक उत्सव है : मंगलेश डबराल की कविता

बच्चों के लिए चिठ्ठी -मंगलेश डबराल प्यारे बच्चो हम तुम्हारे काम नहीं आ सके. तुम चाहते थे हमारा क़ीमती समय…

6 years ago

हर पौधा तुम्हारी तरह झुका हुआ होगा :लीलाधर जगूड़ी की कविता

आषाढ़ -लीलाधर जगूड़ी यह आषाढ़ जो तुमने मां के साथ रोपा था हमारे खेतों में घुटनों तक उठ गया है…

6 years ago

तब संगतकार ही स्थाई को सँभाले रहता है : मंगलेश डबराल की कविता

संगतकार -मंगलेश डबराल मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती वह आवाज़ सुंदर कमजोर काँपती हुई थी…

6 years ago

कुछ कविता-टविता लिख दी तो हफ़्ते भर ख़ुद को प्यार किया

कुछ कद्दू चमकाए मैंने -वीरेन डंगवाल कुछ कद्दू चमकाए मैंने कुछ रास्तों को गुलज़ार किया कुछ कविता-टविता लिख दी तो…

6 years ago

तुम किसकी चौकसी करते हो रामसिंह ?

रामसिंह -वीरेन डंगवाल दो रात और तीन दिन का सफ़र तय करके छुट्टी पर अपने घर जा रहा है रामसिंह…

6 years ago