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इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : सातवीं क़िस्त

हिंदी में लुगदी, पेशेवर और श्रेष्ठ साहित्य का विभाजन   थोड़ा-सा चर्चित हो जाने के बाद हिंदी का लेखक बहुत…

6 years ago

इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : छठी क़िस्त

फूलन और मनोहरश्याम की जुबान के बगैर कोई लेखक बन ही कैसे सकता है जैसे पराई धरती पर पौधा नहीं…

6 years ago

इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : पांचवीं क़िस्त

पंडित प्रतापनारायण मिश्र के ‘ब्राह्मण’ और डकैत फूलन देवी के ‘ठाकुर’ पिछली बार हमारा किस्सा इस बात के जिक्र पर…

6 years ago

इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : चौथी क़िस्त

हिंदी की नई पौध के लिए एक चिट्ठी : नसीहत नहीं, ‘हलो’ मेरे नए रचनाकार दोस्तो! आज से करीब पचपन…

6 years ago

बार-बार अपनी जड़ों की ओर क्यों उगते हैं बंबई के डेढ़ यार

अल्मोड़ा से बम्बई चले डेढ़ यार – तीसरी क़िस्त कठोपनिषद की तीसरी वल्ली (अध्याय) का पहला मंत्र है: ऊर्ध्व्मूलोSवक्शाख एशोSश्वत्थः…

6 years ago

अल्मोड़िया राइटर डेढ़ यार: पहुंचे टेसन अंधेरी-खार

अल्मोड़ा से बम्बई चले डेढ़ यार – दूसरी क़िस्त पिछली क़िस्त में उत्तराखंड से हिंदी साहित्य में कूद पड़े हमारे…

6 years ago

अल्मोड़ा से राइटर बनने माया नगरी पहुँचे दो पहाड़ियों का किस्सा डेढ़ यार

अल्मोड़ा से बम्बई चले डेढ़ यार – पहली क़िस्त पहले अल्मोड़ा से अपनी मीट की दुकान से भागकर मुंबई पहुंचे…

6 years ago