बटरोही

जिन्दगी में तीन सम्बन्ध कभी नहीं मिटतेजिन्दगी में तीन सम्बन्ध कभी नहीं मिटते

जिन्दगी में तीन सम्बन्ध कभी नहीं मिटते

17 जुलाई, 1969 को ठीक पचास साल पहले, आज ही के दिन. Tara Chandra Tripathi Memoir by Batrohi डिग्री कॉलेज…

5 years ago
‘साह’ जाति-नाम पर कुछ नोट्स‘साह’ जाति-नाम पर कुछ नोट्स

‘साह’ जाति-नाम पर कुछ नोट्स

राजीव लोचन साह की ओर शायद मैं आकर्षित नहीं होता अगर वह उसी सरनेम वाला नहीं होता, जो मेरी बुआ…

5 years ago
बच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री देने वाला अनपढ़ कवि शेरदाबच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री देने वाला अनपढ़ कवि शेरदा

बच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री देने वाला अनपढ़ कवि शेरदा

जब से मैंने शेरदा की किताब ‘मेरि लटि पटि’ अपनी यूनिवर्सिटी में एमए की पाठ्यपुस्तक निर्धारित की, एकाएक पढ़े-लिखे सभ्य…

5 years ago
देशभर में बच्चों के प्यारे देवेन दा आज से जीवन के 77वें साल में प्रवेश कर रहे हैंदेशभर में बच्चों के प्यारे देवेन दा आज से जीवन के 77वें साल में प्रवेश कर रहे हैं

देशभर में बच्चों के प्यारे देवेन दा आज से जीवन के 77वें साल में प्रवेश कर रहे हैं

देवेन मेवाड़ी की किताबों में उनकी सर्टिफिकेट जन्मतिथि 7 मार्च 1944 दर्ज है अलबत्ता उनकी माताजी के हिसाब से देवी…

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आज बटरोही का 75वां जन्मदिन है – पुराने दोस्त देवेन मेवाड़ी याद कर रहे हैं उनके साथ बीते समय कोआज बटरोही का 75वां जन्मदिन है – पुराने दोस्त देवेन मेवाड़ी याद कर रहे हैं उनके साथ बीते समय को

आज बटरोही का 75वां जन्मदिन है – पुराने दोस्त देवेन मेवाड़ी याद कर रहे हैं उनके साथ बीते समय को

वह लड़का, मेरा दोस्त, आज उम्र के 75 वें पायदान पर कदम रख रहा है. Deven Mewari Remembers Student Days…

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शैलेश मटियानी से पहली मुलाकातशैलेश मटियानी से पहली मुलाकात

शैलेश मटियानी से पहली मुलाकात

यह किताब मैंने 2001 में मटियानीजी की मृत्यु के फ़ौरन बाद लिखनी शुरू की थी और इसके न जाने कितने…

5 years ago
लॉक डाउन के दिनों में सुल्ताना डाकू और जिम कॉर्बेट की धरती पर बने अपने फार्म हाउस मेंलॉक डाउन के दिनों में सुल्ताना डाकू और जिम कॉर्बेट की धरती पर बने अपने फार्म हाउस में

लॉक डाउन के दिनों में सुल्ताना डाकू और जिम कॉर्बेट की धरती पर बने अपने फार्म हाउस में

आजकल मैं अपने गाँव फतेहपुर में हूँ. हल्द्वानी से सात किलोमीटर दूर कालाढूंगी रोड में नया उभरता हुआ एक क़स्बा…

5 years ago
तनावहीन चेहरे वाला एक लेखक : पंकज बिष्टतनावहीन चेहरे वाला एक लेखक : पंकज बिष्ट

तनावहीन चेहरे वाला एक लेखक : पंकज बिष्ट

पहली मुलाक़ात में ही मैंने महसूस किया था कि हम दोनों के बीच कई चीजें समान होते हुए भी वह…

5 years ago
‘गहन है यह अंधकारा’ की समीक्षा : लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’‘गहन है यह अंधकारा’ की समीक्षा : लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’

‘गहन है यह अंधकारा’ की समीक्षा : लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’

औपनिवेशिक मूल्यों की तलछट पर बिछा एक लाचार समाज भारत को आज़ादी तो 1947 में मिल चुकी थी; मगर आज…

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नया साल और गहरे अवसाद का बीच हम लोगनया साल और गहरे अवसाद का बीच हम लोग

नया साल और गहरे अवसाद का बीच हम लोग

हम लोग, जो आजादी के आस-पास पैदा हुए हैं, सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि हमारे समाज का…

5 years ago