उत्तराखंड में खेलों के क्षेत्र में संसाधन न के बराबर हैं. पर्वतीय क्षेत्रों में तो अभ्यास के लिए छोटे-मोटे मैदान तक का मिल पाना असंभव है. इसके बावजूद अपनी मेहनत और लगन से उत्तराखण्ड के कई खिलाडियों ने खेल की दुनिया में अच्छा मुकाम बनाया है. इन्हीं में से एक हैं सुरेन्द्र सिंह वल्दिया
1961 में उत्तराखण्ड के सीमान्त इलाके पिथौरागढ़ के पौण गाँव में जन्मे सुरेन्द्र सिंह वल्दिया ने सेना में रहकर देश सेवा तो की ही खेल की दुनिया में भी खूब नाम कमाया. सुरेन्द्र बचपन से ही खेलों में दिलचस्पी लेते थे लेकिन स्थितियां ऐसी नहीं थीं कि वे कुछ कर पाते. बाद में जब वे सेना में भर्ती हुए तो उन्हें मौका मिला कि खेलों के लिए अपने जुनून को अमल में ला सकें. सेना में रहते हुए विभिन्न खेलों में हाथ अजमाते हुए नौकायन पर उनका मन टिक गया.
नौकायन के गहन अभ्यास के साथ ही सुरेन्द्र सिंह वल्दिया छोटी-मोटी प्रतियोगिताओं में भी हिस्सेदारी करने लगे. 1984 में उनके खेल सफ़र ने ऊची छलांग लगायी जब उन्होंने कलकत्ता में आयोजित राष्ट्रीय नौकायन प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक झटका. इसने उनके लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के द्वार भी खोल दिए.
1985 में सुरेन्द्र सिंह वल्दिया एशियाई नौकायन प्रतियोगिता में हिस्सा लेने हांगकांग चले गए और कांस्य पदक जीता. इस साल उन्होंने पुनः राष्ट्रीय नौकायन प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक झटकने का सिलसिला जारी रखा.
1986 में पुनः राष्ट्रीय चैमियां रहकर एशियाई खेलों का टिकट भी हासिल किया. सियोल में संपन्न 10वीं एशियाई नौकायन चैम्पियनशिप में वे कांस्य पदक प्राप्त करने से चूके और चौथे नंबर पर रहे.
अक्तूबर 1989 में उन्हें 2 बड़ी सफलताएँ हाथ लगीं. स्विट्जरलैंड में हुई अंतर्राष्ट्रीय नौकायन प्रतियोगिता में उन्हें रजत मिला. इसके तुरंत बाद चंडीगढ़ में आयोजित तृतीय एशियाई नौकायन चैम्पियनशिप में उन्हें कांस्य मिला. 1990 में पुनः पुनः बीजिंग में हुई एशियाई प्रतियोगिता में सुरेन्द्र सिंह वल्दिया को कांस्य मिला.
इन उपलब्धियों के लिए सुरेन्द्र सिंह वल्दिया को भारत सरकार द्वारा दिएजाने वाले सर्वोच्च खेल सम्मान र्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया. उत्तराखण्ड सरकार ने पिथौरागढ़ के स्पोर्ट्स स्टेडियम का नामकरण सुरेन्द्र सिंह वल्दिया के नाम पर किया.
(त्रिलोक चन्द्र भट्ट की किताब ‘उत्तरांचल के अनमोल मोती’ के आधार पर)
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