यह तस्वीर चमोली के युवा सूरज प्रकाश की है. हज़ारों युवाओं की तरह सूरज ने उत्तराखंड सरकार में नौकरी के सपने संजो रखे थे. अपने और अपने परिवार के सपनों को लेकर मंगलवार के दिन सूरज देहरादून में हो रही फारेस्ट गार्ड की शारीरिक दक्षता परीक्षा में शामिल हुआ.
(Suraj Prakash Chamoli)
सभी अभ्यर्थियों की तरह सूरज ने भी 25 किमी की दौड़ में भागना शुरु किया. लगातार कमजोरी के बावजूद अब सूरज 25 किमी पूरा करने से केवल 300 मी की दूरी पर था. अबकि सूरज बेसुध था किसी तरह उसके साथियों ने उसे सहारा देकर आखिरी 300 मी पार कराये. नौकरी की इस दौड़ में सूरज ने अपने साथियों की मदद से आखिरी 300 मी तो पार कर लिये पर जीवन की दौड़ में वह यहीं रुक गया.
उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग ने बड़ी आसानी से कह दिया है कि अभ्यर्थी को स्वास्थ्य संबंधित कठिनाई आएगी तो इसका जिम्मेदार वह स्वयं होगा पर क्या उत्तराखंड का चयन आयोग इतना निर्दयी है कि एक बच्चे की जान जाने तक उसके पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि वह अभ्यर्थी की मदद कर सके. अगर आयोग गढ़वाल मंडल के अभ्यर्थियों को देहरादून बुलाकर परीक्षा ले रहा है तो क्या उसकी जिम्मेदारी नहीं बनती कि उक्त स्थान पर वह आकस्मिक चिकित्सा के लिये डाक्टरों की एक अच्छी टीम की व्यवस्था करे.
(Suraj Prakash Chamoli)
सूरज के निधन के बाद सवाल उठता है कि किसने ऐसे हालात पैदाकर दिये हैं कि हमारे घरों के बच्चे अपनी जान की परवाह किये बगैर बस नौकरी हासिल करना चाहते हैं. पहाड़ के मेहनतकश बच्चों की मैदानी इलाकों में परीक्षा ली जाती है फिर चाहे बारिश हो धूप हो हमारे बच्चे नौकरी के लिये भागने को मजबूर हैं.
उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग के सचिव संतोष बडोनी ने सूरज की मौत से यह कहकर पल्ला झाड़ लिया है कि सूरज ने 25 किमी की दौड़ पूरी कर ली थी चक्कर आने की शिकायत के बाद उन्हें मौके से दून अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गयी. क्या हम एक ऐसे उत्तराखंड के लिये लड़े थे जहां एक सरकारी नौकरी के लिये युवाओं को अपनी जान तक देनी पड़े?
(Suraj Prakash Chamoli)
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
View Comments
नोकरी के लिए जान देनी पड़ रही है । क्या विडम्बना है ।
उस साथी जिसने अपने कंधो का सहारा देकर दौड़ पूरी कराई प्रशंसा और बधाई का पात्र है.
ऐसे नियम हैं जिनका कोई ठिकाना नहीं क्या जो वन विभाग की नौकरी कर रहे बह रोजाना क्या 25 किलोमीटर दौड़ रहे आजकल दूरसंचार के इतने साधन हैं फिर किस लिए यह सब, बेरोजगार लोगों के साथ मजाक और अन्याय हैं