1971 में वेस्ट इंडीज के दौरे पर गई भारतीय टीम ने पांच टेस्ट मैच खेलने थे. उन दिनों बंबई के एक नौजवान लड़के का बड़ा चर्चा था. 5 फुट 5 इंच लम्बे सुनील गावस्कर नाम के इस खिलाड़ी को बतौर ओपनर ले जाया गया था. 18 फरवरी से पहला मैच होना था लेकिन उससे पहले ही गावस्कर चोटिल हो गए. नतीजतन आबिद अली के साथ हीरजी केनिया जयंतीलाल नाम के एक हैदराबादी खिलाड़ी ने ओपनिंग की.
(Sunil Gavaskar Birthday)
न्यूजीलैंड के साथ दुनिया की सबसे कमजोर समझी जाने वाली भारतीय टीम ने दिलीप सरदेसाई की डबल सेंचुरी के चलते वेस्ट इंडीज को फॉलो ऑन खिलाया लेकिन दूसरी पारी में सोबर्स और रोहन कन्हाई ने बड़े स्कोर किये. भारत का दोबारा खेलने का नंबर नहीं आया और मैच ड्रा हुआ. जो टीम अपने घर में हर रोज हार जाती हो, विदेश में उसके ऐसा करने को भारत के खेलप्रेमियों के बीच जीत के बराबर माना गया.
जयंतीलाल ने पांच रन बनाए और यही उनके करियर के इकलौते इंटरनेशनल रन बने. यह अलग बात है कि जयंतीलाल ने करीब बीस साल तक हैदराबाद के लिए बैटिंग की और वे वहां के अव्वल खिलाड़ियों में गिने जाते रहे.
(Sunil Gavaskar Birthday)
साढ़े छः फुट ऊंचे वेस्ट इन्डियन गेंदबाजों के सामने भारत के शांतिप्रिय बल्लेबाजों का मलीदा बनना तय माना जा रहा था लेकिन इसके बाद बचे चार मैचों में जो हुआ उसकी हर भारतीय क्रिकेटप्रेमी कल्पना तक करने से सहमता था. हीरजी केनिया जयंतीलाल से ज्यादा इस बात की तस्दीक कौन कर सकता है.
घुंघराले बालों वाले, सुनील गावस्कर नाम के उस लड़के ने अगले मैच में जयंतीलाल की जगह ली और अपने करियर का आगाज करते हुए दोनों पारियों में 60 से ऊपर रन बनाए. फिर अगले तीन मैचों में चार सेंचुरी ठोक डालीं जिनमें से एक डबल थी. उसने चार मैचों में डेढ़ सौ से ऊपर की एवरेज से कुल 774 रन बनाए. भारत ने 1-0 से सीरीज जीत ली. उस जमाने के हिसाब से यह एक असंभव कारनामा था.
सुनील गावस्कर ने उस सीरीज के बाद अकेले दम पर भारतीय क्रिकेट को बदल डाला. अगले दस साल तक यूँ होता था कि अगर गावस्कर खेल रहा होता तो भारत के जीतने की संभावना बनी रहती. उसके बाद यह कारनामा कपिल देव किया करते थे. कपिल देव के बाद का युग बाजार के सामने क्रिकेट के नष्ट हो जाने की युग है और मैं उसकी तफसील में नहीं जाना चाहता.
जिस तरह लैटिन अमेरिका में अच्छी फुटबॉल को पूरा सम्मान मिलता है, वेस्ट इंडीज में लोग अच्छी क्रिकेट के दीवाने होते हैं. अच्छा खेल अगर कोई विपक्षी दिखाए तो उसे मोहब्बत के साथ साथ सम्मान और आदर भी नसीब होता है. हमारे यहाँ की तरह नहीं जहाँ आसन्न हार देखते ही दर्शक विरोधी टीम की हूटिंग करने और फील्ड पर बोतलें और कूड़ा फेंकने लगते हैं. जिसे कल शाम तक दिल का टुकड़ा बताते थे उसकी हाय-हाय करने में एक पल नहीं लेते.
वेस्ट इंडीज के लोगों की जीवनशैली का अहम हिस्सा होता है कैलिप्सो संगीत. उन्नीसवीं शताब्दी में त्रिनिदाद-टोबैगो के द्वीपों से शुरू हुआ यह लयात्मक संगीत आज समूचे कैरिबियन की पहचान है. किसी भी जरूरी समकालीन घटना के महत्त्व को रेखांकित करने के लिए कैलिप्सो गीत रचे जाते हैं और क्लबों-कंसर्टों में पेश किये जाते हैं.
तो गावस्कर ने अकेले जिस तरह वेस्ट इंडीज को उसी के घर में धूल चटाई, यह कैसे संभव था कि वह कैरिबियाई स्मृति का हिस्सा न बनता. एंडी नैरेल और रिलेटर ने अपने अल्बम ‘यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिप्सो’ का पहला गाना इसी घटना को समर्पित किया और उसे शीर्षक दिया – ‘गावस्कर’’. गाने में गावस्कर की तारीफ़ यूँ की गयी थी –
इट वॉज़ गावस्कर
द रीयल मास्टर
जस्ट लाइक अ वॉल
वी कुडंट आउट गावस्कर एट ऑल, नॉट एट ऑल
यू नो द वेस्ट इंडीज कुडंट आउट गावस्कर एट ऑल
मेरे बचपन और लड़कपन में क्रिकेट कमेंट्री सुनने से अक्सर तकलीफ, गुस्सा और खीझ का अनुभव होता था क्योंकि हमारी टीम पिद्दी से पिद्दी टीम के आगे हार जाती थी. नाइट वाचमैन बन कर आया विदेशी टेलएंडर हमारे थके हुए बोलरों के सामने सेंचुरी मार जाया करता था. फास्ट बोलिंग से घबराने वाली हमारी बैटिंग का हाल यह हुआ करता था कि छः विकेट गिरने को पूरी टीम का आउट होना मान हम अपने चेहरे को थोड़ा और मनहूस बना लेते थे.
ऐसे माहौल में सिर्फ सुनील गावस्कर ने हमें खुशी और गर्व का दुर्लभ अहसास कराया – अनेक बार.
तेज़ से तेज़ बोलिंग के सामने गावस्कर ने कभी हेलमेट नहीं पहना. घुंघराले बालों वाले इस चैम्पियन छोटू बल्लेबाज का आज तिहत्तरवां जन्मदिन है.
1971 में उसकी बैटिंग देख चुके लोग अब बूढ़े हो चुके होंगे. मुझे पक्का यकीन है आज शाम जब किसी कैरिबियन समुद्रतट पर सूरज डूब रहा होगा, किसी पब में, किसी न किसी बूढ़े ने कांपती आवाज में जरुर गुनगुनाया होगा – यू नो द वेस्ट इंडीज कुडंट आउट गावस्कर एट ऑल.
(Sunil Gavaskar Birthday)
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