अल्मोड़ा में एक जगह है खत्याड़ी. अल्मोड़ा में कालेज पढ़ रहे काफ़ी छात्रों का पता आज खत्याड़ी मौहल्ला है. जिस तरह से लोककथा और कहावतों में खत्याड़ी का जिक्र मिलता है उससे लगता है कि एक जमाने में खत्याड़ी में अच्छी-खासी खेती होती होगी. मसलन एक लोककथा के अनुसार तो एक आदमी ने भूत-भिसोड़ों से अपने खेतों में गोबर डलवा दिया. रात के अंधेरे में भूत-भिसोंड़े जिस जगह से गोबर सार कर लाये वह यही खत्याड़ी था. पूरी लोककथा यहां पढ़ें : अल्मोड़े का अनरिया जिसने भूत-भिसौंड़ों से मडुवे के खेतों में गुड़ाई करवाई
(Story related to Gangolihat History)
खत्याड़ी से जुड़ी एक कहावत और उसके विषय में राहुल सांकृत्यायन भी अपनी किताब ‘कुमाऊं’ में लिखते हैं. राहुल सांकृत्यायन ने अपनी किताब ‘कुमाऊँ’ में जिस कहावत में खत्याड़ी का जिक्र किया है वह कुछ इस तरह है –
खत्याड़ी साग, गंगोली बाग.
इस कहानी में गंगोली शब्द का अर्थ वर्तमान गंगोलीहाट से है. कहावत से जुड़ी बड़ी दिलचस्प कहानी इस तरह है – एक समय था जब गंगोली में मंत्री पद उप्रेती ब्राह्मण के लोग संभाला करते थे. कहते हैं कि एक बार राजा कर्मचंद शिकार खेलने जंगल गया हुआ था. मंत्री पद संभाल रहे उप्रेती ब्राह्मण के लोगों ने छल से राजा को मरवा दिया.
(Story related to Gangolihat History)
जाहिर है राजा है तो उसकी रानी भी होगी. उप्रेती ब्राह्मणों ने अपना दिमाग लगाया और रानी को एक संदेशा भिजवाया कि राजा को बाघ खा गया. यह वह दौर था जब पति के मरने के बाद पत्नी सती हुआ करती थी.
उप्रेती ब्राह्मणों का संदेशा तो राजा कर्मचंद की रानी को मिल गया था पर उप्रेती ब्राह्मणों की इस साजिश की भनक भी उसे लग चुकी थी. सती होने से पहले राजा कर्मचंद की रानी ने अपने मंत्री बदले और गंगोली में मंत्री पद पन्त जाति के ब्राह्मणों को मिला.
पन्त ब्राह्मणों को अपना पुत्र भी राजा कर्मचंद की रानी ने सौंपा और सती होने से पहले कहा – मेरा पति यदि बाघ से मारा गया तो यहाँ के लोग भी बाघ से मारे जायें.
इस कहानी का जिक्र राहुल सांकृत्यायन अपनी किताब में करते हुए आगे जोड़ते हैं कि पिछली शताब्दी के आरंभ तक यहाँ बाघ बहुत होते थे.
(Story related to Gangolihat History)
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…