राजधानी से तीन गाड़ियों में अफसरों की एक टीम पहाड़ की तरफ चली, यह तय करने कि सरकार द्वारा बजट में पहाड़ के एक जिले के लिए घोषित आईटीआई को जिले के किस स्थान पर खोला जाए?
मसला थोड़ा पेचीदा हो गया था, जिला एक था, पर ब्लाक छ: थे, तीन विधायक और एक सांसद . सब अपनी पसंद की जगह पर ज़ोर दे रहे थे. जिला परिषद के अध्यक्ष और सदस्यों के राग भी अलग अलग थे, जिला परिषद में न इस पर चर्चा हुई और न इसकी जरूरत महसूस की गई.
मुख्यमंत्री ने सांसद का दबाव तो झेल लिया, लेकिन विधायकों का विधान सभा में हुआ आपसी विवाद जब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो मुख्यमंत्री की तरफ से यह घोषणा की गई एक एक्सपर्ट टीम स्थलीय निरीक्षण करके और सभी आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता के आधार पर आईटीआई के उपयुक्त स्थान का चयन करेगी.
एक्सपर्ट टीम में अलग अलग विभागों के इंजीनियर और अफसर शामिल किए गए. एक दिन सुबह टीम के सदस्यों को किसी तरह जल्दी जोड़कर करीब आठ बजे यह टीम राजधानी से रवाना हुई, तीन-साढे तीन घंटे का सफर था चार जगह का स्थलीय निरीक्षण करना था, करीब चार घंटे निरीक्षण में लगने थे छः सात घंटे जाने-आने में लगने थे. सुबह जल्दी चलते तो, छ: सात बजे तक वापस हो सकते थे, पर दो घंटे की देरी हो चुकी थी. टीम ने यह तय किया गया कि पहले दूर वाले स्थान को देख लिया जाए फिर वापसी में एक एक करके निपटाएं जाएं.
पहले वाली जगह के लिऐ एक विधायक तो जोर लगा ही रहे थे, एक बड़े अफसर का इंटेरेस्ट भी था, उनका अपने किसी रिश्तेदार की जमीन का उद्धार करने की ओर इशारा था. शायद इसीलिए मुख्यमंत्री ने टीम को खुली छूट दी थी, टीम पर अब यही बड़ा दबाव था.
पहली जगह पर विधायक सहित लोग जमा थे, जबरदस्त माहौल था जमीन भी ठीक ठाक थी, पानी की जरा समस्या थी जिसपर विधायक जी पास की पेयजल योजना को उसी तरफ मुड़वाने का सौ प्रतिशत आश्वासन दे रहे थे. हां आबादी कम थी. जगह मुख्य मार्ग से हटकर उपमार्ग में होने से आने जाने की दिक्कतें थीं और यहां छात्रों की कमी हो सकती थी. विधायक महोदय ने हर समस्या का समाधान करने के लिए जी जान लगाने का वायदा किया, टीम ने सब नोट कर लिया. जमीन के कागज और भूमि की स्थिति भली-भाँति देखली. यहां का निरीक्षण एक घंटे के तय समय के अन्दर ही निपट गया.
दूसरा स्थान जबरदस्त था पहाड़ का कस्बा, चहल पहल वाला, वहां बाजार था, स्कूलों की भरमार थी, आसपास में कई लिंक रोड थीं,सभी जगह के लिए बसें थीं. अच्छी खासी आबादी थी, और वोटों की ताकत थी, सांसद की नजर में आदर्श थी, और वैसे भी पहाड़ के इस जंक्शन में आईटीआई खुल जाए तो सोने में सुहागा, बहार ही बहार.
प्रस्तावित स्थल जाने से पहले बाजार के एक अच्छे होटल में खाना निपटा लिया गया, समय भी हो चुका था, सांसद जी का टीम के प्रति वात्सल्य बार बार आग्रह के रूप में उभर रहा था, उन्होने खास हिदायत देकर खाना बनवाया था.
खाना खाते खाते आरटीआई के सर्वे टीम के आने की सूचना बाजार में फैल चुकी थी. जब टीम हाई स्कूल तक पहुंची जिसके पास ही आईटीआई के लिए जगह प्रस्तावित थी, तब तक अच्छी खासी भीड़ जुट चुकी थी. एक तरफ सांसद महोदय के समर्थकों की भीड़ थी तो दूसरी तरफ विधायक जी के अपने चहेतों से घिरे थे. विधायक जी असंतुष्ट खेमें के थे, तो उनकी बात खास तरीके से सुने जाने का इशारा टीम को मिला हुआ था. टीम जैसे ही पहुंची तो सांसद और विधायक के समर्थकों ने नारेबाजी शुरू कर दी. जैसे तैसे लोगों को शान्त कराया, टीम ने मौका मुआयना किया, जमीन के कागजों की जांच करने और अन्य बातें देखने में बहुत हुज्जत बाजी हुई, टीम के सदस्यों को अपनी बात कहने और काम करने में अच्छा खासा टाइम लग गया. सांसद और एमएलए किसी भी तरह टीम के मुंह से फाइनल यस सुनना चाहते थे. टीम के दो दो सदस्यों ने सांसद और विधायक से अलग अलग बातचीत करके उनका पक्ष समझ लिया था.
काम खत्म करके और सांसद जी और विधायक जी से बात करके टीम के सदस्य अपनी अपनी गाडियों में बैठने के लिए जा ही रहे थे, तभी टीम के सदस्यों को अकेला देखकर विधायक जी तेजी से उनकी तरफ आए और धीरे से बोले, ‘यहां तो आपने देख ही लिया है, अगली जगह भी देख लीजिए मेरी ही विधानसभा का गांव है, वहां भी खुल सकता है.’ विधायक जी ने “मेरी ही विधानसभा” पर जोर दिया तो टीम के सदस्य एक दूसरे का मुंह देखने लगे.
टीम के सातों सदस्य दो ही गाडियों में चल रहे थे, डीडीओ वाली एक गाड़ी में नायब तहसीलदार,पटवारी और डीडीओ का स्टेनो बाबू थे. वह गाड़ी जब आगे बढ़ी तो एक सदस्य बताने लगे कि विधायक जी दोनों हाथ में लड्डू रख रहे हैं, यहां का सलैक्शन हो जाए तब भी उनकी सांसद के साथ जय जय है, और दूसरी जगह हो जाए, तो अकेले उन्हीं का झंडा बुलंद होगा. इसीलिए विधायक जी ने टीम के सदस्यों को अलग अलग लेजाकर बात की थी.
लेकिन तीसरी जगह को पहली नजर में देखकर ही टीम के ज्यादातर सदस्य रिजेक्शन का मूड बना चुके थे. गांव भले ही जंगलों से घिरा हुआ खूबसूरत था, लेकिन आईटीआई के लिए जमीन पूरी नहीं थी, शेष जमीन जंगलात से लेने का झंझट था, रास्ता भी जंगलात की जमीन से होकर था, एक तरफ पहाड़ से भू स्खलन का खतरा था दूसरी तरफ गधेरे से खतरा था. कुल मिलाकर मामला जम नही रहा था, हां गांव मे रहने वाले भूतपूर्व फौजी कैसे ही आईटीआई खुलवाने के लिऐ टीम मेम्बरों की खुशामद करते रहे. और आखिर में मूंछोंवाले आनरेरी कैप्टन साहब ने नीचे सड़क पर इंजीनियर साहब के गाड़ी में बैठते ही थैले में रखी हुई कैन्टीन सप्लाई की बोतलों से भरा झोला गाड़ी में रख दिया, इंजीनियर साहब अरे यह क्या ? कहते रहे और कैप्टन साहब सैल्यूट मारकर ड्राइवर से गाड़ी बढ़ाने का इशारा करते रहे. पीछे से जियालाजीकल विभाग के साईंटिस्ट गुप्ता जी, आगे बैठे हुए इंजीनियर साहब से धीरे से बोले, ‘ठाकुर साहब इनसे बहस मत करिए यह इनके प्रेम का उपहार है, वैसे भी आपकी शाम का जुगाड़ हो गया है.’
बात सही थी, टीम में सबसे सीनियर इंजीनियर ठाकुर साहब को बुरा तो बहुत लगा, माना कि वह पीते है और यह मिलिट्री वाली है, लेकिन उन्होंने कभी कभी दूसरे की नहीं पी, लेकिन यहां मामला टेढ़ा था और वह अकेले भी नहीं थे, पूरी टीम थी.
शाम हो चली थी, सूरज डूबने वाला था, आधा घंटा चलकर जब चौथी जगह के गांव के नीचे पहुंचे तो अंधेरा हो गया था. पटवारी और तहसीलदार के पास टार्च थीं, पटवारी गांव से परिचित था और दोपहर में जब पहली जगह बातचीत हो गई थी, तो ग्राम प्रधान को टीम के आने की सूचना देकर वापस कर चुका था. तीसरी जगह को देखने के बाद टीम के सदस्य तब तक अपना मन पहली या दूसरी जगह के लिए बना चुके थे.
इसलिए जब नायब तहसीलदार ने कहा कि थोड़ी चढ़ाई पड़ेगी तो टीम दो सदस्य कहने लगे, ‘आप लोग देख आईए हमसे नहीं जाया जाएगा.’ इस पर माइनर इर्रिगेशन के इंजीनियर जैदी साहब ने ऐतराज़ किया और बोल पड़े, ‘चलिए साहब यह भी देख लेते हैं’. गुप्ता जी ने आशंका प्रकट की, ‘अंधेरा हो गया है पहाड़ में तो सूरज ढलते ही किवाड़ बंद हो जाते हैं कोई मिलेगा नहीं गांव में.’ ठाकुर साहब ने तहसीलदार से पूछा, ‘भण्डारी जी बताओ क्या कहते हो’ नायब तहसीलदार ने गोलमोल जवाब देकर बचना चाहा कि, ‘जैसी आप लोगों की इच्छा.’
लेकिन जैदी साहब ने गुप्ता जी का हाथ पकड़कर कहा, ‘साहब हम इसी काम के लिए आए हैं हमें जवाब देना पड़ेगा, लोग नहीं होंगे तो भी हमें बताना होगा.’ थोड़ी हीले हवाले और हुज्जत के बाद सभी चल दिए. लेकिन नायब तहसीलदार और गुप्ता जी ने दो तीन बार आशंका दिखा दी की अब स्कूल में कोई मिलेगा नहीं.
दो टार्च की रोशनी में धीरे धीरे वह चलने लगे, गांव की पगडण्डी ठीक ठाक ही थी, पर टीम के लोगों को चढ़ने में पंद्रह बीस मिनट लग गए, गुप्ता जी ने सुस्ताते हुए घोषणा की कि यह जगह सड़क से आधा किलोमीटर दूर है, आधा किलोमीटर तो नहीं, लेकिन नए लोगों के लिए पास तो बिल्कुल नहीं थी. वैसे पहाड़ में तो लोग दूर को भी पास बताते हैं.
टीम के किसी सदस्य को यह पूरा विश्वास नहीं था कि इस अंधेरे में कोई गांव वाला मिलेगा. पर जाना जरूर था. गांव के प्राईमरी स्कूल के पास जब वह लोग पहुंचे तो दूर से लालटेन की रोशनी देखकर एक क्षण के लिए ठिठक गए. बहुत से गांव में भी बिजली नहीं होती, तो फिर प्राईमरी स्कूल में बिजली क्या होगी. और प्राइमरी स्कूल में बिजली का वैसे भी क्या काम?
आहट सुनकर ग्राम प्रधान और एक दो लोगों ने आकर उन्हें घेर लिया. पास जाकर देखा, बूढ़े, जवान और बच्चे ही नही महिलाएं भी स्कूल के बरामदे में सिकुड़ी सी बैठी हैं. ठंड नहीं थी, लेकिन अप्रैल में जाती हुई ठंड हाथ पैरों में लग रही थी.
थोड़ा आश्चर्य से टीम ने लालटैन और टार्च की रोशनी में जमीन कागज देखे, ग्राम सभा का प्रस्ताव देखा, जमीन के दाननामे देखे, संयुक्त खातेदारों के अनापत्ति प्रमाण पत्र देखे यहां तक गांव से पलायन कर चुके और शहरों बस चुके गांव के पूर्व निवासियों द्वारा अपनी जमीन पर दावे छोड़ने के सहमति पत्र भी देखे, पटवारी और तहसीलदार ने अपने रिकार्ड देखकर तस्दीक कर दी की यह जमीन कृषि की छूटी हुई है. जमीन के पास बिजली की लाइन नहीं थी, इस पर इंजीनियर साहब ने कहा यह कोई बड़ी बात नहीं, आ जाएगी.
इतना सब होने पर भी टीम के दो सदस्य इधर उधर की आशंका निकालते रहे ग्राम प्रधान उनको समझाता रहा. यह दोनों चीफ सेकेट्री से अपनी नजदीकी बताते रहते थे, शायद कोई वहीं से कोई जोड़तोड़ होगी. गुप्ता जी जमीन के की स्थिति का अंदाजा लगाकर सोच रहे थे कि आईटीआई के लिए यह लोकेशन किस किस आधार पर सबसे अच्छी है. और अपनी रिपोर्ट में क्या क्या लिखेंगे.
नायब तहसीलदार भण्डारी को थोड़ा जल्दी हो रही थी उसे रास्ते में उतरकर अपने गांव जाना था. ठाकुर साहब ने यह देखकर कहा, ‘ठीक है सब देख लिया. अब सब बड़े साहब तय करेंगे हम चलते हैं.’ यह कहकर इंजीनियर साहब उठने लगे तो ग्राम प्रधान ने हाथ जोड़कर कहा, ‘साहब थोड़ा रूकिए, गांववालों ने खीर बनाई है जरा चख लेते.’
खीर का नाम सुनते ही ठाकुर साहब की आँखें एक क्षण के लिए सामने बैठी महिलाओं की आंखों से टकराईं और वह धप्प से बैठ गए, डायबिटीज वाले गुप्ता जी के मुंह में पानी आ गया. जैदी साहब को भी लगा खाना खाए हुए बहुत देर हो गई है, चाय भी नहीं पी है, भूख जैसी लग रही है, लेकिन डीडीओ तिवारी जी झट से बोले, ‘मैं तो बिना संध्या पूजा के कुछ नहीं खाता.’
इस बीच ग्राम प्रधान एक थाली में रखी हुई खीर की कटोरियां ले आया. बहुत कम रोशनी में यह नहीं देख रहा था कि इनमें क्या है? एक चम्मच मुंह में डालते ही जैदी साहब समझ गए, झंगोरे की खीर है, लघु सिंचाई में काम करते हुए उन्होंने पहाड़ बहुत समय काटा है, दूर दराज पहाड़ के तीखे ढाल और धार में गूलें बनवाते हुए कितनी राते गांव में बिताईं थीं.
गुप्ता जी ने जल्दी जल्दी कटोरी खाली करके कहा, ‘बड़ी अच्छी है खीर.’ ग्राम प्रधान ने कहा,’ साहब और ले लीजिए’. अब गुप्ता जी को अब अपनी डायबिटीज का ख्याल आया, उन्होंने मना कर दिया. ठाकुर साहब ने जब दूसरी कटोरी साफ की तो सामने बैठी महिलाओं के चेहरे पर एक संतोष का भाव था.
कागज समेट कर पटवारी और नायब तहसीलदार टार्च दिखाने लगे तो ग्राम प्रधान और दो लड़के टार्च लेकर आ गए, उतरते हुए सहारा देने के लिए जैदी साहब गुप्ता जी के साथ चल रहे थे. गुप्ताजी ने जैदी साहब से पूछा लिया खीर किसकी बनी थी. जैदी साहब जब तक जवाब देते, पीछे टार्च दिखा रहे लड़के ने कहा, ‘झंगोरे की खीर थी साहब’, जैदी साहब ने जोड़ा, ‘लोकल अनाज है बहुत अच्छा होता है.’ लड़को को लगा होगा कि यह साहब लोग झंगोरे के बारे में क्या जानते होंगे.
गाड़ी में बैठते हुए ठाकुर साहब कह रहे थे, ‘यार जैदी और तो जो भी हो यह समझ में नही आया की इतनी अच्छी लोकेशन होते हुए भी एमपी एमएलए ने इसके लिए हल्ला क्यों नहीं किया.’ जैदी साहब जानते थे लेकिन वह खामोश रहे.
तीसरे दिन रिपोर्ट बननी और सबमिट होनी थी, एमपी और विधायकों के फोन आ गए थे. सब के अपने अपने तर्क थे, सिफारिशें थीं, लेकिन रात आठ बजे तक अंधेरे में गांव के लोगों ने बेचैनी से जिस तरह टीम का इंतेजार किया वैसी इच्छा किसी के पास नहीं थी, और न लोकल अखरोटों से भरी झंगोरे की खीर को खिलाने की कातरता थी और न वैसा मन था. एमपी साहब के लजीज़ खाने और कैन्टीन की बोतल पर झंगोरे की खीर ने जीत हासिल कर ली.
रानीखेत में जन्मे इस्लाम हुसैन फिलहाल काठगोदाम में रहते हैं. 1977 से ही लेखन और पत्रकारिता से जुड़े इस्लाम की कहानियां, कविताएँ, लेख और रपट विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं. कुछ वर्षों तक एक सार्वजनिक उपक्रम में प्रशासनिक/परियोजना अधिकारी के रूप में काम कर चुके इस्लाम हुसैन ने एक साप्ताहिक पत्र तथा पत्रिका का संपादन भी किया है. कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं. अपने ब्लॉग ‘नारीमैन चौराहा” में संस्मरण लेखन व ट्यूटर में “इस्लाम शेरी” नाम से कविता शायरी भी करते हैं.
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