कला साहित्य

बहुत कुछ घुमड़ रहा था उसकी आँखों में

बहुत कुछ घुमड़ रहा था उसकी आँखों में. आँखों में देखकर बातें नहीं कर रहा था वो. सामने मेज पर पर एल आई सी का टेबल कैलेण्डर था. उसकी तरफ शायद जून था. जून का एक चित्र था. चित्र में एक परिवार था. परिवार के पीछे एक घर था. (Story By Amit Srivastav)

— क्यों चाहिए भाई जीपीएफ

— सर मकान बिलकुल गिरने को हो गया है मरम्मत करानी है

— हां, लेकिन तीन बार पहले भी ले चुके हो

— हां सर एक बहिन थी और दो बेटियां. उनकी शादी की ज़िम्मेदारी थी सर.

— देखो जीपीएफ रिटायरमेंट के बाद काम आता है. अब साल ही कितने रह गए हैं नौकरी के

— ….

— कहाँ-कहाँ रहे नौकरी में

— पूरा यू पी देख लिए सर. उधर आपके साइड से सुरु किये थे नौकरी बनारस रहे, गोरखपुर, बलिया, गोंडा, गाजियाबाद सब जगह…

— खूब घूम लिया … हैं?

— हां सर सब जगह… सर अजयोध्या जी में जब मंदिर-मस्जिद हुआ था तब वहीं रहे सर… उधर डैकेतों के टाइम बीहड़ में, मुरादाबाद बहुत समय रहे सर…बहुत दंगा फसाद

— भागम-भाग ही रहती है पीएसी में… क्यों?

— सर नौकरी ने बिस्वनाथ जी के दर्शन करा दिए माता बिंध्याचल, कड़े माणिक, बद्री-केदार धाम सब! सर सबके दर्शन हुए…

— सर मकान बिलकुल गिरने को हो गया है मरम्मत करानी है

— हां, लेकिन तीन बार पहले भी ले चुके हो

— हां सर एक बहिन थी और दो बेटियां. उनकी शादी की ज़िम्मेदारी थी सर.

— देखो जीपीएफ रिटायरमेंट के बाद काम आता है. अब साल ही कितने रह गए हैं नौकरी के…

राम सदन ने दोनों हाथ जोड़ लिए

— हूँ… कितने साल की हो गई नौकरी

— सर तैंतीस-चौंतीस साल तो हो ही गए होंगे

— अच्छा एक बात बताओ पूरी नौकरी में पीएसी तो घूमती रहती है यहाँ- वहां फिर परिवार…

— परिवार तो वहीं चम्पावत में है सर..

— मैं देख रहा था, हर साल छुट्टी भी नहीं ली है फिर घर कैसे देखते हो

— घर ही तो सर नहीं…

— अच्छा, कौन-कौन है परिवार में

— परिवार सर… बड़े लड़के को फालिज मार दिया था सर बचपन में तब गोंडा तैनाती थी. इलिक्सन के चलते छुट्टी बंदी थी. फिर जब तक छुट्टी लेकर पहुंचे… तब तक…. घरवाली भी ऐसे ही सर… बिना इलाज के… गाँठ हो गई थी… मुझे बताया ही बहुत लेट घरेलू इलाज करती रही… बताती भी कब? दो बेटियां थीं सर शादी कर दी. अब तो बस एक लड़का… उसके लक्छन भी ठीक नहीं थे. ईजा के जाने के बाद तो बिलकुल ही… अब चाचा के पास सूरत भेज दिया है…

थोड़ी देर मौन रहे दोनों.

— अच्छा मैं ये सैंक्शन कर रहा हूँ और कुछ मदद चाहिए तो बता देना

— पूरी ज़िन्दगी खानाबदोश रहे सर. टेंट में बिता दी ज़िन्दगी. सर रिटायरमेंट के बाद कमरे में सोएं यही चाहते हैं बस और कुछ नहीं …

उसने नज़रें वापस कैलेण्डर पर टिका दीं. उसकी आँखे कांप रही थीं … साहब की कलम. बाहर शायद बारिश होने वाली थी. कहानी : कोतवाल का हुक्का

अमित श्रीवास्तव

जौनपुर में जन्मे अमित श्रीवास्तव उत्तराखण्ड कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं. अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता), पहला दख़ल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास).

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Sudhir Kumar

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