Featured

दूर पहाड़ों में बसे मेरे गांव में भी आ गया होगा वसंत

दूर पहाड़ों में बसे मेरे गांव में भी आ गया होगा वसंत. शायद इसीलिए कई दिनों से मेरा मन बेचैन है. महान प्रकृति विज्ञानी चार्ल्स डार्विन याद आ रहे हैं. अगर चिड़ियां उनकी बात समझ सकतीं तो तब वे उन्हें बताते कि वे उन्हें कितना प्यार करते हैं. डार्विन चिड़ियों की  ज़िंदगी की तमाम बातें  लोगों को बताना चाहते थे. वे यह रहस्य जानते थे कि समय आने पर प्रवास पर जाने और घर लौटने के लिए वे कितना बैचेन हो जाती हैं. उन्होंने उनकी एक पुरखिन बत्तख पर अपना प्रयोग किया था. उसे पिंजरे में रख दिया. दाना-पानी देते रहे. सोचा, उसे प्रवास पर न जाने दें तो देखें क्या होता है?
(Spring in Uttarakhand 2021)

ऋतु बदली और प्रवास पर जाने के दिन आ गए. पिंजरे के भीतर पुरखिन बत्तख की बैचेनी बढ़ने लगी. वह उड़ने के लिए पंख फड़फड़ाती. पंख पिंजरे से टकराते. उड़ने की उस कोशिश में बत्तख घायल हो गई, फिर भी वह उड़ने के लिए छटपटाती रही. आखिर डार्विन ने पिंजरा खोल दिया. बौराई सी बत्तख बाहर निकली और उसने घायल पंखों से ही प्रवास की लंबी उड़ान भर ली.

वसंत की गुनगुनी गर्माहट महसूस करते ही प्रवासी पंछी दूर पहाड़ों में अपने घर-घोंसलों की ओर लौटने के लिए बेचैन हो जाते है. वसंत उनमें प्यार की उमंग भी भर देता है और वे निकल पड़ते हैं सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर अपने घर-घोंसलों की ओर.

 वे जानते हैं, पहाड़ की चोटियों, उनकी ढलानों और चौरस मैदानों पर बर्फ पिघलने लगी होगी. उसके नीचे सोई हुई घास और कीड़े-मकोड़े भी जाग उठे होंगे. वसंत ऋतु के स्वागत में हजारों-हजार रंग-बिरंगे फूल खिल गए होंगे. उनके रस-कलश भर गए होंगे. उन पर कीट-पतंगे मंडराने लगे होंगे. और, बर्फ से जमी नदियों और झील-तालाबों की बर्फ भी धूप की गर्माहट से गल गई होगी. सैकड़ों-हजारों मील दूर छूटे उनके घर-घोंसले उनका इंतजार कर रहे होंगे.
(Spring in Uttarakhand)

और यहां, सीमेंट-कंक्रीट के इस विशाल जंगल में हर साल मैं भी वसंत की आहट पाकर वही बैचेनी अनुभव करने लगता हूं, पिंजरे में बंद डार्विन की उसी बत्तख की तरह. लेकिन, जानता हूं, एक बार जो महानगर में इस सीमेंट-कंक्रीट के पिंजरे में फंस गया, बाल-बच्चों को पालते-पोसते वह सालों-साल इसी में फंसा रह जाता है. नौकरी की पगार से साल भर उसे भोजन मिलने लगता है और बच्चे भी पढ़-लिख कर किसी बेहतर नौकरी की तलाश में दूसरे शहरों और देश-विदेश की ओर उड़ान भरने के लिए पंख तौलने लगते हैं.

बैचेन हूं क्योंकि जानता हूं, दूर पहाड़ के मेरे गांव में वसंत आ गया होगा. वनों में लाल बुरांश खिल गए होंगे. प्यूली के चटख पीले फूलों की बहार आ गई होगी. कफुवा बोलने लगा होगा-कुक्कू! कुक्कू! कुक्कू! कभी मैं भी अपने माता-पिता के साथ वसंत आने पर नीचे माल-भाबर से अपने ठंडे मुलुक पहाड़ की ओर लौट जाता था.
(Spring in Uttarakhand 2021)

थोड़ा गर्म जगहों पर वसंत के स्वागत में श्वेत-गुलाबी क्वैराल (कचनार) खिल गए होंगे. खिले हुए कचनार को देखते ही रहने का मन करता था. वनस्पति विज्ञानी इसे बौहुनिया कहते हैं. जानते हैं क्यों? क्योंकि पौधों का नामकरण करने वाले स्वीडन के महान वनस्पति विज्ञानी कार्ल लिनियस ने भारत के अपने इस वृक्ष का नाम दो फ्रांसीसी भाइयों-जीन बौहीन और गस्पार्ड बौहीन के सम्मान में उनके नाम रखा था. वे दोनों भाई स्विट्जरलैंड के निवासी थे और उन्होंने सोलहवीं सदी में पेड़-पौधों की प्रजातियों को पहचानने और उनका वर्गीकरण करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया था. लिनेयस को लगा, जैसे कचनार के पत्ते के दो बराबर भाग होते हैं, वैसे ही उन दोनों बौहिनिया भाइयों ने भी समान रूप से काम किया. उसने कचनार के पत्ते को बौहिनिया भाइयों का प्रतीक मान लिया.

नदी-घाटियों में सेमल के लाल-सिंदूरी फूल भी खिल गए होंगे. पंछियों को इस बात का पता लग गया होगा. मैनाएं, तोते, बुलबुलें, कौवे और गौरेयां सेमल के कटोरीनुमा फूलों के रस कलशों का मधुपान करने आ रही होंगी. हमारा यह फूलदार वृक्ष भारत में ही जन्मा और संस्कृत में शाल्मलि कहलाया. वनस्पति विज्ञानी कभी इसे बोम्बैक्स मालाबारिकम, कभी साल्मलिया मालाबारिका तो कभी बाम्बैक्स सीबा कहते रहे. बाम्बैक्स इसके वंश का नाम और मालाबारिकम या सीबा इसकी प्रजाति. लेकिन, बाम्बैक्स क्यों?
(Spring in Uttarakhand 2021)

 क्योंकि, लिनेयस ने यह नाम ग्रीक मतलब यूनानी भाषा से लिया. और, यूनानी में बाम्बैक्स का अर्थ है- रेशम का कीड़ा. असल में अपनी रेशमी रुई के कारण कहलाया यह बाम्बैक्स.

पांगरी के सुर्ख लाल फूल भी तो खिल गए होंगे! उत्तराखंड का हमारा कवि-कथाकार मित्र अनिल कार्की इसे घाटियों का बुरोंज (बुरोंश) कहता है. यों पहाड़ में यह रणेल या रण्यो कहलाता है. अनिल इससे जुड़ी एक मजेदार लोककथा भी बताता है कि पहाड़ की चोटी (धुर) की ओर रहने वाला एक धुरियाल युवक घाटी में रहने वाले अपने बगड़िया दोस्त से मिलने गया बल. उसे देने के लिए धूरे से बुरोंज के लाल-लाल सुंदर फूल ले गया जिनमें पंखुड़ियां ही पंखुड़ियां थीं. वह सोचने लगा दोस्त तो बुरोंज के सुंदर लाल फूल लाएगा लेकिन मैं उसे क्या दूंगा? सोचा, सेमल के लाल फूल दे दूंगा, लेकिन उसमें तो बस पांच ही पंखुड़ियां होती हैं. क्या दूंगा, क्या दूंगा सोच कर उसी फिक्र में रणेल के पेड़ के नीचे बैठ गया. रणेल ने उससे पूछा तो उसने अपनी पूरी परेशानी उसे बता दी. तब रणेल ने उसकी मदद करने की बात सोची. अनिल कहता है, और लो! बर्र से उसमें टक्क लाल फूल खिल गए!

प्रकृति ने इस प्यारे पेड़ को भी सेमल की तरह सुरक्षा के लिए तेज कांटे दिए हैं. जब इसकी सोई हुई कलियां अंगुलियों जैसे टक्क लाल फूलों के रूप में खिल जाती हैं, तब पत्तियों की कलियां सोई रहती हैं. जैसे रणेल अपनी पुष्प कलियों से कहता हो कि प्यारी कलियो जागो, देखो वसंत आ गया है. अपने फूलों की अनुपम छटा बिखेर दो. और, रणेल खिल जाता है. पर्णविहीन पौधों पर सुर्ख फूलों की यह बहार देखने वालों को सम्मोहित कर देती है. फूलों की बहार आ जाने के बाद धीरे से पत्तियों की सुप्त कलियां भी जाग जाती हैं और सुंदर, सजीली हरी-भरी, तिपतिया पत्तियों में बदल जाती हैं.
(Spring in Uttarakhand 2021)

हां, पहाड़ों में वसंत आ गया होगा. बुरोंश, प्यूली, पलाश, क्वेराल, सेमल और रणेल के साथ ही वन में मेहल के पेड़ भी सफेद फूलों से लद गए होंगे. शकिना और आड़ू के गुलाबी फूल खिल रहे होंगे. पहाड़ की ढलानों में ठौर-ठौर पर धौल के लाल फूलों की बहार आ गई होगी जिन पर मधुमक्खियां मंडरा रही होंगी. वसंत की बहार में:

झपन्याली डाल्यों मा, घुघुती घुरैली
गैरी-गैरी मा, म्योलड़ी बोलली
ऊंचि-ऊंचि डांड्यों मा, कफू बासलो!

हां, कफुवा बोल रहा होगा और मैं यहां… यहां सीमेंट-कंक्रीट के पिंजरे में अपने गांव-पहाड़ के वसंत का स्वप्न देख रहा हूं.
(Spring in Uttarakhand 2021)

देवेन्द्र मेवाड़ी

वरिष्ठ लेखक देवेन्द्र मेवाड़ी के संस्मरण और यात्रा वृत्तान्त आप काफल ट्री पर लगातार पढ़ते रहे हैं. पहाड़ पर बिताए अपने बचपन को उन्होंने अपनी चर्चित किताब ‘मेरी यादों का पहाड़’ में बेहतरीन शैली में पिरोया है. ‘मेरी यादों का पहाड़’ से आगे की कथा उन्होंने विशेष रूप से काफल ट्री के पाठकों के लिए लिखना शुरू किया है.

इसे भी पढ़ें: दा, उसे घुघुती मिल गई होगी

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago