पूरे भारत में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा बुलंद था देश की जनता के नेतृत्व में आज़ादी की अंतिम लड़ाई लड़ी जा रही रही. जब पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ रहा था तब टिहरी रियासत की जनता दोहरी लड़ाई लड़ रही थी. पहली अंग्रेजों से दूसरी रियासत के राजा के खिलाफ़. इस लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे श्रीदेव सुमन.
(Shri Dev Suman Birthday)
टिहरी रियासत अंग्रेजों के अधीन न थी. रियासत के महाराजा बोलते बद्री नाथ कहलाते थे. उनके अन्याय के विरोध में समय पर रियासत के लोगों ने जन आन्दोलन किये. इन जन आन्दोलनों को स्थानीय भाषा में ढंडक कहा जाता था. रियासत में होने वाले इन ढंडकों के बीच 25 मई 1915 को श्रीदेव सुमन का जन्म टिहरी गढ़वाल के जौल गांव में हुआ.
तारा देवी और हरीराम बडोनी के परिवार में जन्मे श्रीदेव सुमन के दो भाई और एक बहिन थे. श्रीदेव सुमन तीन बरस के थे जब उनके पिता की मृत्यु हैजा से हो गयी. उनके पिता एक वैद्य थे और इलाके में अपनी सेवा के लिये लोकप्रिय रहे. इसके बाद परिवार का लालन-पालन उनकी माता ने ही किया.
श्रीदेव सुमन की प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव और चम्बाखाल में हुई. वह पहली बार जेल सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान गये थे. दोस्तों की सहायता से उन्होंने दिल्ली में देवनागरी महाविद्यालय की स्थापना भी की यहीं से ‘सुमन सौरभ’ नाम से उन्होंने अपनी कवितायें भी प्रकाशित कराई.
(Shri Dev Suman Birthday)
दिल्ली में उनके द्वारा गढ़देश सेवा संघ (1937) की स्थापना भी की गयी यही बाद में हिमालय सेवा संघ कहलाया. 1938 में सुमन ने गढ़वाल की यात्रा की और जवाहरलाल नेहरु को रियासत की दुर्दशा के बारे में बताया. इसी साल उनका विवाह विनय लक्ष्मी के साथ हुआ. विनय लक्ष्मी देवप्रयाग विधानसभा से दो बार विधायक भी चुनी गयी.
23 जनवरी 1939 के दिन उन्होंने देहरादून में टिहरी राज्य प्रजा मंडल का गठन किया. सुमन क्ष्रेत्र से सबसे लोकप्रिय युवा नेता हुये. भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जब वह टिहरी आने लगे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. कभी देहरादून तो कभी आगरा की सेंट्रल जेल में उन्हें नजरबंद कर दिया गया.
1943 में जब सुमन आगरा जेल से छूटे तो उन्होंने टिहरी में नागरिकों के अधिकारों की मांग और अधिक मुखर कर दी परिणामस्वरूप उन्हें दिसंबर 1943 को टिहरी जेल भेज दिया गया. अपने जीवन के अंतिम 209 दिन उन्होंने इसी जेल में बिताये.
जेल में भी सुमन ने अपना विरोध जारी रखा. उन पर झूठे मुकदमे लगाये गये. 31 जनवरी 1944 को उन्हें दो साल के कारावास और 200 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गयी. सुमन ने तीन मांगे रखी
प्रजामण्डल को रजिस्टर्ड करके, राज्य के अन्दर सेवा करने का मौका दिया जाये.
मेरे झूठे मुकद्दमें की अपील स्वयं महाराज जी सुने.
मुझे पत्र-व्यवहार करने आदि की सुविधाएं दी जाये.
पन्द्रह दिनों के भीतर मांग पूरी न होने पर उन्होंने आमरण अनशन पर जाने की बात कही. जब 15 दिन तक उनकी मांगों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई तो उन्होंने 3 मई 1944 को अपना ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू किया. उन पर न जाने कितने अत्याचार किये गये लेकिन सुमन अपनी मांग पर अडिग रहे.
(Shri Dev Suman Birthday)
जब जनता तक सुमन के अनशन की बात पहुंची तो महाराजा ने एक अफ़वा फैला दी की सुमन ने अनशन तोड़ दिया है और महाराजा के जन्मदिन पर उन्हें रिहा किया जायेगा. अनशन तोड़ने और अपनी मांग से हटने के लिये श्रीदेव सुमन के समक्ष यह प्रस्ताव लाया गया था लेकिन उन्होंने जेल प्रशासन की न सुनी.
अनशन तोड़ने के लिये जेल प्रशासन ने खूब सारे अमानवीय प्रयास किये. 20 जुलाई की रात से श्रीदेव सुमन को बेहोशी आने लगी. 25 जुलाई की शाम उन्होंने शरीर त्याग दिया. रात के अंधेरे में जेल प्रशासन ने कंबल में लपेटकर उनका शरीर निकाला और भागीरथी-भिलंगना के संगम में चोरी-छुपे बहा दिया.
(Shri Dev Suman Birthday)
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