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पांव पसारता ‘मॉल कल्चर’ छोटे कारोबारियों की तबाही का सबब तो नहीं?

‘शापिंग मॉल्स’ पर निरन्तर बढ़ती चहलकदमी और गली, नुक्कड़ों के बाजारों में पसरता सन्नाटा यह बताने के लिए क्या पर्याप्त संकेत नहीं है कि हम कहां जा रहे हैं? कस्बों और शहरों के छोटे-बड़े व्यापारी ग्राहकों पर नजर टिकाये बैठे हैं, लेकिन ग्राहकों का टोटा व्यापारियों के माथे की सिलवटें निरन्तर बढ़ा ही रहा है. अपनी राजनीति चमकाने के उद्देश्य से कोई नेतानुमा व्यक्ति आकर इसके लिए ’जीएसटी’ और ’नोटबन्दी ’ पर ठीकरा फोड़कर चला जाता है तो अगला लोगों की ‘परचेजिंग पावर’ का रोना रोने से भी गुरेज नहीं करता. बात अगर ’जीएसटी’ की करें तो 40 लाख से कम टर्न ओवर वाले खुदरा दुकानदारों पर यह तर्क सिरे से खारिज हो जाता है, क्योंकि उन्हें जीएसटी रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता ही नहीं है. बल्कि वाणिज्य कर की तुलना में अब वे ज्यादा सहज महसूस कर रहे हैं. रही बात नोटबन्दी की, तो शुरूआती दौर में जब ’लिक्विड कैश’ के अभाव के कारण छोटे से बड़े, सभी तरह के व्यापार नकदी क अभाव में अवश्य प्रभावित हुए थे लेकिन करेंसी के  पर्याप्त प्रसार के बाद यह समस्या भी अब नहीं रही.

दरअसल युवाओं में ’मॉल कल्चर’ का बढ़ता क्रेज खुदरा दुकानदारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है. घरों की जरूरतें सब्जी से लेकर, ’ग्रोसरी’, रेडीमेड गार्मेंन्ट्स, कीचन एवं इलैक्ट्रिक अप्लायन्सेज, घर के सारे सामान ऑनलाइन मार्केट में उपलब्ध हैं, जो खुदरा बाजार दरों से कम कीमत पर सीघे घरों तक पहुंच रहे हैं. रही सही कसर छोटे बड़े शहरों में खुल रहे मॉल पूरी कर रहे हैं. मॉल एवं ऑनलाइन कल्चर युवा पीढ़ी में इस कदर पैठ बना चुका है कि खुदरा दुकानदार ग्राहकों के लिए मोहताज हो रहे हैं.

ऑनलाइन अथवा शॉपिंग मॉल की खरीद-फरोख्त विशुद्ध व्यापारिक होती है, न उसमें उधारी की गुजांइश है और न ही क्रेता और विक्रेता के बीच कोई भावनात्मक रिश्ता. कोई चहलकदमी करने की जरूरत नहीं, आज के डिजिटल दौर में कमरे के अन्दर कैद रहकर मानचाही वस्तु आपके कमरे तक पहुंचने में देर नहीं. इससे एक ओर वैश्विक दौर में हम घरों में कैद होकर आभासी दुनिया की तरफ  जा रहे हैं , वहीं सामाजिक संवेदना, आपसी मेलजोल से भी विमुख होते जा रहे हैं. गली मुहल्लों के दुकानदारों के बीच हमारा केवल खरीददार और विक्रेता का ही रिश्ता भर नहीं होता. दुआ सलाम से शुरू हुआ रिश्ता आपसी सहयोग एवं सुख-दुख तक में शामिल रहता है. परिचित को ही क्यों अनजान को भी वर्षा और धूप में आसरा, विवादों के बीच निबटारा, भिखारी को सहारा और सामयिक विषयों पर परिचर्चाओं का मंच, ये छोटे दुकानदार ही देते आये हैं. कल्पना कीजिए, यदि बाजार की सारी दुकानें बन्द हो जायं तो जिन्दगी में कितनी नीरसता आ जायेगी. लेकिन चन्द रुपयों की बचत के खातिर हम किस दिशा में जा रहे हैं ?

यह और भी अधिक चिन्ता का विषय है कि हल्द्वानी जैसे छोटे शहर में भी वॉलमार्ट की शुरूआत होने जा रही है. इस स्थिति में  छोटे व्यवसायी अपनी दुकानदारी के धन्धे को समेटने को विवश होंगे और बेरोजगारों की एक और नयी फौज की चुनौती को स्वीकार करना, सरकारों की गले की हड्डी बनना तय है. अगर समय रहते ऑनलाइन खरीददारी पर अंकुश लगाने के लिए कोई व्यापक नीति नहीं बनी और शॉपिंग मॉल्स की अनुमति यों ही दी जाती रही तो यह संकेत शुभ नहीं हो सकते. इसके लिए छोटे कारोबारियों को एकजुट होकर विरोध करना समय की मांग है. एक ओर विदेशी निवेश से रोजगार प्रोत्साहन की बात कही जा रही है और दूसरी ओर ऑनलाइन शॉपिंग अथवा अमेजन, वालमार्ट जैसे विदेशी प्रतिष्ठानों के माध्यम से उनके वारे-न्यारे हो रहे हैं.

भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं

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Sudhir Kumar

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