बीते मंगलवार उत्तराखंड लोक संस्कृति के आधार स्तंभ शिवचरण पांडे का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया. शिवचरण पांडे (Shivcharan Pandey)वह नाम है जिन्होंने अल्मोड़ा की रामलीला और होली की परम्परा को बनाये रखने के लिये अपना जीवन लगा दिया. वरिष्ठ रंगकर्मी के निधन पर काफल ट्री के सहयोगी जयमित्र सिंह बिष्ट ने उन्हें इस तरह याद किया- सम्पादक
अल्मोड़ा के विश्व प्रसिद्ध दशहरा मेले में आपको एक बुजुर्ग व्यक्ति पिछले कई वर्षों से बेहद साधारण वस्त्रों में अपने एक कंधे में झोला टांगे हुए और उसमें भरी हुई पुरवासी पत्रिका को अल्मोड़ा के बाज़ार में बड़ी आत्मीयता से बांटते हुए अक्सर मिल जाया करते थे.
ख़ास बात यह थी कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति की इस प्रमुख पत्रिका पुरवासी का संपादन भी वह पिछले 42 वर्षों से कर रहे थे. साल भर पत्रिका के पीछे स्वयं और अपनी टीम के साथ कड़ी मेहनत कर दशहरा का दिन वह चुनते पुरवासी के अंक के लोकार्पण के लिए, एक अलग ही अंदाज में सीधे अपने झोले से पुरवासी को पाठकों के हाथों में देकर. शायद यह कार्य उन्हें बहुत प्रिय था इतना प्रिय कि अपने पैरों के असहनीय दर्द के बावजूद वह पुरवासी को अपने झोले, अपने दिल से लोगों एक पहुंचाते रहे अपने जाने-जाने तक.
ये बुजुर्ग अब आने वाले दशहरा महोत्सवों में आप को अल्मोड़ा बाज़ार में या फ़िर अल्मोड़ा के लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब में होलियों की बैठकी होली में और विश्व प्रसिद्ध रामलीला में हारमोनियम पर अपनी उंगलियां चलाते और अपने ख़ास अंदाज में गाते हुए अब कभी नजर नहीं आएंगे.
शिवचरण पांडे आज इस दुनिया को अलविदा कह गए, लंबे समय से बीमार थे पर बीमारी के बावजूद उनका हुक्का क्लब से मोह नहीं छूटा वो अपने अंत समय तक हुक्का क्लब की गतिविधियों, चाहे रामलीला मंचन हो या बैठकी होली हो अथवा पुरवासी पत्रिका, से दिल से जुड़े रहे.
यह उनका अल्मोड़ा और उत्तराखंड की संस्कृति कला और साहित्य की दुनिया से अपार प्रेम ही था कि उन्होंने इसके लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया. हुक्का क्लब की अनूठी रामलीला की शुरुआत हर साल उनके मधुर गले से होती जिससे स्तुति गान कर वो दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर देते. होली की बैठकों में भी वो अपनी गायन शैली से रंग भर देते थे. लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब के सभी पदाधिकारी और सदस्यों को वह अपने परिवार से ज्यादा प्यार और दुलार देते. हुक्का क्लब ही उनकी दुनिया थी और दिनचर्या भी, उनका जैसा समर्पण बहुत कम देखने को मिलता है. उनके जाने से कला जगत और अल्मोड़ा की सांस्कृतिक विरासत को हुए नुकसान की भरपाई बहुत मुश्किल है. उन्हें सादर नमन.
जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
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