कला साहित्य

शेरदा ‘अनपढ़’ की कविता मुर्दाक बयान

जब तलक बैठुल कुनैछी, बट्यावौ- बट्यावौ है गे
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे
(Sherda Anpadh Poem)

जो दिन अपैट बतूँ छी,
वी मैं हूँ पैट हौ,
जकैं मैं सौरास बतूँ छी,
वी म्यैर मैत हौ l
माया का मारगाँठ आज
आफी-आफी खुजि पड़ौ,
दुनियल् तरांण लगै दे
फिरलै हाथ हैं मुचि पड़ौ
अणदेखी बाट् म्यौर ल्हि जाऔ- ल्हिजाऔ है गे
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे

जनूँ कैं मैंल एकबट्या
उनूँलै मैं न्यार करूँ,
जनू कैं भितेर धरौ
उनूँलै मैं भ्यार धरुं
जनू कैं ढक्यूंणा लिजि
मैंल आपुँण ख्वौर फौड़,
निधानै घड़ि मैं कैं
उनुलै नाँगौड़ करौ
बेई तक आपण आज, निकाऔं  निकाऔं है गे
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे
(Sherda Anpadh Poem)

ज्यूंन जी कैं छग निदी
मरी हूं सामोउ धरौ,
माटौक थुपुड़ हौ
तब नौ लुकुड़ चड़ौ 
देखूं हूं कै कांन चड़ा
दुनियैल् द्वी लाप तक,
धूं देखूं हूं सबैं आईं
आपुंण मैं-बाप तक
बलिक् बाकौर जस, चड़ाऔ है गे
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे

जो लोग भ्यारा्क छी ऊं
दुखूं हूँ तयार हैईं,
जो लोग भितेरा्क छी ऊं
फुकूं हूं तयार हैईं
पराई पराई जो भै
ता्त पाणि पिलै गईं,
जनूं थैं आपुंण कूंछी
वीं माट में मिलै गई
चितक छारण तलक बगाऔ-बगाऔ है गे
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे  यो रीत दुनियैंकी चलि रै

चलण जरूरी छू
ज्यूंन रुंण जरूरी न्हैं
मरण जरूरी छू l
लोग कुनई दुनि बदलिगे
अरे दस्तूर त वीं छन,
छाति लगूणी न्हैं गईं यां बै
आग् लगूंणी वीं छन
जो कुड़िक लै द्वार खोलीं, वैं लठ्याऔ-लठ्याऔ है गे
पराण लै छुटण निदी, उठाऔ- उठाऔ है गे
जब तलक बैठुल कुनैछी, बट्यावौ- बट्यावौ है गे
(Sherda Anpadh Poem)

जीवन की गजब दार्शनिक एवं व्यावहारिक समझ थी शेरदा अनपढ़ को

ठेठ पहाड़ी लोगों के सबसे लोकप्रिय कवि शेरदा

बच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री देने वाला अनपढ़ कवि शेरदा

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago