शेखर पाठक की नज़र में केदारनाथ का विकास व वर्तमान स्थिति: इंटरव्यू

केदारनाथ के सतत विकास को लेकर किये अपने चार साल के शोध के दौरान मैंने यही पाया कि 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ को जिस तरीके से संरक्षित और सुरक्षित किये जाने की जरूरत थी उससे अभी हम कोसों दूर हैं. केदारनाथ कब धार्मिक पर्यटन स्थल से पिकनिक स्पॉट में बदल गया इसका हमें एहसास ही नहीं हुआ. अपनी सीमित वहन क्षमता वाला यह गंतव्य आज लाखों की भीड़ को अपने सीने पर ढो रहा है. तीर्थ यात्रियों की लगातार बढ़ती भीड़ व घाटी में फेंका जा रहा सैंकड़ों टन कूड़ा केदारनाथ व उसकी पारिस्थितिकी के लिए खतरा बनता जा रहा है.
(Shekhar Pathak Interview)

2013 की आपदा के बाद यह दूसरा मौका है जब केदारनाथ पर इतनी बहस हो रही है जो वाजिब भी है. शोध के दौरान केदारनाथ पुनर्निर्माण व उसके सतत विकास को लेकर मैं इतिहासकार व पर्यावरणविद प्रोफेसर शेखर पाठक से मिला व उनसे जानने व समझने की कोशिश की कि क्या केदारनाथ का पुनर्निर्माण 2013 की आपदा के बाद सतत विकास के मार्ग पर प्रशस्त है? तथा बढ़ती भीड़ के खतरों से केदारनाथ व उसकी पारिस्थितिकी को कैसे बचाया जा सकता है?

इतिहासकार शेखर पाठक के साथ लेखक

सर आप केदारनाथ के विकास को कैसे देखते हैं?

केदारनाथ के आस-पास जो भी आप बसासत देख रहे हैं यह पिछले 60-70 सालों में ही विकसित हुई है जो कि लंबे समय से अनियोजित, अनियमित व अनियंत्रित तरीके से विकसित होती रही है. लगातार बढ़ती मानवजनित गतिविधियों के कारण केदारनाथ व उसके आस-पास का क्षेत्र खतरे में बना हुआ है. वैसे तो 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ का पुनर्निर्माण तुरंत प्रभाव से नहीं किया जाना चाहिये था. भारी मात्रा में आए मलबे को कुछ समय सैटल होने दिया जाना चाहिये था लेकिन पर्यावरणविदों की चेतावनियों को अनदेखा व अनसुना किया जाना केदारनाथ जैसे संवेदनशील गंतव्य के लिए शुभ संकेत नहीं है.

परंपरागत आधुनिक यात्रा पर्यटन में कितना अंतर है?

आज की पर्यटन यात्राएँ परंपरागत यात्राओं के बिल्कुल उलट हैं. केदारनाथ में लगातार बढ़ती तीर्थयात्रियों की संख्या में परंपरागत यात्रा पर्यटन वाला तत्व नहीं है. यात्रा पर्यटन में आधुनिक पर्यटन के तत्व इतने अधिक मिल गए हैं कि यात्रा पर्यटन का असल मतलब दब सा गया है. पुराने समय में लोग अपने शरीर को कष्ट देकर यात्रा स्थलों तक पहुँचते थे और कई महीनों तक पैदल यात्राएँ करते थे लेकिन आधुनिकीकरण ने यात्राओं को आरामदायक बना दिया है. अब लोग पैदल चलने की जगह हैलीकॉप्टर या मोटरवाहनों को ज़्यादा तरजीह देते हैं. शरीर को कष्ट न हो इसलिए तमाम आधुनिक सुख सुविधाएँ साथ लेकर चलते हैं. पुराने समय में तीर्थ यात्राएँ जीवन में एक बार होती थी और वह ज़िंदगी भर का अनुभव बन जाता था लेकिन अब तो युवा पीढ़ी हर साल केदारनाथ जैसी जगहों पर जाने लगी है मानो वो कोई तीर्थ स्थल नहीं बल्कि पिकनिक स्पॉट हो.
(Shekhar Pathak Interview)

आखिर केदारनाथ में इतनी भीड़ क्यों बढ़ रही है?

आधुनिक सुविधाओं व मोटरमार्ग का होना, भारत में मध्यम वर्ग की आय का बढ़ना, केदारनाथ का प्रचार-प्रसार आदि ऐसे कारण हैं जिस वह से वहाँ भीड़ लगातार बढ़ रही है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ रही इस अनियंत्रित भीड़ को तुरंत प्रभाव से नियंत्रित करना होगा अन्यथा प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठा पाना मुश्किल होता जाएगा. सरकारों व पर्यटकों को समझना होगा कि पहाड़ और पहाड़ों में स्थित धार्मिक/प्राकृतिक स्थल मैदानी क्षेत्रों के मुकाबले बिल्कुल अलग हैं इसलिए उन्हें उनके परंपरागत रूप में ही देखना व छोड़ना होगा ताकि उनकी मौलिकता बनी रहे.

भीड़ को नियंत्रित करने गंतव्य को सतत विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए क्या करना चाहिये?

भीड़ को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है पर्यटकों की संख्या सीमित की जाए, उन्हें सिर्फ केदारनाथ में केंद्रित होने की जगह आस पास के अन्य गंतव्यों की ओर विकेंद्रित किया जाए तथा जो पुराने पैदल यात्रा मार्ग हैं उन्हें पुनर्जीवित किया जाए. इस मामले में हमें यूरोप से सीखना चाहिये. यूरोपीय देशों ने आल्प्स पर्वत की पारिस्थितिकी को बचाने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए वहाँ पर्यटकों की तमाम गतिविधियों को नियमित किया है. स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने आल्प्स की तरफ जाने वाले डीजल व पैट्रोल जनित वाहनों पर पूरी तरह रोक लगाई हुई है. सिर्फ बैट्री जनित गाड़ियाँ ही आल्प्स पर्वत के बेस तक पर्यटकों को लेकर जा सकती हैं. यहाँ तक कि आल्प्स में चलने वाली रोपवे भी गुरुत्वाकर्षण के मैकेनिज्म पर काम करती है. फ़्रांस, इटली, जर्मनी, आस्ट्रिया आदि तमाम देश भी सतत विकास के इसी मॉडल का अनुसरण करते हैं. लेकिन केदारनाथ में लगातार बढ़ती हैली सेवाएँ न सिर्फ कार्बन उत्सर्जन व ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा दे रही हैं बल्कि केदारनाथ सेंचुरी में रह रहे जानवरों के व्यवहार को भी प्रभावित कर रही हैं. अधिक कार्बन उत्सर्जन का मतलब ही है गर्मी का बढ़ना और ग्लेशियर्स का तेजी से पिघलना. जिस वजह से भविष्य में हो सकता है कि हमें एक और बड़ी आपदा को झेलना पड़े.
(Shekhar Pathak Interview)

आप केदारनाथ के पुनर्निर्माण यात्रा पर्यटन को कैसे देखते हैं?

पुनर्निर्माण की पूरी प्रक्रिया न सिर्फ स्थानीय लोगों के लाभ व कल्याण को ध्यान में रखकर की जानी चाहिये बल्कि गंतव्य की वहन क्षमता, पारिस्थितिकी व संवेदनशीलता को भी ध्यान में रखकर की जानी चाहिये. ऑल वैदर रोड जैसे प्रोजेक्ट में पर्यावरण की अनदेखी किया जाना अच्छा संकेत नहीं है. इसी तरह केदारनाथ में लगातार बन रहे सीमेंट व कंक्रीट के ढाँचे उसकी पारिस्थितिकी व संवेदनशीलता के खिलाफ हैं. स्थाई ढाँचों की जगह अस्थाई टेंट जैसी सुविधाओं को केदारनाथ में बढ़ावा दिया जाना चाहिये. पहाड़ों के लिए बनाई जाने वाली तमाम पॉलिसियों में नीति नियंताओं को पर्यावरण को सबसे ऊपर रखना चाहिये. यद्यपि आधुनिक यात्रा पर्यटन को परंपरागत यात्रा पर्यटन से बदल पाना मुश्किल है लेकिन आधुनिक यात्रा पर्यटन को सतत विकास से जोड़कर आगे बढ़ाया जा सकता है.

परंपरागत यात्रा पर्यटन में जहाँ पैदल चलने, पवित्रता, एक्स्प्लोरेशन व जंगलों से गुजरने जैसे तत्व थे वहीं आधुनिक यात्रा पर्यटन में गाड़ियों/हेलीकॉप्टरों से चलने, आराम/पिकनिक करने व कंफर्ट जैसे तत्व शामिल हैं. केरल में जैसे अयप्पा मंदिर में पैदल यात्रा को बढ़ावा दिया जाता है वैसे ही केदारनाथ के परंपरागत मार्गों को पुनर्जीवित कर पैदल यात्रा को बढ़ावा दिया जाना चाहिये. यात्रा पर्यटन का असल मतलब लोगों तक पहुँचाने की आज के दौर में सख़्त जरूरत है. साथ ही चार धामों को छोड़कर पंच बद्री, पंच केदार, पंच प्रयाग व उत्तराखंड के अन्य गंतव्यों को बढ़ावा दिया जाना भी जरूरी है ताकि यात्रियों को विकेंद्रित किया जा सके.

अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर. उम्मीद है कि राज्य व केंद्र सरकार आपके सुझावों पर गौर करेंगी व केदारनाथ के सतत विकास के लिए इन सुझावों को धरातल पर अमली जामा पहनाएँगी.
(Shekhar Pathak Interview)

कमलेश जोशी

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

इसे भी पढ़ें: दर्दभरी खूबसूरत कहानी ‘सरदार उधम सिंह’

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago