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शारदा और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती की पहली पुण्यतिथि

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99 साल की उम्र में गत वर्ष आज ही के दिन 11 सितम्बर 2022 को शारदा और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती ब्रह्मलीन हो गए थे. उत्तराखण्ड आन्दोलन के समय सन् 1995 में उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति की तत्कालीन प्रधानमन्त्री नरसिम्हाराव के साथ दो दौर की बैठक करवाने में स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती जी की महत्वपूर्ण भूमिका थी. स्वामी जी आन्दोलनकारियों व प्रधानमंत्री के बीच बातचीत करवाने के लिए ऋषिकेश में रहने वाले अपने शिष्य स्वामी स्वयंभू चैतन्य के कारण तैयार हुए थे. जो उत्तराखंड क्रांति दल के संरक्षक इन्द्रमणि बड़ोनी और उक्रान्द के तत्कालीन अध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार के साथ अपनी निकटता के कारण ऋषिकेश में राज्य आन्दोलन के धरने-प्रदर्शन में भागीदारी करते रहे थे.
(Shankarachary Swami Swarupanand Sarasvati)

शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती से तत्कालीन प्रधानमन्त्री नरसिम्हाराव की काफी निकटता थी. इसी निकटता के कारण स्वामी स्वयंभू चैतन्य से इन्द्रमणि बड़ोनी जी ने अनुरोध किया कि वे अपने गुरु स्वरुपानन्द सरस्वती को संयुक्त संघर्ष समिति की बातचीत प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव से करवाने के लिए तैयार करें. उसके बाद स्वयंभू चैतन्य अपने साथ त्रिवेन्द्र पंवार को लेकर कई बार स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती जी से मिले और उत्तराखण्ड में आन्दोलनकारियों के दमन और राज्य आन्दोलन की भावनाओं से अवगत कराया था. स्वरुपानन्द सरस्वती जब खुद इस बात से सहमत हुए कि उत्तराखण्ड बनना ही चाहिए, तब जाकर उन्होंने प्रधानमंत्री और उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति के बीच बातचीत करवाने के लिए मध्यस्थ बनना स्वीकार किया.

उनकी पहल पर ही दो दौर की बातचीत उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति और प्रधानमंत्री के बीच हुई. जिसमें एक बातचीत में तत्कालीन गृहमन्त्री शंकरराव चव्वहाण भी मौजूद थे. उस बैठक में उत्तराखण्ड के केन्द्र शासित प्रदेश बनाने पर सैद्धान्तिक सहमति मोटे तौर पर बनी. उसी बैठक में प्रधानमंत्री राव ने गृहमन्त्री से संयुक्त संघर्ष से बातचीत कर के केन्द्र शासित उत्तराखण्ड का मसौदा तैयार करने को कहा. जिस पर एक ड्राफ्ट तैयार भी किया जा चुका था. यह बातचीत आगे बढ़ती उससे पहले ही उत्तराखण्ड के ही कुछ नेताओं ने एक बड़ी साजिश रची और तत्कालीन गृहराज्य मन्त्री राजेश पायलट के माध्यम से तथाकथित 35 आन्दोलनकारी संगठनों को बिना प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव की सहमति के बातचीत के लिए आमन्त्रित करवाया.
(Shankarachary Swami Swarupanand Sarasvati)

बस वहीं से बातचीत दूसरी दिशा की ओर चली गई और 1996 के लोकसभा चुनाव से पहले नरसिम्हाराव उत्तराखण्ड को केन्द्र शासित बनाने के बारे में कोई अंतिम निर्णय नहीं कर पाए. उत्तराखण्ड के कुछ नेताओं की इन्हीं हरकतों से व्यथित स्वरुपानन्द सरस्वती जी ने उसके बाद एक मुलाकात में त्रिवेन्द्र पंवार से कहा भी था कि आप लोगों के उत्तराखण्ड के ही कुछ नेताओं की हरकतों से उत्तराखण्ड केन्द्र शासित राज्य बनने से वंचित रह गया है. ये सब बातें अब इतिहास का हिस्सा हैं.

भले ही उत्तराखण्ड केन्द्र शासित राज्य न बन कर भाजपा द्वारा अहसान पर दिया गया राज्य बनकर रह गया हो, पर उस समय आन्दोलनकारियों के प्रमुख संगठन उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति और प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव के बीच दो दौर की महत्वपूर्ण बैठक करवाने में शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती जी ने जो भूमिका निभाई उसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती जी को भावपूर्ण नमन.
(Shankarachary Swami Swarupanand Sarasvati)

जगमोहन रौतेला

जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं.

यह लेख भी पढ़ें : अराजक होने से कैसे बचे कांवड़ यात्रा

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