समाज

अपने अंतिम दिनों में शैलेश मटियानी

लेखककीय अस्मिता और स्वाभिमान के मूल्य पर कभी समझौता ना करने वाले शैलेश मटियानी पहले अल्मोड़ा में दिखाई देते थे. वे अल्मोड़ा में एक विवादित व्यक्ति के रूप में भी चर्चित थे. उनके उपन्यासों में एक भोगा हुआ सच और अपना ही आसपास दिखाई देता था. उनकी रचनाएं भी उनके जीवन संघर्ष के यथार्थ जैसी ही थी. Shailesh Matiyani

जीवन के प्रारंभिक काल का संघर्ष, अल्मोड़ा छोड़कर मुंबई में भोगा संघर्ष और उसी संघर्ष में लिखी कालजई रचनाएं शैलेश मटियानी की अपनी पहचान थी. 25 उपन्यासों, 19 कहानी संग्रह, 10 वैचारिक लेख संग्रह तथा कई बालोपयोगी पुस्तकों का सर्जन इन्होंने किया था.

मटियानी 1931 में बाड़ेछीना अल्मोड़ा में पैदा हुए थे और 24 अप्रैल 2001 में दिल्ली अस्पताल में उनका निधन हुआ. मटियानी का अधिकांश समय इलाहाबाद मैं ही बीता. लेकिन उनके छोटे पुत्र की अकस्मात हुई मृत्यु हत्या ने उन्हें तोड़ कर रख दिया. वह मानसिक रूप से विक्षिप्त रहने लगे. जीवन के अंतिम 5-6 वर्षों में वे हल्द्वानी आ गए और आवास विकास कॉलोनी में किराए के घर पर रहने लगे.

कभी-कभी तो वह सामान्य से रहते किंतु कभी असामान्य हरकतें करने लगते. घर छोड़कर भाग जाते और विक्षिप्तता की हालत में जहां-तहां चले जाते. इलाहाबाद में भी उन्हें ऐसी ही स्थिति में देखा गया था. उन्हें कई बार इलाहाबाद दिल्ली आदि स्थानों पर अस्पतालों में भी भर्ती किया गया. यहां हल्द्वानी में जब वे विक्षिप्त अवस्था में भागकर किसी बस पर सवार हो जाते तो कई लोग उन्हें पकड़कर घर पहुंचा देते.

मटियानी शरीर से भारी थे और विक्षिप्तता में उन्हें काबू कर पाना आम आदमी के बस का नहीं रह जाता था. फिर कई घंटों बेहोश पड़े रहते. उनके घर छोड़ कर भाग जाने का समाचार पाकर कई बार उन्हें खोजा जाता. जब वे सामान्य होते तो ऐसे विषयों पर चर्चा करने लगते जो समझ से परे हो जाते. वह घंटों अनेक गूढ़ विषयों पर चर्चा करते जब वह राष्ट्र, राष्ट्रवाद, संविधान आदि अनेक विषयों पर बोलने लगते तो उनका इन विषयों पर मौलिक विचार चमककृत करने वाला होता. यह एक गहन विश्लेषण का विषय है कि वह विक्षिप्तता की स्थिति तक कैसे पहुंचे.

वामपंथ से उनका मोहभंग क्यों हुआ. पुत्र की हत्या उन्हें क्यों विचलित कर गई. धर्मयुग वाले मुकदमे में उनकी पराजय के बाद न्याय प्रणाली से उनका मोहभंग कैसे हुआ. और अंत में उन्हें दक्षिणपंथ की ओर झुका कैसे मान लिया गया. इससे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जिस व्यक्ति ने अस्मिता और स्वाभिमान के मूल्य पर किसी प्रकार का समझौता जीवन भर नहीं किया वह जीवन के अंतिम दिनों में इतना निरीह कैसे हो गया की भ्रष्ट राजनीति भ्रष्ट नौकरशाही से आर्थिक सहयोग की अपील करने लगा. क्यों ऐसे व्यक्ति ने अपने जीवन दर्शन को अपमान की भट्टी में झोंक डाला. Shailesh Matiyani

स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर

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  • मटियानी जी के विषय में यह जानकर दुख हुआ। क्या मटियानी जी के ऊपर कुछ पुस्तकें आई हैं?

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