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हिमालयी लोककथा: सात सुन्दर घोड़े

Read in English:Seven Horses in a Forest

हजारों वर्षां पहले तिब्बत में पर्वत के चारों ओर, जिसे कुछ तिब्बती लोग, कांग तिसे और दूसरे कैलास या कांग रिपोचे के नाम से जानते थे, एक प्राचीन धर्म तेजी से फैल रहा था जिसका उद्देश्य अच्छे कर्मों व करुणा का विस्तार करना एवं लोगों के मस्तिष्क से अभिज्ञानता को पूर्ण रूप से मिटा देना था. प्राचीन समय में झांग झुंग ने अपने राज्य में सिल्क-रूट के विस्तृत मार्ग के ऊपर राज्य किया एवं उस राज्य में इस धर्म को ‘बोन’ के नाम से जाना गया.

झांग झुंग के साम्राज्य में तोंपा शेरनब नामक एक अत्यंत करुणामयी राजकुमार का जन्म हुआ. उसके

जन्म के समय से ही यह निर्धारित था कि वह बोनापो का अधिनायक बनेगा और उसने अपने आगमन के साथ ही लोगों के कष्ट दूर कर दिया था. उसे यह ज्ञात था कि लोग अच्छी एवं दुष्ट आत्माओं के समक्ष जानवरों की बलि देते हैं और मरने से पहले की पशुओं की मिमियाने की ध्वनि के कारण उसका हृदय अत्यंत दुख से भर जाता था अतः उसने लोगों को अपनी करुणा व सम्वेदनशीलता प्रदान करने का निश्चय किया.

उसने कहा, ‘किसी जीवित भेड़ की बलि देने की बजाय एक आटे की बनी हुई भेड़ को अर्पित की जाये, पशुओं का रक्त अर्पित करने की बजाय दूध अर्पित किया जाए,’ लोगों को इस बात के लिए तैयार करने के लिए उसे अत्यधिक धैर्य व समय लगा परंतु थोड़े समय पश्चात लोगों को सम्वेदना व करुणा का महत्व समझ आया और वे उस राजकुमार के निर्णय का पालन करने के लिए राजी हो गये. इस प्रकार हिंसा व अनभिज्ञता के अंधकार से भरी हुई भूमि में राजकुमार तोंपा शेनरब एक प्रकाश स्तम्भ बन गये.

परंतु वहां पर अंधकार रूपी नकारात्मकता की उपासना करने वाले लोग भी उपस्थित थे. देवताओं, राक्षसों एवं राजाओं को लोगों की प्रशंसा की आवश्यकता होी है और वे लोगों के भीतर भय फैलाकर रखते हैं नहीं तो उनकी शक्ति क्षीण हो जायेगी. जो देवता करुणा व उदारता का प्रसार करते हैं और यदि लोग उनके उपदेशों पर विश्वास करते हैं तो वे देवता शक्तिशाली हो जाते हैं और इसी प्रकार जो दुष्ट आत्माएं डर व आक्रामकता का प्रसार करती है और लोग उनसे भयभीत रहते हैं तो व शक्तियां बलशाली हो जाती है.

कैलास पर्वत से बहुत दूर कोंग नामक स्थान पर तोंपा शेनरब से एकमात्र विपरीत एक दृष्ट राजा था जिसका नाम छापबा लक्रिंग था. उसने अपने क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन को नियंत्रित करके उन पर शासन किया हुआ था. जो लोग उसकी पूजा नहीं करते थे वह उन्हें कष्ट व पीड़ा देता था और जो लोग उसके आगे अपने पशुओं की बलि देते थे एवं स्वर्ण व रत्न अर्पित करते थे, उन्हें पुरस्कृत करता था. केवल वही राक्षस उन लोगों को अनाज, औषधि एवं कपड़े प्रदान कर सकता था अतः किसी भी व्यक्ति के पास इतना अधिकार नहीं था कि वे इस बात का निर्णय ले सकें कि वे उस राक्षस का अनुगमन करना चाहते भी है या नहीं.

जब छापबा लाक्रिंग ने यह जाना कि तोंपा शेनरब सच्चाई, उदारता एवं सौम्यता के मार्ग पर चलते हुए उसका प्रचार प्रसार कर रहा है तो उसे बहुत बुरा लगा क्योंकि यदि लोग करुणा एवं उदारता को समझते हैं और सौम्यता पूर्वक एक दूसरे का आदर करते हैं उसकी वजह से समाज में डर व भय घटता जाता हैं परंतु एक राक्षस राजा के लिए उसकी सबसे बड़ी शक्ति ही लोगों में व्याप्त डर व भय होता है. इसलिए छापबा लाक्रिंग को लगा कि कहीं वह अपना बल ना खो बैठे अतः पह तोंपा शेरनब पर आक्रमण करने के उद्देश्य से कैलास पर्वत आया.

तोंपा शेनरब के दिखाए हुए करुणामयी प्रकाश के मार्ग चलने से रोकने के लिए छापबा लाक्रिंग ने लोगों में अविश्वास, लालच, जलन, क्रोध, झूठ, हठ, अहंकार एवं आलस्य को फैलाया परंतु अब तक लोग तोंपा शेनरब की शिक्षा को समझ चुके थे अतः छापबा लाक्रिंग की एक भी चाल ना चल सकी.

तोंपा शेनरब का विनाश करने के लिए उसने राक्षसों की सेना तैयार की ओर उनका प्रभुत्व किया. वे राक्षस सदा ही बल व शक्ति के नशे में धुत्त रहते थे. जब उन राक्षसों ने तोंपा शेनरब पर आक्रमण किया तो उसने अपनी करुणा दर्शाते हुए उन्हें अपने ज्ञान से प्रभावित किया. जो राक्षस अब तक अहंकार ओर अनभिज्ञता में जीते थे, अपनी हार मानते हुए उन्होंने अपने हथियार भूमि पर रख दिये और गड़रिए और शांतिपूर्वक व्यापार करने वाले लोगों में बदल गए एवं तोंपा शेनरब के दिखाए हुए करुणामयी प्रकाश के मार्ग पर उसके साथ चलने के लिए उसके सहभागी बन गए.

परंतु उस राक्षस राजा का क्रोध अभी भी समाप्त नहीं हुआ था एवं जिस प्रकार किसी सड़ी हुई मछली के इर्द-गिर्द मक्खियां भिनभिनाती रहती है उसी प्रकार दुष्ट विचारों ने उसे चारों तरफ से घेरा हुआ था. जब तोंपा शनेरब लोगों में अधिक से अधिक करुणा व ज्ञान का प्रसार करने के उद्देश्य से छा प्रदेश में आया तो छापबा लाक्रिंग एक थके हुए यात्री के रूप में तोंपा शेनरब के तंबू घुसा और किसी महिला द्वारा एक कटोरा पानी पीने के लिए आग्रह करने लगा.

वह एक महिला की सुंदरता एवं दूसरी की बनाई की कला की तारीफ करने लगा और एक पत्नी के कान में कुछ फुसफुसाने लगा ताकि दूसरी पत्नी का जलन होने लगे. इसी प्रकार एक माता-पुत्री में विरोध उत्पन्न करने के लिए माता के हृदय में संदेह उत्पन्न किया एवं पुत्री के दिमाग को क्रोध से भर दिया. चालाकी भरे शब्दों के बने जादुई धागे में उसने महिलाओं को फांसा और चालाकी से उन्हें अपने साथ ले गया.

जैसे ही तोंपा शेनरब अपने तंबू में वापस लौटा तो वहां सब कुछ खाली था. न ही कोई अग्नि प्रज्वलित थी, न ही पर्वूजों को अर्पण करने के लिए किसी प्रकार की अगरबत्ती जली हुई थी. तभी अचानक उसकी अनुमति के बिना एक हवा का झोंका उसे छू कर चला गया. तोंपा शेनरब का समझते देर ना लगी और वह छापबा लाक्रिंग के राज्य की ओर उड़ चला. उसके न्यायपूर्ण शब्द एवं करुणामयी प्रकाश ने उन दुष्ट विचारों एवं बुरे कर्मों को दूर कर दिया और उस राक्षस राजा के चुंगल में फंसी महिलाओं को छुड़ा लिया. जब वे सब वापस लौट रहे थे तो तोंपा शेनरब व वे महिलाएं रास्ते भर ये प्रार्थना करते जा रही थी कि छापबा लाक्रिंग अपनी दुष्टता छोड़ दे.

अनभिज्ञता हमेशा हठीली होती है. छापबा लाक्रिंग इस प्रकार का मनुष्य था जो अपनी आंखों की अपनी ही हथेलियों से बंद करके पर्वत के चारों और दौड़ लगाना चाहता था. युद्ध व लड़ाई उसे सुख प्रदान करती थी जिससे उसे शक्ति मिलती थी और उसी शक्ति के बल पर वह जीता था. अतः वह तोंपा शेनरब के क्षेत्र के घोड़ों के अस्तबल में घुस आया और सात सुंदर घोड़ों को चुराकर गोंगबु नामक स्थान की ओर उड़ गया.

अब तक तोंपा शेनरब को यह ज्ञात हो चुका था कि जब तक वह छापबा लाक्रिंग का पाठ नहीं पढ़ाएगा तब तक यह लड़ाई समाप्त नहीं हो सकती अतः उसने छापबा लाक्रिंग के छुपने वाले स्थान की ओर प्रस्थान किया. छापबा लाक्रिंग को गोंगबु की ओर आते हुए राजकुमार का प्रकाशमयी आगमन दिखायी पड़ा. तभी उसने उन घोड़ों को विशाल पेड़ों में बदल डाला और स्वंय उन विशाल पेड़ों के जंगलों में छुप गया.

परंतु तोंपा शेनरब की ज्ञान उन्मत्त आंखों ने उन सात पेड़ों को पहचान लिया जो की घोड़ों से बदल दिए गए थे. जैसे ही छापबा लाक्रिंग के झूठ का पर्दाफाश हुआ सभी लोगों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया और ये सोच सोच के आश्चर्य चकित हो रहे थे कि कैसे उन पेड़ों की शक्ल में उन्हें घोड़े दिखाई दे रहे थे. पेड़ों की जड़ें घोड़ों के खुर में बदल गयी थी काई लगी हुई शाखें घोड़ों के चमकदार चमड़े में बदल गयी थी और हवा में झूलती हुई टहनियों की बजाय वे घोड़े फुफकारने और हिनहिनाने लगे.

हमेशा की तरह अंत में छापबा लाक्रिंग की पराजय हुई वह रोष के कारण गुर्राने लगा जिसकी वजह से पूरा आकाश काला पड़ गया था एंव पूरी की पूरी घाटी इस प्रकार प्रतीत होने लगी जेसे मानो कुहासे के समंदर में मंथन हो रहा हो. दोबारा छापबा लाक्रिंग ने चालाकी से घोड़ों को चुरा लिया और उन्हें लाल रंग की विशाल चट्टानों के भीतर छुपा दिया और उसके ऊपर गहरा अंधेरा बिखेर दिया ताकि किसी को कुछ भी दिखायी न पड़े.

तब तोंपा शेनरब ने ध्यानमग्न होकर स्वंय से प्रश्न किया, ‘आखिर कब तक कोई धैर्य संचित रख सकता है? इस प्रश्न का उत्तर एक दम साफ था कि यदि धैर्यवान होने के कारण किसी व्यक्ति को अज्ञानी व पापी होने की अनुमति मिल जाती है तो इस प्रकार का धैर्य किस काम का है अतः दुष्ट राक्षस के डर से भयभीत लोगों को भय से उबारने के लिए तोंपा शेनरब ने अपनी करुणामयी शक्ति से एक सफेद प्रकाश फैला दिया जिससे पूरा अंधकार पूरी तरह गायब हो गया.

यद्यपि तोंपा शेनरब के चमकीले प्रकाश ने छापबा लाक्रिंग को अंधा कर दिया था परंतु फिर भी उसने स्वयं को एक काले पर्वत में बदल दिया और तोंपा शेनरब को कुचल कर उसे रक्त, हड्डियों व बालों के लाल मिश्रण में बदल डालने के उद्देश्य से ऊपर छलांग लगा दी. तभी तोंपा शेनरब ने एक विशाल पर्वत का रूप धारण कर लिया जो कि शरीर व मस्तिष्क को आरोग्य कर देने की क्षमता रखता था और उस पर्वत को धीरे से ढक लिया जो कि असल में छापबा लाक्रिंग था.

जब छापबा लाक्रिंग को तोंपा शेनरब की उदारता एवं करुणा ने पूरी तरह से अपने भीतर ढक लिया तब छापबा लाक्रिंग ने बारिश की विशाल चट्ठानों का रूप धारण कर लिया जिसे तोंपा शेनरब ने अपने चमकीली तलवार से तितर बितर कर दिया. इस प्रकार एक-एक करके तोंपा शेनरब की करुणा केक आगे छापबा लाक्रिंग की पराजय होती रही और अंततः उसका संहार हो गया और वह बोनरी चिंबु नामक पवित्र पर्वत में बदल गया.

तब तिब्बत के लोगों दे देखा कि करुणा की शक्ति हाथियों की शक्ति से भी अधिक प्रबल होती है और सहिष्णुता व उदारता के आगे भय व अन्याय ज्यादा समय तक नहीं टिका रह सकता है. जबसे छापबा लाक्रिंग और तोपा शेनरब के बीच युद्ध हुआ है तब से बहुत सारी दुष्ट ताकतों ने करुणा को पराजित करने का प्रयास किया है परंतु आज भी तिब्बत में कई बोनपो मठ बनाए गए हैं जिससे पूरे संसार में करुणा एवं उदारता व्याप्त है.

पुनर्प्रस्तुति: पवन अधिकारी
हिंदी अनुवाद: चंद्रेशा पाण्डेय

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Sudhir Kumar

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