गेलिक भाषा में एक शब्द होता है – “usquebaugh”, जिसका अर्थ हुआ “जीवनजल”. ध्वनि के आधार पर यह शब्द कालान्तर में “usky” बन गया. जब अंग्रेज़ी भाषा ने इसे अपनाया तो यह बन गया “व्हिस्की”. चाहे इसे स्कॉच व्हिस्की कहा जाए, चाहे स्कॉच चाहे व्हिस्की, दुनिया भार में इसके मुरीदों की संख्या बढ़ती चली गई है.
स्कॉटलैण्ड ने “स्कॉच” शब्द पर अपना एकाधिकार बनाया हुआ है. किसी भी व्हिस्की को स्कॉच तब कहा जाएगा जब वह स्कॉटलैण्ड में बनी हुई हो. स्कॉच की टक्कर की व्हिस्की बनाने में जापान को भी माहिर माना जाता है, लेकिन परम्परा ऐसी है कि वहां की व्हिस्की को स्कॉच के समकक्ष नहीं माना जा सकता.
“Eight bolls of malt to Friar John Cor wherewith to make aqua vitae”
वर्ष 1494 में स्कॉटलैण्ड के कर-विभाग के दस्तावेज़ों में उक्त प्रविष्टि वहां स्कॉच निर्माण का सबसे पुराना उपलब्ध दस्तावेज़ है. जितनी मात्रा में मॉल्ट का इस प्रविष्टि में वर्णन है, उससे करीब डेढ़ हज़ार बोतलें बनाई जा सकती हैं. यानी व्हिस्की का उत्पादन बड़े पैमाने पर तभी होने लगा था.
मिथकों के अनुसार सन्त पैट्रिक ने व्हिस्की को डिस्टिल करने की प्रक्रिया को पांचवीं सदी में आयरलैण्ड में प्रचारित किया. डिस्टिलिंग के ये रहस्य डैलरियाडिक स्कॉटिशों के साथ इसी शताब्दी में उनके साथ किन्टैयर नामक एक स्थान पर 500 ईस्वी के साल स्कॉटलैण्ड पहुंचे. सन्त पैट्रिक ने डिस्टिल करने की प्रक्रिया स्पेन और इटली में सीखी थी, जहां सम्भवतः लोग इस बारे में पहले से जानते थे.
डिस्टिलेशन की प्रक्रिया सबसे पहले इत्र बनाने में इस्तेमाल की गई. बाद में इस की मदद से वाइन बनाई गईं. बाद में इस प्रक्रिया से खमीर चढ़े अनाजों की मदद से “जीवनजल” बनाने की शुरुआत उन देशों में हुई जहां अंगूर उतनी ज़्यादा मात्रा में नहीं उगते थे. इस द्रव को हर जगह “जीवनजल” ही कहा गया क्योंकि इसका उत्पादन केवल मठों में होता था और तमाम तरह की बीमारियों से निबटने को इसका केवल औषधीय उपयोग किया जाता था. यहां तक कि चेचक के इलाज में इसका उपयोग होता था. बारहवीं शताब्दी में आयरलैण्ड के मठों में बाकायदा डिस्टिलरियां स्थापित हो चुकी थीं.
स्कॉटलैण्ड का महान रेनेसां-सम्राट जेम्स चतुर्थ (1488-1513) इन द्रवों का शौकीन था. 1506 में डैन्डी नामक स्थान पर उसके आगमन के साल राजकोष की एक प्रविष्टि दिखाती है कि एक स्थानीय हज्जाम को राजा के लिए “जीवनजल” की सप्लाई के एवज में अच्छी ख़ासी रकम का भुगतान किया गया. यहां एक हज्जाम का ज़िक्र अचम्भे में नहीं डालता. 1505 में गिल्ड ऑव सर्जन बारबर्स को एडिनबर्ग में जीवनजल के उत्पादन का एकाधिकार सौंप दिया गया था. इस तथ्य से यह जाहिर होता है है कि अल्कोहल की औषधीय महत्ता को स्वीकार कर लिया गया था. दीगर है कि हज्जामों के पास उस ज़माने में बाकायदा चिकित्सकीय कौशल हुआ करता था.
वैज्ञानिक निपुणता की कमी और पुरातन उपकरणों की मदद से बनने वाला यह द्रव सम्भवतः काफ़ी ज़बरदस्त पोटैन्सी वाला होता रहा होगा और शायद यदा-कदा हानिकारक भी. 15वीं शताब्दी में मठों के छिन्न भिन्न होने की वजह से बहुत सारे भिक्षुओं के सामने रोज़ी-रोटी का संकट आन खड़ा हुआ तो उनमें से कुछ ने दारू बनाने की अपनी विशेषज्ञता को रोज़गार बना लेना ही बेहतर समझा. इस के बाद डिस्टिलिंग की जानकारी जल्दी जल्दी फैलना शुरू हुई.
इसकी बढ़ती लोकप्रियता जब स्कॉटिश संसद तक पहुंची तो सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उसने मॉल्ट और उससे बनने वाले उत्पाद पर बाकायदा टैक्स लागू कर दिया. 1707 में इंग्लैण्ड द्वारा स्कॉटिश बाग़ियों के दमन की शुरुआत के साथ ही इन टैक्सों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो गई. बहुत सारी डिस्टिलरियां भूमिगत हो गईं.
टैक्स वसूलने वाले दलों और अवैध दारू-निर्माताओं के बीच खूनी संघर्ष आम हो गए. अगले डेढ़ सौ सालों तक स्मगलिंग और अवैध शराब का बोलबाला रहा. कई बार तो ताबूतों के भीतर रख कर शराब की स्मगलिंग की जाती थी. 1820 के दशक तक हाल यह था कि बावजूद हर साल 14000 अवैध डिस्टिलरियों को नष्ट किए जाने के स्कॉटलैण्ड में पी जाने वाली आधी से ज़्यादा शराब नकली या अवैध होती थी.
कानून का ऐसा दुरुपयोग देखते हुए ड्यूक ऑव गॉर्डन ने व्हिस्की उत्पादन को वैधता देने का प्रस्ताव रखा. 1823 में एक्साइज़ एक्ट पारित हुआ जिसके मुताबिक दस पाउन्ड की रकम के एवज़ में शराब बनाने का लाइसेन्स जारी किये जाने का कानून पारित हुआ. उत्पादित की गई व्हिस्की पर प्रति गैलन एक नियत आबकारी टैक्स लगाए जाने का प्रावधान हुआ. इस से अगले दस सालों के भीतर स्मगलिंग पूरी तरह समाप्त हो गई और दर असल आज की सबसे नफ़ीस शराब बनाने वाली डिस्टिलरियां स्मगलरों द्वारा इस्तेमाल की गई जगहों पर स्थापित की गईं. इस आबकारी कानून ने स्कॉच व्हिस्की उद्योग की नींव डाली. इसके अलावा दो और बातें हुईं जिनकी वजह से स्कॉच-उद्योग को बहुत फ़ायदा पहुंचा.
अब तक हम ने मॉल्ट व्हिस्की का ही ज़िक्र किया है. लेकिन 1831 में एनीयास कोफ़ी नामक एक शराब निर्माता ने ऐसी तकनीक ईजाद की कि अनाज को डिस्टिल कर के थोड़ा हल्के स्वाद वाली व्हिस्की बना पाना सम्भव हो गया. इस प्रकार माल्ट व्हिस्की के साथ साथ ग्रेन व्हिस्की बना पाने में महारत रखने के कारण स्कॉटलैण्ड ने समूचे यूरोपीय बाज़ार पर अपना सिक्का जमा लिया.
दूसरी बात इत्तफ़ाक़न घटी. 1880 के दशक में फिलॉक्सेरा नाम के एक कीड़े ने फ़्रांस भर के अंगूर – बागानों को तहसनहस कर डाला था. जल्द ही फ़्रांस भर के घरों से वाइन और ब्रान्डी का भंडार खत्म होने लगा. स्कॉटलैण्ड के शराब-निर्माताओं ने अपना मौका ताड़ा और जब तक फ़्रांस का दारू-उद्योग सम्हलता यूरोप भर में ब्रान्डी की जगह स्कॉच व्हिस्की ने ले ली थी. तब से स्कॉच व्हिस्की बनी हुई है. प्रतिबन्धों, युद्धों, क्रान्तियों, मन्दी वगैरह के बावजूद बनी हुई है. संसार भर में आज दो सौ से ज़्यादा देशों में स्कॉच व्हिस्की की बड़े पैमाने पर खपत होती है.
फ़िलहाल एक छोटी सी दिलचस्प जानकारी. आप को पता है दुनिया में सबसे महंगी स्कॉच व्हिस्की कौन सी है? हैरान मत होइयेगा. सन 2008 में Macallan 1926 की एक बोतल 75,000 डॉलर यानी करीब तीसेक लाख रुपये की बिकी. कम्पनी द्वारा जारी एक वक्तव्य में बताया गया था कि यह बोतल सियोल की एक दुकान की सेफ़ में रखी हुई थी. पूरा भुगतान किये जाने के बाद ही बोतल ग्राहक को सौंपी गई.
वैसे अगर आप इसे लेना चाहें तो अब यह ब्रान्ड बाज़ार में समाप्त हो चुका है. हाल में हुई एक नीलामी में इसकी एक दुर्लभ बोतल मात्र 600,000 डॉलर यानी करीब चार करोड़ बत्तीस लाख रुपये में खरीदा गया. अब बाज़ार में यह उपलब्ध नहीं है लेकिन आप इसे चखना ही चाहते हैं तो न्यू जेरेसी बोरगाटा होटल कैसीनो एन्ड स्पा में 21 लाख 60 हज़ार रुपये प्रति पैग के हिसाब से जेब ढीली करने को तैयार रहिये.
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