सातों-आठों और सातूं-आठूं दोनों ही पहाड़ में मनाये जाने वाले लोकपर्व के अलग-अलग उच्चारण हैं. कुमाऊं में अधिकांश क्षेत्रों में यह सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. इस पर्व पर लोग नये कपड़े बनाने से लेकर घर की रंगाई-पुताई तक करते हैं.
बिरुड़-पंचमी, सातों के बाद आता है आठों का दिन अर्थात भाद्रपद मास की अष्टमी का दिन. इस दिन भी महिलाओं का उपवास होता है. आठों के दिन का उपवास महिलायें पति की लम्बी आयु की कामना के लिये रखती हैं.
इस दिन भी दोपहर बाद महिलायें पांच प्रकार की घास से एक मानव आकृति बनाती हैं और उसे पुरुष कपड़े इत्यादि पहनाये जाते हैं इसे महेश्वर बोला जाता है.
गांव की महिलायें इसे डलिया में रखकर घर की ओर लाते हैं. इस दौरान वह लोकगीतों को गाते हुये महेश्वर का गांव में स्वागत करती हैं.
ऐसा माना जाता है कि माता गौरी भगवान भोलेनाथ से रूठ कर अपने मायके चली आती हैं इसीलिए अगले दिन अष्टमी को भगवान भोलेनाथ माता पार्वती को मनाने उनके मायके चले आते हैं.
इस तरह महेश्वर को घर पर गमरा के साथ स्थापित किया जाता है. यहां पंडित जी मंत्रोच्चारण के साथ उसकी स्थापना करते हैं और साथ में गमरा और महेश्वर को पूजा जाता है. डोर-दूब में आज दूब को महिलायें अपने गले में बांधती हैं.
इस अवसर पर एक अनोखी रस्म भी निभाई जाती है जिसमें एक बड़े से कपड़े के बीचोबीच कुछ बिरूड़े व फल रखे जाते हैं. फिर दो लोग दोनों तरफ से उस कपड़े के कोनों को पकड़कर उस में रखी चीजों को ऊपर की तरफ उछालते हैं. कुंवारी लड़कियां व शादीशुदा महिलाएं अपना आंचल फैलाकर इनको इकट्ठा कर लेती हैं. यह बहुत ही शुभ व मंगलकारी माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि अगर कोई कुंवारी लड़की इनको इकट्ठा कर लेती हैं तो उस लड़की की शादी अगले पर्व से पहले-पहले हो जाती है. इसे फौल फटकना कहते हैं.
अगले तीन-चार दिन तक गांव में प्रत्येक शाम को खेल लगाए जाते हैं जिसमें अनेक तरह के लोकगीत जैसे झोड़े , झुमटा, चांचरी आदि गाए जाते हैं तथा महिलाएं और पुरुष गोल घेरे में एक दूसरे का हाथ पकड़कर नाचते-गाते हुए इस त्यौहार का आनंद उठाते हैं. अपने जीवन के लिए व पूरे गांव की सुख समृद्धि व खुशहाली की कामना करते हुए भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना करते हैं कि वह सदैव उनकी रक्षा करें वह उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करें.
-काफल ट्री डेस्क
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…