प्रिय अभिषेक

गुरुजी का पहला और आखिरी लाइव

“क्या आपको मेरी आवाज़ आ रही है? क्या मैं दिखाई दे रहा हूँ?” गुरुजी ने कहा.

“आवाज़ तो आय रई है, पर दिख नहीं रहे गुर्जी. अकासबानी टाइप हुई रई.” बृजेन्द्र बिरजू ने लिखा.

“मैं नहीं दिख रहा हूँ आप लोगों को, नहीं दिख रहा?”

“न!”

“अब?”

“न!”

“अब भी नहीं?”

“मुंडी दिखी. अरे आगे कि कछु किताबें हटाय लो. केवल पीछे और अगल-बगल वाली धरो. ये आगे की छंद-बन्द वाली सब नीचे धर देयो.”

गुरुजी ने आगे की तीन-चार किताबें हटाईं, “अब?”

“दिखन तो लगे, पर ठुड्डी नहीं दिख रई. जे का पतरी-पतरी धरी हैंय, जे कनुप्रिया, कुकुरमुत्ता? जे बॉटनी की किताब काहे धरे हो, हटाय दो!”

“अब?”

“हाँ, अब ठीक हय. पूरा चेहरा दिखन लगा. अपनी लिखी, आगे छाती पै धरी रहन दो. जे पूजा-पाठ की किताब काहे धरे हो, फिर कहोगे वामपंथी नाराज हैं? हटाओ जे, का लिखा है – कुरु कुरु स्वाहा.”

ललाट पर लाल तिलक, कंधे पर धारीदार पट्टी वाला उत्तरीय, सद्य स्नान करके आये व्यक्ति से चिपके हुए श्वेत केश, जो करीने से पीछे की ओर काढ़े गए थे, और किताबों के बीच से नज़र आता श्वेत कुर्ता. गुरुजी लाइव में उपस्थित थे.

“तो सब लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँ. कमेंट में उपस्थित हैं श्रीमान लिख दें.” गुरुजी ने कहा तो सभी ने कमेंट में जी-सर, उपस्थित हैं श्रीमान लिख दिया. “तो लाइव शुरू किया जाय?”

“रुकिये गुरु जी!” शैलेन्द्र अकेला ने लिखा.

“क्यों?” गुरुजी ने कहा.

“ग्यारह ब्राह्मण पूरे नहीं हैं.”

“ओह, तो इंतज़ार करें? …… बारह को तो मैं ही पीएचडी करा रहा हूँ. कौन नहीं आया?” गुरुजी गरजे.

“अमन नहीं आया गुरुजी.”

“मैं हूँ!” रूप की रानी नामक प्रोफाइल से लिखा आया. जिस पर सिने तारिका सनी लियोनी की तस्वीर थी.

“फिर अब क्या करें? इंतजार करें?”

“गुर्जी!” बिरजू ने लिखा, “आपत्ति काले मरजादा नाचती. मरजादा को नाचन दो. आप तो सुरू करो.”

“रुको! सिरफ़ भूरा बाल से क्या मतलब? दलीत, सोसीत, पिछरा का पूरा उपस्थित होना चाहिये.” हम लरेंगे साथी नामक प्रोफ़ाइल से लिखा आया.

“तो तुम जाय के सबके घरै बुलउआ दे आओ. इत्ती चिंता होय रई है तो.” बिरजू ने लिखा.

“अरे ये हम लरेंगे साथी कौन है? अपना परिचय दीजिये.”

“अरे इत्ते महान एकई हैं गुर्जी.” बिरजू ने लिखा.

“वागीश उर्फ़ वामीश है गुरु जी.” रूप की रानी ने लिखा.

“तो सभी रिसर्च स्कॉलर आ गए हैं तो शुरू किया जाय. आज हम बात करेंगे भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियों की.”

“गुर्जी, केसवदास से सुरु करौ. मजा आय जात केसवदास में.” बिरजू ने लिखा.

“भक्ति काल की बात हो रही है. अज्ञेय से शुरु होता है भक्ति काल.” रूप की रानी ने लिखा.

“अरे आप लोग भी क्या लिख रहे हैं. भक्ति काल भारतेंदु से शुरू होता है.” शैलेन्द्र अकेला ने लिखा.

“अरे हिंदी में भक्ती काल हमेसा से चल रहा है. न कभी सुरु हुआ, और न ख़तम.” बिरजू ने विशेषज्ञ कमेंट लिखा.

“गुरुजी छोटा बहन का यमे फाइनल है. दस-बारह सबाल बता दीजिये. आपका आसिरवाद से प्रवियस हो गया था.” हम लरेंगे साथी ने लिखा.

“लेओ, सुरु हुई गया भक्ती काल.” बिरजू ने लिखा.

“अरे ये सब वार्तालाप यहाँ करने का अवसर नहीं है.” गुरुजी ने कहा.

” गुरूजी ये तो अनयाय है.” रूप की रानी ने लिखा.

“ये कौन है?” गुरुजी ने अपने चश्मे को चारों दिशाओं में हिला कर पढ़ने का प्रयास किया. “रूप की रानी, अन्याय में न आधा बनता है, सुधारिये!”

“आप ने मेरे चचेरे भाई के लिये तो मना कर दिया था. और इस वागीश की बहन के लिये प्रशन पत्र खोल दिया.” रूप की रानी ने आरोप लगाया.

“तो बिन्ने गुर्जी के कहबे पर डीएसडब्लू (छात्र कल्याण डीन) की ठुकाई करी हती. तुमने करो कछु, जो सवाल बताय दें तुम्हें? और प्रस्न में स आधो बनेगो. सुधार लेओ.” बिरजू ने लिखा.

“अरे ये कौन है, क्या लिख रहे हैं आप लोग?” गुरुजी ने इस बार चश्मे को दस दिशाओं में एडजस्ट कर के नाम पढ़ने का प्रयास किया.

“हमने भी एक बार गुरुजी के कहने पर हॉस्टल में हड़ताल करवाई थी, ठीक है न! ये बात अलग है कि गुरुजी भूल गए.” रूप की रानी ने लिखा.

“बिरजू, आरोप लगाइएगा हम पर? एकदम्मे झूट्टा बात है. गुरुजी का छवि खराब कर रहा है.” हम लरेंगे साथी ने लिखा. ” उल्टा तू गया रहा रजिस्टार का कॉलर पकड़ने, गुरुजी के कहने पर.”

“अरे ये कौन है- हम लरेंगे साथी? एक तो लरेंगे नहीं, लड़ेंगे होगा.  और ये सब क्या अनाप शनाप लिख रहे हैं आप लोग?” गुरुजी ने बेचैन होकर कहा.

“हम कर्ऱए गुर्जी की छबि खराब? और तुम गए हते सक्सेना मास्टर के कहबे पर गुर्जी की सिकायत करबे मंत्री से सो?” बिरजू ने लिखा. “गुर्जी भूल गए? ज्जे लरेंगे साथी बागीश हैं.” आगे पुनः लिखा.

“गुरुजी, लाइव का महूर्त निकला जा रहा है.” शैलेन्द्र अकेला ने याद दिलाया.

“और काए रे अमन, रूप की रानी, तूने होस्टल में हड़ताल करवाई तो तोए गुर्जी ने सेमिनार मे नायँ भेजो? और तेरे फूफा को कैंटीन को ठेका मिल गओ, सो?”

“सब जानते हैं गुरुजी का घर का सब्जी कौन लाता है. और बिरजू हम को पता है तेरा पेपर कौन लिखा था जो जनरल में छपा रहा. खुदै गुरुजी अपने हाथ से लिखे थे. हम पर आरोप लगाता है कि हम सक्सेना मास्टर जी के कहने पर गुरुजी का सिकायत व्हीसी से किये थे.” हम लरेंगे साथी ने लिखा.

“अरे ये सब्जी के चक्कर में न, किसी और चक्कर में जाता है गुरुजी के घर. और कंप्यूटर की खरीद तेरे चाचा के दुकान से न करवाई गुरुजी ने, भूल गया तू बिरजू.” रूप की रानी ने बिरजू के लिये लिखा.

“हमाए चच्चू की दुकान से भई खरीद तौ करारे-करारे नोट दए गुर्जी को कमीसन के. तेरी तरह झूठा नहीं हैं.” बिरजू ने प्रत्युत्तर में लिखा.

“ये सब क्या बकवास है? कौन, कौन है ये रूप की रानी. कौन है, कौन है! मेरे लाइव से बाहर निकल जाइये. बिरजू आप भी निकल जाइये.”

“गुरुजी जल्दी करिये, राहुकाल शुरू होने वाला है.” शैलेन्द्र अकेला ने लिखा.

“अरे राहुकाल तो तबही सुरु हुई गया था जब ये लाइव सुरु हुआ था,” बिरजू ने लिखा. “हमें निकार रए गुर्जी, जा बागीश को नहीं भजाओगे लाइव सैं.”

“अरे पक्का चेला है भई. वीसी बनवाने के लिये बहुत मेहनत कर रहा है. वो तो गुरुजी ने अपने नॉवल में आर्य आक्रमण की थ्योरी सपोर्ट न की होती तो अब तक बन गए होते.” रूप की रानी ने लिखा.

“अब अगले उपन्यास में गुरुजी साबित कद्दें कि आर्य बाहर से न आये, भीतर से आए, सोई बीसी की कुर्सी पक्की.” बिरजू ने लिखा.

“यदि इस बीच सरकार बदल गई तो?” शैलेन्द्र अकेला ने लिखा.

“चुssप!!” गुरुजी चीख कर खड़े हो गए. उनका चेहरा क्रोध से रक्त तप्त हो गया था. हृदय उत्तरीय के बाहर धड़क रहा था और हाथ काँप रहे थे. “मेरी भूल थी जो तुम नालायकों के लिये लाइव किया. नीच, निर्लज्ज और निकृष्ट हो तुम सब. जा रहा हूँ मैं.” यह कह कर गुरुजी उठ कर चले गए. केवल किताबो का ढेर दिखता रह गया.

“अरे लोग आउट तो करिये गुरुजी,” वागीश ने लिखा.

“तुम करि आयो उनके घरै जायके,” बिरजू ने लिखा.

“देर से आने के लिये क्षमा चाहती हूँ गुरुजी,” रौनक कुमारी नामक प्रोफाइल से लिखा आया.

अचानक गुरुजी लौट आये, “कोई बात नहीं रौनक. हाँ, तो कहाँ थे हम?” गुरुजी ने पूछा.

“भक्ती काल!” बिरजू ने लिखा.

प्रिय अभिषेक

मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.

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