मेरे द्वारा लिखे गये एक लेख के लिये सरकार मुझे गिरफ़्तार कर लेती है. मेरी गिरफ़्तारी से पूरे देश में दंगा भड़क जाता है. युवा सड़क पर उतर आते हैं. मुझे जंजीरों से बांध कर पैदल ले जाया जा रहा है. लाखों लोग सड़क के दोनों ओर इकट्ठा हैं. वे भी मेरे साथ चल देते हैं.
न्यायालय में मेरा क्रांतिकारी भाषण होता है. जिसका सीधा प्रसारण दुनिया के सभी देशों में दिखाया जाता है. जब मुझे फाँसी होती है, पूरा विश्व रो रहा है.
एक विश्वविद्यालय में मैं बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित हूँ. सभागार खचाखच भरा है. पूरे शहर में हलचल है कि आज प्रिय आ रहे हैं. सभी सभागार में मेरा भाषण सुनने आते है. जिसमें बच्चे, बूढ़े, बुजुर्ग सभी हैं. वे मुझसे साहित्य, दर्शन, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीति के बारे में प्रश्न पूछ रहे हैं. और में उनका तसल्लीबख़्श जवाब देता हूँ. सब मेरी विद्वता से अभिभूत हैं.
मेरी किताबों की बीस करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं. समाचार वाचक कहता है कि मतलब हर पाँचवे व्यक्ति ने प्रिय की पुस्तक पढ़ी है.
सभी लेखक संघों ने आम सहमति से परस्पर विलय कर, मुझको अपना अध्यक्ष चुन लिया है. वे सहमत हैं कि ये लेखक जो विचारधारा चलायेगा, वह सर्वश्रेष्ठ होगी. इधर लेखक भी पूर्वप्रचलित सभी विचारों का समन्वय कर अपनी नवीन ‘क्रिटिका’ लिख रहा है- क्रिटिका ऑफ आईडियोलॉजी.
इस क़िताब में दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीतिविज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास, नृविज्ञान, रसायनशास्त्र, ट्रिग्नोमेट्री सभी का समन्वय है. ये किताब, विश्व की सर्वश्रेष्ठ क़िताब बन गई है. इसमें शासन करने की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली वर्णित है. सम्पूर्ण विश्व में लेखक की पुस्तक के आधार पर शासन व्यवस्था स्थापित करने के लिये आन्दोलन हो रहे हैं. अनेक देशों में यह लागू भी हो गई है. वहाँ से ग़रीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा समाप्त हो चुकी है.
एक कम उम्र की लड़की मेरे पास आती है और कहती है कि आपके लेखन ने मुझ पर जादू सा कर दिया है. मुझे आपसे प्यार हो गया है. मैं उससे कहता हूँ कि अभी आप बहुत छोटी हैं. अपना ध्यान पढ़ाई पर लगाइए. वह निराश हो जाती है. ऐसा अनेक बार होता है.
कुछ महिलाएं भी प्रणय निवेदन करती हैं. मैं उनसे कहता हूँ कि मैं शादीशुदा हूँ, क्षमा करिये. वे कहती हैं – ठीक है, हम आपसे एकतरफा प्यार करते रहेंगे. एकतरफा प्यार तो कोई ख़ता नहीं! और वे प्रिय की याद में जीवन बिता देती हैं.
मेरे द्वारा लिखे गये एक लेख से लोकसभा में हँगामा हो जाता है. प्रधानमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ता है. मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो जाती है.
चुनाव में मैं जनता से अपील करता हूँ. मेरी अपील पर जनता एक राजनैतिक दल को हरा देती है. लाखों लोग मेरा भाषण सुनने आते हैं.
सरकार राज्यसभा हेतु मेरा नाम प्रस्तावित करती है. अब मेरे ऊपर अत्यधिक दबाव है कि मैं ये प्रस्ताव स्वीकार करूँ, अथवा न करुँ. मेरी मनःस्थिति ठीक वैसी ही है जैसी तब थी जब मुझे पहली बार पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई थी. मेरे समक्ष नैतिकता का संकट है. फिर साथियों के काफ़ी मान-मनौव्वल के बाद मैं राज्य सभा की सदस्यता स्वीकार कर लेता हूँ. मैंने पुरस्कार भी स्वीकार कर लिया था.
मुझे मानव संसाधन मंत्री बना दिया गया है. राजनैतिक चिंतकों का कहना है कि देश को सर्वश्रेष्ठ एचआरडी मिनिस्टर मिला है. मैं शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार करता हूँ.
साहित्य के नोबेल के लिये मेरा नाम चल रहा है. हिंदी का पहला लेखक जिसे नोबेल पुरस्कार मिलेगा. पुरस्कार किसी जापानी भाषा के लेखक को मिल जाता है. पूरे विश्व में इसकी आलोचना होती है. अनेक साहित्यकार नोबल समिति को विरोध में चिट्ठी लिखते हैं.
फिर मुझे साहित्य का नोबल दिये जाने की घोषणा होती है. मैं नोबल पुरस्कार वापस कर देता हूँ.
अगले वर्ष पुनः नोबल समिति ,साहित्य के नोबल हेतु मेरा चयन कर लेती है. इस बार समिति के सभी सदस्य मुझे मनाने आते हैं कि यदि आपने यह पुरस्कार नहीं लिया तो इस पुरस्कार का महत्व ही ख़त्म हो जायेगा. मेरे समक्ष नैतिकता का संकट है. वे पिछली गलती के लिये क्षमा माँगते हैं. मैं पुरस्कार ले लेता हूँ. मैंने राज्यसभा भी ले ली थी.
मेरे बारे में अनेक किंवदंतियाँ चलने लगी हैं कि पता है जब उन्हें लिखना होता था, तो वे हिमालय पर चले जाते थे. कि वे सारा लेखन जंगलों में बैठ कर करते थे. कि उनकी प्रेमिका जब उन्हें छोड़ गई, तब उन्होंने लिखना शुरू किया. कि वो पूरे समय शराब के नशे में डूबे रहते थे. कि उन्हें मोंटे क्रिस्टो सिगार बहुत पसंद था. कि लोग बताते हैं उन्होंने आत्महत्या की थी. कि एक लेख लिखने में उन्होंने दस साल लगाए थे. कि एक लेख उन्होंने दस मिनट में लिख दिया था. कि जब वे मरे, समय वो अपनी टेबल-कुर्सी पर बैठे कुछ लिख रहे थे.
मेरी कलम आठ मिलियन डॉलर में नीलाम हुई है. मोनाको के किसी रईस ने उसे अपने निजी संग्रह के लिये खरीदा है.
जहाँ बैठ कर सारे लेख लिखे गए, उस घर को सरकार ने संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया है. अनेक युवा लेखक वहाँ प्रेरणा लेने आते हैं.
लोग मेरे साथ हुए अनुभवों को बाँट रहे हैं. वे बताते हैं कि प्रिय यहीं, बगल में रहते थे. चीकू के पापा से उनकी बहुत दोस्ती थी. वे निम्मी की शादी में आये थे. वे कढ़ी- चावल के दीवाने थे. पप्पू के बताशे उन्हें बहुत पसंद थे. हमारा सोनू तो उनकी गोदी में खूब खेला है. पिछली बार शहर आये थे तो पहले ही फोन आ गया था कि भाभी जी मैं आ रहा हूँ, खाना आप ही के यहाँ खाऊंगा. बहुत ‘सिम्पल’ थे. कोई घमंड नहीं. लगता ही नहीं था इतने बड़े आदमी हैं. फ़िराक़ के बाद ,केवल प्रिय ही है , जिसको देखने वालों पर भी नस्लें फ़ख़्र कर रही हैं .
सरकार ने प्रिय विश्विद्यालय की स्थापना की है.
अख़बार में ख़बर छपी है कि जलूस प्रिय विश्विद्यालय के प्रिय सभागार से प्रारम्भ होगा. प्रिय मार्ग से होता हुआ, प्रिय चौराहे पर पहुँचेगा. वहाँ से प्रिय मार्किट की तरफ़ मुड़ेगा. फिर प्रिय की मूर्ति से होता हुआ प्रिय स्टेडियम पर समाप्त होगा.
सरकार ने घोषणा की है कि इस वर्ष से साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये प्रिय अभिषेक साहित्य रत्न पुरस्कार प्रारम्भ किया जायेगा.
एक बच्चा अपनी पुस्तक में पढ़ रहा है कि प्रिय को फ़लाने वर्ष में पदम् विभूषण, फ़लाने वर्ष में भारत रत्न मिला था. प्रिय फ़लाने वर्ष में भारत के फ़लानेवें राष्ट्रपति बने थे.
मैं अमर हो चुका हूँ, अमर.
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मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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