Featured

तूतू – मैंमैं

‘आखिर हुआ क्या?’

‘होना क्या था? वो हमें बाज़ार में मिले. हमे बहुत जाने-पहचाने से लगे.’

‘फिर?’

‘हम भी उन्हें बहुत जाने पहचाने से लगे. वो हमे पहचानने की कोशिश करने लगे और हम उन्हें. बहुत देर तक हम दोनों एक दुसरे को पहचानने की कोशिश करते रहे.’

‘फिर?’

‘फिर वो बोले कि घूर क्या रहा है बे!! तो हमने कहा कि आप भी तो घूर रहे हो.’

‘फिर?’

‘फिर वो बोले कि तू घूर रहा है, तब से देख रहा हूँ! उनके तू बोलने पर हमने भी साधिकार तू शब्द का प्रयोग शुरू कर दिया.’

‘फिर?’

‘फिर हमारे बीच तूतू-मैंमैं शुरू हो गई. इस तूतू-मैंमैं में, मैंमैं तो कहीं था ही नहीं, बस ‘तू-तू’ ही था. और थोड़ा ‘थू-थू’ था. मैं तो कहता हूँ इसे तूतू-भौंभौं कहना चाहिए. क्योंकि इसमें भौं-भौं पर्याप्त रहता है. आप थूथू-भौंभौं भी कह सकते हो.’

‘फिर?’

‘फिर उन्होंने मेरा गिरेबान पकड़ लिया. इतनी पास आकर मुझे फिर लगा कि मैंने उन्हें कहीं देखा है. उन्हें भी फिर लगा कि उन्होंने मुझे कहीं देखा है. पर उनका मन नहीं माना. उन्होंने मेरा आलोचनात्मक मूल्यांकन कर दिया. जिससे मेरी शर्ट फट गई.’

‘फिर?’

‘फिर मैंने भी उनकी अच्छे से समीक्षा कर दी. उनके दांत तोड़ डाले. इतनी देर में पुलिस आ गई और हमें थाने ले गई.’

‘फिर?’

‘फिर पुलिस ने हमारे वस्त्र उतरवाए और तबियत से हम दोनों की विवेचना कर डाली. तभी वकील साहब आगए. वकील साहब ने घटना का संक्षेपण करके पुलिस वालों को कुछ अंक दिए जिसके बदले पुलिस ने हमे उत्तीर्ण कर दिया.’

‘फिर?’

‘फिर घर आकर फेसबुक पर हमने उन्हें बताया कि बाजार में हमे कोई मिल गया था जिसने हमारे साथ अभद्रता कर दी. उन्होंने बताया कि आश्चर्य! उन्हें भी कोई मिल गया था जिसने उनके साथ भी कुछ इसी तरह की अभद्रता की. हम दोनों ने समाज में बढ़ रही इस असहिष्णुता की घोर आलोचना की. हम दोनों का मत था कि घर से बाहर निकलना बहुत असुरक्षित हो गया है. उसके बाद हम दोनों भावुक भ्रातृत्व में डूब गए जब उन्होंने बताया कि वो भी हमारी ही तरह चोट पर लाल दवाई लगा रहे हैं. समाज में बढ़ती हिंसा से विचलित हम दोनों ऑफ लाइन हुए और फिर अवसाद में लॉग ऑउट कर सो गए.’…

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

प्रिय अभिषेक

मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.

इन्हें भी पढ़िए :

व्यंग्य का जन्म किस प्रकार होता है?

सरकारी विभागों में पावती, सिर्फ पावती नहीं है

सुंदर स्त्री जब शेर सुनाती है तो शेर आयत बन जाते हैं

सड़क को सड़क नहीं, अपना घर समझो

भाई साहब! मैं बाल कवि नहीं हूँ!

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

2 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

2 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

2 weeks ago

यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले

देवेन्द्र मेवाड़ी साहित्य की दुनिया में मेरा पहला प्यार था. दुर्भाग्य से हममें से कोई…

2 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

3 weeks ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

3 weeks ago