रपट मीडिया विजिल से साभार
एशिया का नोबल पुरस्कार कहे जाने वाले मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉ. संदीप पांडे से लखनऊ में पुलिस ने बदसूलूकी कर दी. संदीप पांडे लखनऊ में कुछ मामलों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे. इसी दौरान मौके पर पहुंची पुलिस ने उन्हें हटने को कहा. जब उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने की बात कही तो पुलिस ने उन्हें खींचना शुरू कर दिया. सामाजिक कार्यकर्ता ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके साथ खींचातानी की और कहा कि वह प्रदर्शन नहीं कर सकते जबकि वह लोकतांत्रिक तरीके से कुछ मामलों मे कार्रवाई की मांग कर रहे थे. घटना का विडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें पुलिस उनसे बदसलूकी करते हुए दिख रही है.
इन मामलों को लेकर कर रहे थे प्रदर्शन
बताया जा रहा है कि मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय लखनऊ शहर के एक नामी स्कूल के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. संदीप पांडेय के अनुसार, लखनऊ के एक बड़े स्कूल के संचालक ने पिछले कई सालों में अभिभावकों से ब्याज पर रुपए लिए. यह लेन-देन स्कूल की प्रिंसिपल के माध्यम से होता था. इसकी बकायदा लिखा पढ़ी होती थी, लेकिन स्कूल संचालक ने नोटबंदी के बाद प्रिंसिपल को स्कूल को निकाल दिया और कहा कि स्कूल का प्रिंसिपल और आम लोगों के रुपयों से कोई मतलब नहीं है और लोगों के 25 से 40 करोड़ रुपए देने से इंकार कर दिया.
उन्होंने बताया कि एक-एक शख्स ने 5 से 25 लाख रुपए दिए थे. 25 सालों से चल रहे लेन-देन में अपनी ज़िंदगी भर की कमाई भरोसे में आकर दी थी. लोग बर्बाद हो गए हैं और कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है. उन्होंने बताया कि स्कूल संचालक को प्रदेश सरकार यश भारती अवार्ड दे चुकी है और लखनऊ में ही सबसे बड़ी स्कूल चेन के लिए गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में नाम दर्ज हो चुका है. इतनी प्रतिष्ठा के बाद भी आम लोगों ने करोड़ों रुपए हड़प उन्हें कंगाल कर दिया गया.
सरकारी जगहों पर कब्जे भी किए
इसके साथ ही स्कूल संचालक ने कई जगहों पर सरकारी कब्जे कर स्कूल बना दिए. प्रशासन द्वारा पिछले दो दशकों से कई स्कूलों के भवनों को गिराने के आदेश दिए गए. अनियमितताओं के चलते कई विभागों द्वारा कार्रवाई के लिए कागजी खानापूर्ति हुई, लेकिन इसके बाद भी कुछ नहीं हुआ. इसके बाद भी प्रदेश सरकार तक ने स्कूल संचालक को पुरस्कार दे दिए. ऐसा कैसे हुआ इसकी भी जांच होनी चाहिए. शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत स्कूल में गरीब बच्चों को दाखिला नहीं दिया जाता है.
मौन प्रदर्शन के बीच पुलिस ने की बदसूलूकी
संदीप पांडेय ने बताया कि स्कूल संचालक के खिलाफ करीब एक दर्जन मुद्दे लेकर वह हजरतगंज से स्कूल के दफ्तर के बाहर मौन प्रदर्शन कर रहे थे. इसी दौरान यहां हजरत गंज थाना पुलिस पहुंची और उन्हें हटने को कहा. उन्होंने जब शांतिपूर्ण प्रदर्शन की बात कही तो उनके साथ बलपूर्वक खींचातानी की. उन्हें जबरन हटाने का प्रयास किया. कहा कि इसे गिरफ्तार कर ले चलो. ऐसे नहीं मानेगा. खींचातानी के बाद उन्हें छोड़ दिया. संदीप पांडेय ने बताया कि वह पुलिसिया दबंगई और स्कूल संचालक के प्रभाव के आगे नहीं झुकेंगे और आम लोगों के लिए लड़ते रहेंगे.
कौन हैं संदीप पांडेय
22 जुलाई, 1965 को यूपी के बलिया में जन्मे संदीप पांडेय सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वह देश के सबसे कम उम्र के ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’ विजेता हैं. संदीप पांडेय देश के उपेक्षित तथा हाशिए पर जीवनयापन कर रहे लोगों के लिए लड़ाई लड़ते रहे हैं. उन्होंने इसके लिए देशव्यापी जागरूकता अभियान चलाया. देश की दशा में सुधार लाने वाले इस कार्यक्रम के लिए उन्हें वर्ष 2002 का ‘मैग्सेसे पुरस्कार’ अवार्ड दिया गया. संदीप पांडे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं. उन्होंने कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले से मेकैनिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी ली है. उन्होंने विदेश में रहते हुए ही गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए कदम उठाने की ठानी और देश में आकर उनके लिए लड़ाई शुरू की.
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