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साझा कलम : 10 आशीष ठाकुर

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एक विद्रोही शेर – भीखू

उस दिन पुरे शेर समाज में अफरा-तफरी का माहौल था, शेर समाज तो क्या, जंगल के सभी जानवरों में हल्ला-गुल्ला था. कई सारे जानवर गुस्सा थे, तो कई अचंभित. भीखू शेर ने आत्महत्या करने की घोषणा क्या की, सब के सब जानवर घबरा उठे. आनन-फानन में सारे जानवरों की सभा बुलाई गयी, बीच में शेर पंचायत बैठी, आस-पास भालू, हाथी, चीते,लोमड़ी बैठे और पेड़ों पर गिलहरी,गिरगिट और पंछियों ने डेरा जमाया. बीच में भीखू शेर अपना सीना तान के बैठा था.

यह देख सभापति रमेश शेर ने दहाड़ कर कहा- ‘तुम्हे शर्म नहीं आती भीखू, एक तो आत्महत्या करने की बात करते हो और ऐसे सर उठा कर, छाती फुलाए बैठे हो’

यह सुन भीखू शेर बोला- ‘इसमें शर्म की क्या बात है? मेरी मर्ज़ी, जियूं या मरूं, ज़िंदगी मेरी है’

अब प्रवीण शेर , जो अपने को ज्यादा अकलमंद समझता था बोला-‘ हां, लेकिन तुम्हारी शेर समाज और पूरे जानवरों के प्रति भी कुछ जिम्मेदारी बनाती है, तुम्हे उनके मान-सम्मान के ख्याल रखना चाहिए’

भीखू शेर ने कहा- ‘ तो मैंने कौन सा किसी को बेईज्ज़त किया”

रमेशचंद्र शेर ने गुस्से में कहा- ‘और नहीं तो क्या, जानवरों की इज्ज़त में चार चाँद लगाये हैं, अरे, आत्महत्या तो इंसान करते हैं, जानवर नहीं. आज तक कभी किसी जानवर ने आत्महत्या की बात नहीं की’

भीखू शेर ने कहा- ‘ तो यह कौन सी बात हुयी, जो आज तक किसी ने नहीं किया, वो मैं भी ना करूँ, मैं एक क्रिएटीव शेर हूँ, और क्रिएटिविटी का मतलब है कुछ नया करना, जो किसी ने ना किया हो वो करना’.

भीखू शेर की दलील सुन कर, सुनील हाथी, छम्मी चिड़िया, पम्मी गिलहरी, पीलू चीता और इकबाल भालू अचंभे में पड़ गए, उन्होंने सोचा बात तो सच बोल रहा है यह.

बाकि के शेरों को भीखू की बात का जवाब नहीं सूझ रहा था, तभी जिग्नेश शेर, जो की हमेशा दूसरों का शिकार पहले खाता था और अपना बाद में, बोला- भाई आत्महत्या तो इंसान करते हैं, उनकी ज़िंदगी में हज़ार परेशानियां होती है, नौकरी का टेंशन, छोकरी का टेंशन, बिज़नस में घाटा, होम लोन… हम जानवरों को क्या टेंशन, खाओ-पियो मस्त रहो’.

भीखू शेर बोला- ‘ ये किस किताब में लिखा है कि टेंशन में ही आत्महत्या करनी चाहिए, आज तक जी रहा था तो किसी ने एक शब्द नहीं पुछा, भीखू कैसा है, शिकार मिल रहा है या नहीं, आज मरने की बात की, तो सब इक्कठे हो गए’

अब सब चुप, भीखू शेर की दलीलों में दम था. तभी बुजुर्ग गंगाराम शेर खाँसते-खाँसते उठा और बोला- ‘ इसीलिए कहता था कि आजकल के लौंडों को मोडर्न ज़माने से दूर रखो, पर मेरी तो कोई सुनता ही नहीं, मेरे ऊपर तालिबानी सोच का ठप्पा लगा दिया, अब भुगतो फल… क्या कहेगी दुनिया कि एक शेर ने आत्महत्या कर ली, क्या इज्ज़त रह जायेगी हमारी… अब भुगतो फल… मरो’.

यह कह गंगाराम वहाँ से चलता बना.

अब सभापति रमेशचंद्र शेर दहाड़ा –‘ भीखू तुम आत्महत्या नहीं करोगे, ये मेरा आर्डर है’.

भीखू बोला- ‘ मैं क्रिएटीव शेर हूँ, जो मेरे मन में आएगा, वो करूँगा’.

रमेशचंद्र बोला-‘ ऐसे कैसे करेगा, पकड़ लो इस हरामी को, और डाल दो गुफा के अंदर, देखते हैं कैसे करता है आत्महत्या’.

यह देख भीखू शेर वहाँ से भागा. और भागते-भागते चिल्लाया-‘ अरे समाज के ठेकेदारों, दुनिया का जीना हराम कर रखा है तुमने, ए.सी. गुफा में सोकर दुनिया को धूप बेचते हो तुम लोग, ब्लडी बिज़नस मैन’.

बाकि शेर उसके पीछे दौड़े. रमेशचंद्र गुस्से में चिल्लाया- ‘ तू रुक तो सही, बताते हैं तुझे, हम क्या हैं?’

भागता भीखू ने फिर चिल्ला कर – ‘ भाड़ में जाओ तुम, और तुम्हारा समाज, जिसमे ना जीने का सुकून है, ना मरने की आज़ादी’.

लेकिन बाकि के शेरों ने नाइके के एयर शूज़ पहन रखे थे, बेचारा भीखू नंगे पैर कब तक भागता, आखिर उसे शेरों ने घेर ही लिया, और पकडने के चक्कर में जमकर हाथापाई हुई और बेचारा भीखू जान गवां बैठा. उसकी लाश देख सारे शेर खुशी से पागल हो गए, आखिर एक शेर को आत्महत्या करने से बचा लिया, शेर समाज और सभी जानवरों की नाक कटने से बच गयी.

उसकी लाश पर रमेशचंद्र ने थूकते हुए कहा- ‘हुँह… बड़ा आया था क्रिएटीव बनने’.

जाने क्या हुआ… बरसों बाद वो जंगल पूरा सूख गया, हरियाली का नामो-निशान ना रहा, पर भीखू शेर की कब्र पर साल भर फूल खिलते हैं.

आशीष ठाकुर मूलतः मध्यप्रदेश के निवासी हैं. फिलहाल पिछले 15 वर्षों से मुंबई में रहते हैं. पहले एडवरटाइजिंग, फिर टेलीविज़न और अब फ्रीलांसिंग करते हुए मीडिया से जुड़े हुए हैं. फिल्मों और साहित्य से गहरा जुड़ाव रखते हैं और फिलहाल इसी क्षेत्र में कुछ बेहतर करने के लिए प्रयासरत है.

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Girish Lohani

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