क्रिकेट के खेल में फील्डिंग का भी बहुत महत्त्व है. जोंटी रोड्स जैसे खिलाड़ी फील्डिंग की इस महत्ता को नयी ऊँचाइयों तक ले गए हैं. अक्सर देखा जाता है कि किसी फील्डर द्वारा बेहतरीन फील्डिंग से बचाए गए रन ही हार-जीत को तय कर देते हैं. कई दफा ख़राब फील्डिंग से लुटाये गए रन और बल्लेबाजों को दिए गए अभयदान मैच में हार-जीत तय को तय करने में बल्लेबाजों और गेंदबाजों से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका तय कर देते हैं. बल्लेबाजी की लय और गति तय करते समय रणनीतिकार फील्डिंग के नियमों को ध्यान में रखकर ही बल्लेबाजी की आक्रामकता तय करते हैं. श्रीलंकाई कप्तान अर्जुन रणतुँगा ने फ़ील्डिंग के इन्हीं नियमों को ध्यान में रखते हुए एक दिवसीय क्रिकेट की पारंपरिक बल्लेबाजी के स्वरूप को बदलकर शुरूआती ओवरों में ही गेंदबाजों को कूटकर रन बटोरने का नया चलन शुरू किया. इस नयी रणनीति ने न सिर्फ श्रीलंका को विश्व कप में जीत दिलाई बल्कि विश्व क्रिकेट के बल्लेबाजी के स्वरूप को ही बदलकर रख दिया.
दिलचस्प बात है कि क्रिकेट के शुरूआती दौर में केवल बॉलिंग और बैटिंग के लिए नियम बनाये गये थे. उस समय फील्डिंग के लिए कोई नियम नहीं बनाया गया था, लेकिन क्रिकेट इतिहास की एक अजीबोगरीब घटना ने क्रिकेट के प्रशासकों को फील्डिंग के लिए भी नियम बनाने पर मजबूर कर दिया था. हुआ यह कि 28 नवम्बर 1979 के दिन इंग्लैंड और वेस्ट इंडीज के बीच सिडनी के मैदान पर बेंसन एंड हेजेज क्रिकेट श्रृंखला का मैच खेला जा रहा था. इंग्लैंड ने पहले बैटिंग करते हुए 211 रन बनाये मगर बारिश से मैच बाधित हो जाने के कारण वेस्टइंडीज को 47 ओवर में 199 रनों का पीछा करने का लक्ष्य दिया गया. आखिरी ओवर में वेस्टइंडीज को जीतने के लिए 10 रनों की जरूरत थी. इंग्लैंड की ओर से गेंदबाजी इयान बॉथम को अंतिम ओवर फेंकने की जिम्मेदारी दी गयी. वेस्टइंडीज ने पहली 5 गेंदों पर 7 रन बना लिए. अब वेस्टइंडीज को आखिरी एक गेंद पर जीत के लिए 3 रनों की जरूरत थी. इंग्लैंड श्रृंखला का पहला मैच हार चुका था इसलिए इस मैच में हर हाल में जीत दर्ज करने के लिए इंग्लैंड के कप्तान ने एक ऐसी फील्डिंग लगायी जिसने क्रिकेट के भविष्य को हमेशा के लिए बदल दिया.
इंग्लैंड के कप्तान ने बाउंड्री रोकने के लिए टीम के सभी 10 खिलाडियों को बाउंड्री पर लगा दिया, इनमें विकेट कीपर भी शामिल था. अब दौड़कर 3 रन लेकर या फिर छक्का जड़कर ही मैच जीता जा सकता था. फील्डिंग के लिए यह रणनीति कारगर रही और वेस्टइंडीज केवल 2 रन से यह मैच हार गया. क्योंकि उस समय फील्डिंग की सजावट के लिए किसी तरह के नियम नहीं थे तो इंग्लेंड के कप्तान द्वारा ऐसा करना गलत नहीं माना जा सकता था.
इस दिलचस्प घटना ने क्रिकेट प्राधिकारियों को बल्लेबाजी और गेंदबाजी की तरह ही फील्डिंग के लिए भी नियम बनाने पर बाध्य कर दिया. इस घटना के बाद 1980 के दशक में फील्डिंग के नियम बनने शुरू हुए. 1980 में ऑस्ट्रेलिया में खेले गये एक दिवसीय मैचों में पहली दफा फील्डिंग के नियम लागू किये गए. इसके बाद इन नियमों में लगातार बदलाव और सुधार भी किये जाते रहे. 1992 के विश्व कप में यह नियम बन गया कि पहले 15 ओवर में 30 गज के घेरे के बाहर सिर्फ 2 ही खिलाड़ी रहेंगे और 16वें ओवर के बाद इस घेरे के बाहर 5 खिलाड़ी रखने की इजाजत दी गयी.
2005 में आईसीसी ने पावर प्ले से सम्बंधित नियम शुरू किये. आईसीसी ने मैच में कुल 3 पावर प्ले का नियम लागू किया और पावर प्ले को 20 ओवरों का बना दिया गया था. इन नियमों के तहत पहला पावर प्ले 10 ओवरों का अनिवार्य पावरप्ले था. इस दौरान फील्डिंग करने वाली टीम 30 गज के घेरे के बाहर दो से ज्यादा फील्डर नहीं रख सकती थी. दूसरा पावर प्ले 5 ओवरों का होता था. इस पावरप्ले में अधिकतम तीन क्षेत्ररक्षकों को ही 30 गज के घेरे के बाहर रखा जा सकता था. इस पावर प्ले को 40 ओवरों के भीतर इस्तेमाल करना जरूरी होता है. तीसरा पावरप्ले भी 5 ओवरों का ही होता था. इस दौरान 30 गज के घेरे के बाहर 3 से ज्यादा फील्डरों को नहीं लगाया जा सकता.
समय-समय पर इन नियमों पर इन नियमों में बदलाव भी कर दिए जाते हैं. इस समय पावर प्ले के नियम इस तरह हैं. पहला पावरप्ले 1 से 10 ओवरों के बीच लागू होता है इसमें 30 गज के घेरे के बाहर केवल 2 खिलाड़ी रह सकते हैं. दूसरा पावर प्ले 11 से 40 ओवरों के बीच लागू होता है जिसमें 30 गज के घेरे के बाहर केवल 4 खिलाड़ियों को रखा जा सकता है. तीसरा पावर प्ले 41 से 50 ओवरों के बीच लागू होता है जिसमें 30 गज के घेरे के बाहर 5 फील्डर रह सकते हैं. T-20 मैचों में एक ही पावर प्ले होता है जो पहले 6 ओवर में 6 ओवरों में 30 गज के बाहर केवल 2 फील्डर ही रह सकते हैं, बाकी 14 ओवरों के दौरान 5 खिलाड़ी 30 गज के घेरे के बाहर रह सकते हैं.
फील्डिंग के ये नियम क्रिकेट में बल्लेबाजों और गेंदबाजों के एक दूसरे पर हावी हो जाने के बीच संतुलन बनाये रखने का काम करते हैं. इन नियमों को इस तरह बनाया गया है कि बल्ले और गेंद के बीच मुकाबले का रोमांच बना रहे.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…
तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…
चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…