देवेन मेवाड़ी

बम्बइया पिक्चर की कहानी, दिल्ली की थकान और कुमाऊं का लोकगीत: देवेन मेवाड़ी की स्मृति में शैलेश मटियानी

सन् साठ के दशक के अंतिम वर्ष थे. एम.एस.सी. करते ही दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में नौकरी लग गई. आम बोलचाल में यह पूसा इंस्टिट्यूट कहलाता है. इंस्टिट्यूट में आकर मक्का की फसल पर शोध कार्य में जुट गया. मन में कहानीकार बनने का सपना था. ‘कहानी’, ‘माध्यम’ और ‘उत्कर्ष’ जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं में मेरी कहानियां छपने लगी थीं. समय मिलते ही कनाट प्लेस जाकर टी-हाउस और काफी-हाउस में जाकर चुपचाप लेखक बिरादरी में बैठने लगा था. (Remembering Shailesh Matiyani)

पूसा इंस्टिट्यूट के भीतर ही किराए के एक कमरे में अपने साथी के साथ रहता था. कभी-कभी इलाहाबाद से प्रसिद्ध लेखक शैलेश मटियानी जी आ जाते थे. हमारे लिए वे जीवन संघर्ष के प्रतीक थे. उनके पास टीन का एक बड़ा और मजबूत बक्सा होता था. जब पहली बार आए तो कहने लगे, “यह केवल बक्सा नहीं है देबेन, इसमें मेरी पूरी गृहस्थी और कार्यालय है. वे मुझे देबेन कहते थे. लत्ते-कपड़े, किताबें, पत्रिका की प्रतियां, लोटा, गिलास, लिखने के लिए पेन, पेंसिल, कागज, चादर, तौलिया, साबुन, तेल, शेविंग का सामान, कंघा, सब कुछ.” कमरे में आकर उन्होंने एक ओर दीवाल से सटा कर बक्सा रखा और बोले, “दरी है तुम्हारे पास?” (Remembering Shailesh Matiyani)

मैंने दरी निकाल कर दी. उन्होंने फर्श पर बीच में दरी बिछाई और बोले, “मैं जमीन का आदमी हूं. जमीन पर ही आराम मिलता है. इन फोल्डिंग चारपाइयों पर तो मैं सो भी नहीं सकता.” कमरे में इधर-उधर मेरी और मेरे साथी कैलाश पंत की फोल्डिंग चारपाइयां थीं. उन्होंने बक्सा खोला. उसमें से ब्रुश और पेस्ट निकाल कर बु्रश किया. हाथ-मुंह धोया. मेरे पास पंप करके जलने वाला कैरोसीन का पीतल का स्टोव और पैन था. उसमें चाय बनाई. चाय पीते-पीते बोले, “बंबई जाना है. सोचा, दो-चार दिन तुम्हारे पास रुकता चलूं. यहां भी लोगों से मिल लूंगा.” ( Remembering Shailesh Matiyani )

वे जितनी देर कमरे में रहते, किस्से सुनाते रहते. इलाहाबाद के, बंबई के, अपने जीवन के, तमाम किस्से. सुबह जल्दी निकल जाते और लहीम-शहीम शरीर लेकर दिन भर पैदल और बसों-रिक्शों में यहां-वहां साहित्यकारों, मित्रों से मिलते, अपनी साहित्यिक पत्रिका ‘विकल्प’ के लिए विज्ञापन जुटाते. इस भाग-दौड़ के बाद थकान से चूर होकर शाम को लौटते. मुझसे बहुत स्नेह रखते थे. एक दिन थके-थकाए लौटे तो दरी में लेट कर बोले, “देबेन, तू मेरा छोटा भाई है. मेरे पैरों में खड़ा होकर चल सकता है?”

मैं और मेरा साथी सुन कर चौंके. उस दिन शायद पैदल बहुत चल चुके थे. मैंने सकपका कर कहा, “इतने बड़े लेखक के शरीर पर मैं पैर रख कर कैसे खड़ा हो सकता हूं?”

“अरे, तुम मेरे छोटे भाई हो. बड़े भाई के पैरों में पीड़ा हो रही है. समझ लो डाक्टर हो, इलाज कर रहे हो. अच्छा चलो, तुम मेरे पैरों में चलते रहो, मैं तुम्हें उस फिल्म की कहानी सुनाऊंगा जिसके प्रोड्यूसर ने मुझे कहानी के लिए एडवांस भी दे दिया था, कुछ हजार रूपए.”

मैं बहुत झिझकते हुए उनके पैरों पर खड़ा हुआ तो बोले, “पैरों को दबाते रहो,” और उन्होंने कहानी शुरू की. कहने लगे, “फिल्म की वह कहानी मैंने अपने उपन्यास ‘हौलदार’ और ‘चिट्ठी रसैन’ को मिला कर लिखनी थी.”

“लिखनी थी माने लिखी नहीं?” मैंने पूछा.

“कहां, बस भाग-दौड़ में ही रहा. फिर बंबई छोड़ कर इलाहाबाद आ गया. कोई बात नहीं, प्रोड्यूसर की रूचि होगी तो अब भी लिख दूंगा.”

“अच्छा तो सुनो, फिल्म कैसे शुरू होती है. पर्दे पर किसी फौजी के पैर और चमड़े के बूट चलते हुए दिखाई देते हैं, पहाड़ी पथरीली सड़क पर. घसड़क… घसड़क… घसड़क… एक धार (छोटी पहाड़ी) में आकर पैर थमते हैं. केवल धूल से सने बूट दिखाई दे रहे हैं… हां देवेन, ऊपर पीठ से होकर गर्दन तक चलो. चलते रहो, शाबाश.”

“तो फिर क्या होता है?”

“फिर कैमरा धीरे-धीरे ऊपर उठता है. फौजी की वर्दी और साइड फेस से होता हुआ कैमरा सामने रुकता है. वहां कांसे का एक बड़ा भारी घंटा लटक रहा है, दो मजबूत खंभों पर. कैमरा घंटे का क्लोज-अप दिखाता है. उस पर उकेर कर लिखा गया है – यह घंटा बाड़ेछीना के ठाकुर खड़क सिंह वल्द गुमान सिंह ने अपने बेटे सूबेदार हयात सिंह के नाम पर इस मंदिर को भेंट किया. और, इसके साथ ही फौजी का मजबूत गठीला हाथ आगे बढ़ता है, घंटे के राले को पकड़ कर जोर से टकराता है – टन्न्न्!… हां, कंधों पर चलते रहो.”

“उसके बाद कैमरा घूमता है. मंदिर में लटकी सैकड़ों छोटी-छोटी घंटियां और विभिन्न आकार के घंटे दिखाता है. फिर चीड़ के पेड़ों से होकर नीचे नदी किनारे के चौरस खेतों में पहुंच जाता है.”

“यहां फिल्म में हीरोइन गोपुली का प्रवेश होता है. वह अपनी तमाम सहेलियों के साथ मंडुवा (रागी) की पकी हुई फसल के खेतों में खड़ी है. बगल में मादिरा (ज्वार) की फसल पक कर तैयार है. पृष्ठभूमि से पहाड़ी संगीत उभरता है. हीरोइन और उसकी सहेलियों के हाथ में दरातियां हैं. वे इस तरह हवा में हाथ उठा कर…”

कंधों में तो मैं पैर रख कर खड़ा था. हाथ कैसे उठाते? हाथ नहीं उठे तो बोले, “अच्छा अब पैरों पर चलो.” तब उन्होंने दाहिना हाथ उठा कर कहा- इस तरह हवा में दराती के साथ हाथ उठा कर वे गाती हैं…

ओ ओ ओ, आ आ आ!
मंडुवा बाला टिपि दिना कन
मादिरा बाला टिप!

(मंडुवा की बालियां काट दो ना, मादिरा की बालियां काट दो)

बोले, “ये गीत के टेक की लाइनें हैं. गीत आगे बढ़ता है और बीच में टेक सुनाई देती रहती है- मंडुवा बाला टिपि दिना कन, मादिरा बाला टिप!”

“बस इसी तरह कहानी आगे बढ़ती जाती है. किसी दिन लिखूंगा इसे… अच्छा, हो गया अब. तुम भी खड़े-खड़े थक गए होगे, “कहते हुए वे उठ कर बैठ गए. बोले, “अब आराम मिल रहा है. असल में आज पैदल बहुत चलना पड़ा. इस दिल्ली में कहीं आना-जाना बड़ा मुश्किल काम है.”

देवेन मेवाड़ी

यह भी पढ़ें: शैलेश मटियानी एक ही था

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

वरिष्ठ लेखक देवेन्द्र मेवाड़ी के संस्मरण और यात्रा वृत्तान्त आप काफल ट्री पर लगातार पढ़ते रहे हैं. पहाड़ पर बिताए अपने बचपन को उन्होंने अपनी चर्चित किताब ‘मेरी यादों का पहाड़’ में बेहतरीन शैली में पिरोया है. ‘मेरी यादों का पहाड़’ से आगे की कथा उन्होंने विशेष रूप से काफल ट्री के पाठकों के लिए लिखना शुरू किया है.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

4 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

6 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

2 weeks ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago