सत्तर के दशक में लखनऊ के आकाशवाणी केन्द्र से पर्वतीय इलाके के लोगों लिए एक कार्यक्रम प्रसारित होता था उत्तरायण. यह कार्यक्रम तकरीबन एक घण्टे चला करता था. तब उत्तरायण के माध्यम से पहाड़ के गीत जन-जन के बीच अपनी पहुंच बना रहे थे. जीतसिंह नेगी, बीना तिवारी, केशब अनुरागी, चन्द्र सिंह राही, कबूतरी देवी, मोहन उप्रेती व नईमा खान उप्रेती, रमेश जोशी, भानुराम सुकोटी जैसे गायकों के गीत आकाशवाणी ने खूब प्रसारित किये. उस दौर में मोहन उप्रेती व नईमा खान उप्रेती के गाये अनेक युगल गीत लोगों के बीच खासे लोकप्रिय रहे थे. Remembering Naeema Khan Upreti by Chandra Shekhar Tewari
नईमा खान की सुरीली आवाज में गजब का सम्मोहन था जिसमें पहाड़ के लोक की ठसक साफ तौर पर दिखायी देती थी. पर्वतीय गीत-संगीत व रंगमंच के कुशल चितेरे मोहन उप्रेती के स्वर-गीतों में नईमा खान की सुरों की मिठास मिसरी की तरह घुली रहती. यह बात सही है कि अगर नईमा खान न होती तो सम्भवतः मोहन उप्रेती के गीत अधूरे ही रह जाते. मोहन-नईमा के बीच गीत-संगीत का यह रिश्ता कुछ दिनों बाद जीवन साथी के रुप में उभर कर सामने आया. गीत-संगीत की अलौकिक दुनिया में विचरण करते हुए नईमा खान की सुरीली आवाज ने मोहन उप्रेती के दिल में कब जगह बना ली पता ही न चला. दोनों ही एक दूसरे के हो चुके थे. अल्मोड़ा के तत्कालीन पहाड़ी समाज में इस तरह दो अलग-अलग समुदायों का प्रणय संयोग होना तब एक बड़ी घटना थी. लोगों को यह रिश्ता रास नहीं आया. यह अल्मोड़ा जैसे शहर की सामाजिक समरसता की विशेषता रही कि बाहर से मत भेद होते हुए भी कहीं न कहीं अन्दर खाने से इस रिश्ते को स्वीकार्यता दी गयी थी.कालांतर में मोहन-नईमा की इस शानदार जोड़ी ने कुमाउनी लोक संगीत को नित नये आयाम दिये. इस तरह पहाड़ी संस्कृति को प्रसिद्धिता के शिखर पर पहुंचता हुआ देखकर लोगों ने उनके प्रणय में बाधक रहे उस जाति बन्धन को स्वतः ही भुला दिया. Remembering Naeema Khan Upreti by Chandra Shekhar Tewari
नईमा खान के पुरखे 18 वीं सदी के आसपास अल्मोड़ा में बस चुके थे. उनके पूर्वजों में एक प्रमुख व्यवसायी हाजी नियाज अहमद खान थे. उन्होंने अपने जमाने में यहां जामा मस्जिद व मदरसे का निर्माण करवाया था. यही नहीं अपनी जायजाद का अधिकतर हिस्सा उन्होंने वक्फ को भी दिया था. नईमा खान के पिता मो. शब्बीर खान इन्हीं हाजी नियाज अहमद खान के बेटे थे. पिता की तरह मो. शब्बीर खान भी शहर के जरुरतमंद लोगों की मदद किया करते थे.
अल्मोड़ा म्युनिसिपल बोर्ड के सभासद रहते हुए कुछ समय तक वे उसके अध्यक्ष भी रहे. 25 मई 1938 को अल्मोड़ा के कारखाना बाजार में नईमा खान जन्म हुआ. उनकी स्कूली पढ़ाई शुरुआत में स्थानीय एडम्स और बाद रैमजे कालेज में हुई. 1958 में आगरा विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य, राजनीति विज्ञान व अर्थशास्त्र विषयों से बी.ए. आर्ट्स की परीक्षा पास की. 1969 में उन्होने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से स्नातक परीक्षा पास की. बाद में पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इस्टीट्यूट से उन्होंने डिप्लोमा भी लिया. Remembering Naeema Khan Upreti by Chandra Shekhar Tewari
नईमा खान के रंगकर्म की शुरुआत स्कूली दिनों से ही होने लगी थी. नईमा खान के जीवन का यह विचित्र संयोग ही रहा कि एडम्स कालेज के एक कार्यक्रम में मोहन उप्रेती से उनकी मुलाकात हुई थी. इस कार्यक्रम में उप्रेती जी ने एक गीत भी गाया था. एडम्स कालेज की एक अध्यापिका द्वारा तैयार ‘घा काटणा जानु हो दीदी, घा काटणा जानु हो दीदी, हिटो दीदी हिटो भुलू सब दगड़ जानू’ गीत की धुन मोहन उप्रेती जी ने ही बनायी और नईमा व उनकी सहपाठियों को उसकी रिहर्सल कराई. स्टेज पर आने से यह घसियारी नृत्य लोगों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हुआ. यह घसियारी नृत्य उस समय नैनीताल, बदांयू व बिजनौर समेत अन्य स्थानों में आयोजित क्षेत्रीय स्तर की सांस्कृतिक प्रतियोगिता में यह सदैव प्रथम स्थान पर आया. इस घसियारी नृत्य को लोक कलाकार संघ ने देश के कई शहरों में प्रर्दशित किया. बाद में पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली की ओर से भी इसकी प्रस्तुति देश-विदेश के तमाम स्थानों में की गयी. एडम्स स्कूल में पढ़ाई के ही दौरान नईमा जी ने मोहन उप्रेती के सानिध्य में ‘घास काटणा जानू दीदी’ के अलावा ‘पार रे भीड़ा को छै घस्यारी’ व ‘नी बास घुघुती रुनझुन’ जैसे कई गीतों की रिहर्सल प्राप्त की. इन्हीं दिनों उप्रेती के निर्देशन में तैयार पंचवटी नृत्य नाटिका का प्रर्दशन हुआ. इस कार्यक्रम को देखने के लिए पं. गोविन्द बल्लभ पंत भी वहां उपस्थित थे.इस नाटिका नईमा जी ने रामचरित मानस की चैपाईयों सहित कई गीतों का गायन किया.
साठ के दशक के शुरुआती साल 1955 के आसपास में नईमा खान मोहन उप्रेती के बनाये युनाइटेड आर्टिस्ट क्लब से जुड़ी. यही युनाइटेड आर्टिस्ट क्लब बाद के कुछ सालों में लोक कलाकार संघ के नाम से जाना गया. लोक कलाकार संघ से जुड़ते हुए नईमा खान ने गीत-संगीत के क्षेत्र में अपना विशेष स्थान बना लिया था. उस समय लोक कलाकार संघ में जब-तब लोकनृत्य व सामूहिक गीतों की रिहर्सल व कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता था. समय-समय पर इसमें स्थानीय कलाकार (पुरुष व महिला दोनों) जुड़ते रहे. बाद में लोक कलाकार संघ की प्रसिद्धि अल्मोड़ा से बाहर कई शहरों व महानगरों तक भी पहुंच जाने से इसके कलाकार वहां अपनी प्रस्तुतियां देने लगे. नईमा खान की भागीदारी इन कार्यक्रमों में हमेशा बनी रही. गीता जोशी, रमा मासीवाल, हेमा उप्रेती जोशी (मोहन उप्रेती की बहन) आदि महिला गायकों के साथ वे झोड़ा, छपेली जैसे सामूहिक लोकगीतों को गाया करती थी. मोहन-नईमा के ये युगल गीत ‘पारा रे भीड़ा को छै घस्यारी’ व ‘स्याली मेरी ओ सरीला’ तथा ‘चल धौं स्याली बाजारई’ उस दौर में खूब लोकप्रिय हुए. उप्रेती जी के नेतृत्व में कलाकार साथियों के साथ जब वे लैंसडाउन जा रही थीं तब उनकी भेंट भवाली में विमल रॉय, वैजन्ती माला, दिलीप कुमार, जॉनी वाकर व प्राण सहित अन्य कलाकारों से हुई. वहां मधुमती फिल्म की शूटिंग चल रही थी. विमल रॉय के आग्रह पर तब वहां कुछ न्योली गीत व एक कुमाउनी लोकगीत ‘ओ दरी हिमाल दरी, ता छूमा ता छूमा दरी’ की रिर्काडिंग भी की गयी. बाद में पता चला कि किसी वजह से गीतों का इस फिल्म में उपयोग तो नहीं किया पर उनकी धुनों का उपयोग जरुर किया. Remembering Naeema Khan Upreti by Chandra Shekhar Tewari
मोहन उप्रेती के साथ नईमा जी जब-तब सम्मेलनों व सांस्कृतिक आयोजनों में जाया करती थी. वे उनके साथ एक बार दिल्ली में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के सम्मेलन में भी गयीं जिसमें मुम्बई से बलराज साहनी व हेमन्त कुमार व अचला सचदेव जैसे कई दिग्गज फिल्मी कलाकार भी आये हुए थे. तब नईमा जी ने स्टेज पर गीता उप्रेती व मोहन उप्रेती के साथ ‘बेड़ू पाको बारामासा’ व ‘ओ लाली हौसिया पधानी’ गीतों की शानदार प्रस्तुति दी. फिल्मी कलाकारों को इस कार्यक्रम ने अत्यधिक प्रभावित किया और भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि आप जैसे स्टेज आर्टिस्टों का कद हम जैसे परदे के कलाकारों से कहीं अधिक ऊपर होता है. नईमा जी ने दिल्ली के तालकटोरा गार्डन में आयोजित उस कार्यक्रम में भी प्रस्तुति दी जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु भी आये हुए थे. कार्यक्रम की समाप्ति होने पर उनकी जवाहर लाल नेहरु से मुलाकात भी हुई. संगीत नाटक अकादमी की ओर से मोहन उप्रेती जी के निर्देशन में नईमा जी द्वारा हेमा और गीता जी के सहयोग से अल्मोड़ा की परम्परागत रामलीला की रिकार्डिंग का कार्य भी किया गया. जहां तक नाटकों का सवाल है नईमा जी ने ज्यादातर उनमें गायन की भूमिका निभाई है. उस दौर में पंचवटी, दादा का अभिनय और गौरा नाटक लोगों के बीच खूब लोकप्रिय रहे. गौरा नाटक में नईमा जी ने गौरा के लिए विरह गीत गाया था – ‘मोहे भाता नहीं है यह मेला, आजा आजा बसंत अकेला’. इस गीत की धुन कुमाउनी गीत ‘नि बासा घघुती’ पर आधारित थी. उहोंने ‘औरंगजेब की आखिरी रात’ नाटक में पहली बार अभिनय किया. इस नाटक में उन्होंने जहांआरा की भूमिका अदा की थी. इस नाटक में पहले लेनिन पंत जी को औरंगजेब का अभिनय करना था लेकिन उन्हें अचानक कुछ काम से बाहर जाना पड़ा, अन्ततः उनके बदले जगदीश पाण्डे को इस नाटक में औरंगजेब की भूमिका निभानी पड़ी.
दिल्ली में पर्वतीय कला केन्द्र के माध्यम से नईमा जी नें तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा दूरदर्शन के नाटकों व धारावाहिकों में अपना योगदान दिया. इनमें कालीदास रचित ‘मेघदूत’ नृत्य नाटिका की लोगों ने बहुत सराहना की. पर्वतीय कला केन्द्र से पहाड़ की लोक गाथाओं पर आधारित प्रस्तुतियों जैसे राजुला मालूशाही, गोरीधना,अजुवा बफौल व रामी बौराणी में भी नईमा जी की महत्वपूर्ण भागीदारी रही थी. मोहन उप्रेती व नईमा जी के प्रसिद्ध गीत ‘बेड़ू पाको बारामासा’ व ‘ओ लाली हौसिया’ को एच.एम.वी. कम्पनी द्वारा रिकार्ड भी किया गया था. आकाशवाणी के तमाम लोकगीतों, नाटकों व अन्य रेडियो कार्यक्रमों को भी उन्होनें अपनी आवाज से सजाने-संवारने का कार्य किया. अपने गीत-संगीत के गुरु व जीवन साथी मोहन उप्रेती के 1997 में निधन हो जाने के बाद उन्होंने पर्वतीय कला केन्द्र की बागडोर संभाली और उनके कामों को आगे बढ़ाने का कार्य किया. 2010 में उन्हें नटसम्राट थिएटर ग्रुप की ओर से लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड का सम्मान भी दिया गया. Remembering Naeema Khan Upreti by Chandra Shekhar Tewari
15 जून 2018 को अस्सी वर्ष की उम्र में नईमा खान उप्रेती का दिल्ली में निधन हो गया. अपने निधन से पूर्व उन्होंने अपना शरीर मेडिकल कालेज को दान दे दिया था. नईमा खान उप्रेती भले ही आज इस संसार में नहीं हैं,लेकिन उनके गाये तमाम लोकगीत आज भी पहाड़ के लोगों के दिल में बसे हुए हैं. शिखर-घाटियों व धुर-जंगल में बासने वाली न्यौली घुघुती व कफ्फू में आज भी नईमा खान उप्रेती के गीत सुनायी देते हैं जो निरन्तर आगे भी सुनाई देते रहेगें. अल्मोड़ा के गली-बाजारों में मोहन-नईमा के गीत-संगीत और उनके निश्छल प्रेम के कभी खतम न होने वाले ठेठ अल्मोड़िया ठसक वाले किस्से अब भी जीवन्त बने हुए हैं.
पार भीड़ा कौछे भागी सूर-सूर मुरली बाजि गै बिणुली बाजि गै पड़िगै बरफ सुवा पड़िगै बरफ पंछी हुनि उड़ि ऊंनी मैं तेरी तरफ
संदर्भ स्रोत : 1. ‘कुछ मीठी यादें कुछ तीती (मोहन उप्रेती के संस्मरण) ‘पहाड’, नैनीताल. 2. नैनीताल समाचार’ पाक्षिक पत्र, नैनीताल.
-चन्द्रशेखर तिवारी
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अल्मोड़ा के निकट कांडे (सत्राली) गाँव में जन्मे चन्द्रशेखर तिवारी पहाड़ के विकास व नियोजन, पर्यावरण तथा संस्कृति विषयों पर सतत लेखन करते हैं. आकाशवाणी व दूरदर्शन के नियमित वार्ताकार चन्द्रशेखर तिवारी की कुमायूं अंचल में रामलीला (संपादित), हिमालय के गावों में और उत्तराखंड : होली के लोक रंग पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. वर्तमान में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में रिसर्च एसोसिएट के पद पर हैं. संपर्क: 9410919938
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जानी-मानी लोक कलाकार आदरणीय नईमा जी के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने प्रिय तिवारी जी। यह बहुत पठनीय लेख है। नईमा जी हमारा गौरव हैं। उनकी स्मृति को सादर नमन।
पर्वतीय कला केंद्र से जीवन-पर्यन्त जुड़े रहकर ,मोहन दा के साथ मिलकर पर्वतीय संस्कृति के संरक्षण,संवर्धन,प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित विदुषी महिला ,नईमा आपा को सादर विनम्र श्रद्धांजलि | अच्छी पोस्ट है लेकिन कुछ तथ्य ऐतिहासिक रूप से सही नहीं हैं जैसे जामा मस्जिद अल्मोड़ा का पुनर्निर्माण ही 1827 सन में हुआ जैसा कि मुख्य द्वार में लगे पुराने शिलालेख से पता चलता है जिसमे 1248 हिजरी अंकित है | नईमा आपा के दादा जी का नाम हाजी नियाज़ मोहम्मद था न कि नियाज़ अहमद और 1927 में उनका जन्म भी नहीं हुआ था ,उनकी मृत्यु के बाद सन 1944 में नकारची टोला का नाम बदलकर नियाज़ गंज उनके नाम पर रखा गया था | वे अल्मोड़ा नगर पालिका में म्युनिसिपल कमिश्नर रहे थे | इसलिए उनके द्वारा जामा मस्जिद अल्मोड़ा का निर्माण किया जाना ऐतिहासिक रूप से ग़लत है | उनके पुत्र और नईमा आपा के पिताजी स्व ० शब्बीर मोहम्मद खान कांग्रेस के नेता ,नगरपालिका के उपाध्यक्ष/अध्य्क्ष रहे हैं |